मुंबई। स्टेंट और नी इंप्लांट्स के बाद केंद्र सरकार की योजना नॉन-इसेंशियल ड्रग्स की कीमतों पर नियंत्रण करने की है। इसके जरिये सरकार महंगी दवाओं को सस्ता करना चाहती है, ताकि हर व्यक्ति को आसानी से दवाएं मिल सकें।
इसके लिए सरकार चार साल पुराने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) के प्रस्तावित संशोधन करना चाहती है, ताकि मूल्य निर्धारण पद्धति को बदलकर गैर-अनुसूचित दवाओं को प्राइस कंट्रोल के दायरे में लाया जा सके। हालांकि, दवा कंपनियों का कहना है कि सरकार का यह कदम उद्योग के विकास के लिए हानिकारक होगा और प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देगा।
गैर-अनुसूचित दवाएं (नॉन शेड्यूल ड्रग्स) ऐसी दावाएं हैं, जो मूल्य-नियंत्रण व्यवस्था के बाहर हैं। वर्तमान में करीब 370 दवाएं ही कीमत नियंत्रण के दायरे में आती हैं। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) और डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल्स (डीओपी) की ओर से दिए गए प्रस्ताव में इस बारे में सुझाव दिया गया है।
इसमें कहा गया है कि नेशनल लिस्ट ऑफ इसेंशियल मेडिसिन्स में शामिल दवाओं के दाम तय करने के लिए मौजूदा तरीकों को खत्म कर दिया जाए। इसकी जगह बाजार में मौजूस सभी ब्रांड्स की दवाओं और जेनरिक मेडिसिन का साधारण औसत लिया जाए।
हालांकि, इस मामले में प्रमुख घरेलू दवा कंपनियों के एक समूह इंडियन फॉर्मास्युटिकल अलाइंस (आईपीए) ने कहा है कि इस तरह के संशोधन से प्रतिस्पर्धा और ग्रोथ खत्म होगी। इसके साथ ही मौजूदा मूल्य नियंत्रण नीति के प्रभाव के मूल्यांकन के बिना संशोधन के बारे में चर्चा की जा रही है।
आईपीए के महासचिव डीजी शाह ने कहा कि डीपीसीओ 2013 को एक मौका दें। इसे सुधारने के लिए चार साल का समय बहुत कम है। इसने अपनी क्षमता और पहुंच सुनिश्चित करने के अपने वादे पर पहुंचना शुरू कर दिया है।