सुरेंदर कुमार चोपड़ा
विज्ञान व तकनीक के विकसित होने से यह आशा की जाती है कि भारतीय संस्कृति व नैतिक मूल्यों का उत्थान
भी होगा तथा सदियों से शोषित होती हुई नारी वहशी भेडिय़ों से मुक्त होगी। सरकार द्वारा सख्त से सख्त कानून
बनाए जाने के बावजूद दरिंदगी की सभी हदें लांघते हुए इनसानियत दागदार होती नजर आ रही है। किस कूचे में
आदर्शवाद के सिद्धांत ढूंढें, यहां तो हर कोने पर घटिया मानसिकता के कूड़ेदान सजे हुए दिखाई देते हैं। अपराधियों
की खौफजदा निगाहें मानवता के भयावह जंगलों में इस तरह मुखातिब हैं कि चीखते मंजर की सिसकियां, समाज
व पुलिस द्वारा सुनी नहीं जा रहीं। हर परत के नीचे कालिख छिपी हुई दिखती है तथा सभी फरियादें तहस-नहस
होती नजर आ रही हैं। समाज व पुलिस दोनों की संवेदनाएं खूंखार और बेरहम होती जा रही हैं। दु:शासन व दुर्योधन
कब तक अपना दुष्टरूपी तांडव इसी तरह करते रहेंगे, कब तक बुद्धिजीवी लोग धृतराष्ट्र की तरह आंखें मूंद कर
बैठे रहेंगे? आततायी, दुराचारी दरिंदे अनैतिकता की सभी सीमाएं लांघ कर बच्चियों व महिलाओं की अस्मिता को
तार-तार करते दिखाई दे रहे हैं।
महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध की तरफ यदि एक दृष्टि डालें तो रौंगटे खड़े कर देने वाली तस्वीर सामने नजर
आएगी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार प्रतिदिन औसतन 67 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं
होती हैं। वर्ष 2019 में महिलाओं के विरुद्ध विभिन्न अपराधों की संख्या 4, 05, 861 थी, जबकि वर्ष 2018
में यह संख्या 3.78 लाख थी तथा बलात्कार के मामलों में सजा की दर केवल 32.2 प्रतिशत थी। लंबित मामलों
की बात कहें तो वर्ष 2017 में 127800 रेप के मुकद्दमे लंबित थे। यह भी पाया गया है कि वर्ष 2019 में
बच्चियों के साथ प्रतिदिन 109 बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। यदि विभिन्न राज्यों में घटित हो रहे बलात्कार व
शोषण की घटनाओं की बात करें तो नागालैंड, गोआ, केरल, मिजोरम, सिक्किम व मणिपुर में सबसे कम अपराध
घटित हुआ है, जबकि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार व झारखंड मे सबसे अधिक घटनाएं हुई हैं। यही
नहीं, महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा व उत्पीड़न की घटनाएं भी कम नहीं हैं जो कि हर 09 मिनट के बाद उसके
पति या उसके संबंधियों द्वारा की जाती हैं। इसी तरह कार्य क्षेत्रों के स्थानों पर कामकाजी महिलाओं के साथ
विभिन्न छेड़खानी की बहुत सी घटनाएं घटित होती हैं जिनमें 67 प्रतिशत की रिपोर्टिंग नहीं होती। अब तो लव
जिहाद जैसी घटनाएं भी नारियों का शोषण करने में पीछे नहीं हैं। यहां पर बर्बरता की पराकाष्ठा की कुछ घटनाओं
का वर्णन करना भी उचित होगा जिनका विवरण इस प्रकार हैः-
1. निर्भया हत्याकांड (2012) जिसे न्याय देने में आठ वर्ष लग गए थे।
2. हैदराबाद में (2019) एक महिला डाक्टर का गैंगरेप व हत्या।
3.उत्तर प्रदेश के उन्नाव (2018) का गैंग रेप जिसमें एक विधायक को भी सजा दी गई।
4. कठुआ में (2018 में) आठ वर्षीय बच्ची का बलात्कार व हत्या जिसमें पुलिस वालों को भी केस रफा-दफा करने
