संयोग गुप्ता
नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस संक्रमण प्रमुख रूप से संक्रमित लोगों के एक छोटे
से वर्ग से फैल रहा है। इस वर्ग को सुपर स्प्रेडर भी कहा जाता है। देश में संक्रमितों के संपर्कों का पता लगाने वाले
सबसे बड़े अनुसंधान में यह पता चला है। अनुसंधान में यह तथ्य भी सामने आया कि नोवेल कोरोना वायरस के
संक्रमण में बच्चों की एक प्रमुख भूमिका है। कोविड-19 वैश्विक महामारी के संबंध में अब तक के सबसे बड़े इस
विश्लेषण में पाया गया है कि विकसित देशों की तुलना में भारत में 40 वर्ष से 69 वर्ष तक की आयुवर्ग में
कोरोना वायरस संक्रमण के अधिक मामले सामने आए हैं और मृतकों में भी इसी आयुवर्ग के अधिक लोग शामिल
हैं। यह विश्लेषण करने वाले अनुसंधानकर्ताओं में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सरकार के अनुसंधानकर्ता भी शामिल
हैं। इसमें पाया गया कि देश के कोविड-19 के 70 फीसदी से अधिक मरीजों ने अपने संपर्क में आने वाले किसी
भी व्यक्ति को संक्रमित नहीं किया जबकि आठ फीसदी संक्रमित व्यक्ति 60 फीसदी नए संक्रमणों के लिए
जिम्मेदार हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि बच्चों में संक्रमण का प्रकोप अधिक है जो अपनी ही उम्र के संक्रमितों
के संपर्कों में शामिल हैं। पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित अध्ययन के तहत, दोनों राज्यों में कोविड-19 के 84,965
पुष्ट मामलों के संपर्क में आए 5,75,071 लोगों में बीमारी के संक्रमण के तरीके का आकलन किया गया। नई
दिल्ली में ‘सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ के आर लक्ष्मीनारायण समेत वैज्ञानिकों के
समूह के अनुसार, इस अध्ययन के निष्कर्ष कम एवं मध्यम आय वाले देशों में महामारी फैलने के तरीके की
जानकारी देते हैं। वैज्ञानिकों ने आंकड़ों के आधार पर बताया कि अधिक आयु वाले देशों की तुलना में दोनों भारतीय
राज्यों में युवकों में संक्रमण के अधिक मामले सामने आए हैं और मृतकों में भी युवक अधिक शामिल हैं। अध्ययन
में कहा गया है कि समान आयु के संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से संक्रमण का अधिक खतरा होता है।
अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि ऐसा नवजात से 14 वर्ष के बच्चों एवं 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगो में
अधिक देखा गया है। उन्होंने कहा कि संक्रमण के मामलों एवं मृतकों का अनुपात (सीएफआर) पांच वर्ष से 17 वर्ष
के आयुवर्ग में 0.05 प्रतिशत और 85 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में 16.6 प्रतिशत है। अनुसंधानकर्ताओं ने
बताया कि दोनों राज्यों में मरीज मौत से पहले अस्पताल में औसतन पांच दिन रहे, जबकि अमेरिका में मरीज
मौत से पहले करीब 13 दिन अस्पताल में रहे। आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु भारत के उन राज्यों में शामिल हैं, जहां
स्वास्थ्यकर्मियों की सर्वाधिक संख्या है और प्रति व्यक्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च भी सबसे अधिक है। अध्ययन में
पाया गया है कि मृतकों में 63 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो पहले से किसी एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे और 36
प्रतिशत लोगों को पहले से दो या अधिक बीमारियां थीं। वैज्ञानिकों ने बताया कि मृतकों में से 45 प्रतिशत लोग
मधुमेह से पीड़ित थे। लक्ष्मीनारायण ने कहा कि यह अध्ययन आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में संक्रमित लोगों के
संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के प्रयासों से संभव हुआ, जिसमें दोनों राज्यों के हजारों स्वास्थ्यसेवा कर्मियों
ने मदद की।