के लिए सजा मिली।
5. रुचिका नामक 14 वर्षीय टेनिस खिलाड़ी के साथ एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा छेड़छाड़ व उस लड़की
द्वारा आत्महत्या (1992)।
6. बांबरी जो एक (विशाखा नामक) एनजीओ में बाल विवाह रोकने के लिए कार्य करती थी, के साथ पांच
व्यक्तियों, जिसमें एक विधायक भी था, द्वारा गैंग रेप (1992)।
7. वर्ष 1995 में नैना साहनी की हत्या जिसमें उसके पति द्वारा तंदूर में उसके शरीर को काट कर जला दिया
गया।
8. वर्तमान में हाथरस की घटना जिसमें दलित लड़की का दिल दहला देने वाला हत्याकांड (सितंबर माह) में ही
हुआ।
9. आजमगढ़ में एक दलित युवती का दो लड़कों द्वारा बलात्कार जिसकी बाद में मृत्यु हो गई।
10. राजस्थान में बांसवाड़ा व अजमेर में बलात्कार की घटनाएं। इस तरह इस प्रकार की घिनौनी व जघन्य
घटनाओं का वर्णन करें तो शायद लिखने को कागज कम पड़ जाएंगे। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कुछ सुझाव
दिए जा रहे हैं, जो काफी सीमा तक करगर सिद्ध हो सकते हैंः-
1. प्लेटो जो कि एक बहुत बड़े दार्शनिक थे, जिन्होंने लिखा है कि किसी भी अपराध को रोकने के लिए भय का
होना आवश्यक है। परिवार व समाज का भय, पुलिस व कोर्ट का भय निश्चित तौर पर ऐसी मानसिक वृत्ति वाले
प्राणियों पर किसी न किसी सीमा तक ऐसे अपराधों पर नियंत्रण लाने में सहायक सिद्ध होगा।
2. पुलिस को और भी ज्यादा संवेदनशील व उत्तरदायी बनाने की आवश्कता है। पुलिस कार्यप्रणाली की गुणवत्ता को
परखनें व उसमें सुधार लाने के लिए अच्छे नेतृत्व की जरूरत है।
3. पुलिस-जनता संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक राज्य में सामुदायिक- पुलिस योजनाएं कार्यान्वित की गई
हैं, मगर शायद ही जिले के उच्च अधिकारी गांवों या शहरों के मुहल्लों का निरंतर भ्रमण कर पाते हों।
जब पुलिस आम जनता के साथ निरंतर संपर्क में रहेगी तो निश्चित तौर पर ऐसे मनचले व दरिंदगी भरी
मानसिकता लिए हुए अपराधियों पर अंकुश लगेगा।
4. प्रेस व मीडिया का भी सकारात्मक रोल होना अवश्यक है। खबरों की होड़ में मीडिया वाले कई बार अप्रमाणित
बातों का प्रकाशन कर देते हैं जिससे आम जनता में भय का माहौल तैयार कर दिया जाता है। इस पर रोक लगनी
चाहिए। 5. माता-पिता को भी अपनी बच्चियों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। उन्हें अपने उच्च व्यक्तिगत चरित्र
की मिसाल बनकर अपने बच्चों का उचित मार्गदर्शन करना चाहिए।
6. समाज के बुद्धिजीवी लोग भी अपना सकारात्मक रोल अदा नहीं करते। अपराध व अपराधी को देखते हुए भी
कुंभकर्णी नींद में सोए रहते हैं तथा हिजड़ों व नपुंसकों वाली बादशाहत निभाते रहते हैं।
7. अंत में हमारे राजनीतिज्ञ भी अपने स्वार्थ के लिए वोट की गंदी राजनीति करते रहते हैं तथा हमेशा एक-दूसरे
पर छींटाकशी करने के अतिरिक्त कोई भी सकारात्मक रोल अदा नहीं करते। क्रिमीनल रिकॉर्ड वाले व्यक्तियों को
चुनाव लड़ने से वंचित रखना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को बिना वर्दी के सिपाही बनकर अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन
बड़ी संजीदगी और निष्ठा से करना चाहिए।