राजीव गोयल
बेरोजगारी की समस्या केवल चुनावी मुद्दा बन कर रह गया हैं। जो दल 50 वर्ष तक सत्ता में रहा वही विपक्ष में
आने के बाद सारा दोष वर्तमान सत्तारुढ़ दल पर डाल देता है।आजादी के बाद से कोई भी ऐसा लोकसभा या
विधानसभा का चुनाव नहीं हुआ होगा जिसमें देश में व्याप्त बेरोजगारी को विपक्ष द्वारा नहीं भुनाया गया होगा।
इस समय कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से तो हालात और भी खराब हो गए हैं। देशभर में बेरोजगारी बेतहाशा
बढ़ी है। अर्थव्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है। व्यापार ठप्प हो गया है। बेरोजगारी की गति को धीमा करने
के लिए केन्द्र की मोदी और तमाम राज्य सरकारों द्वारा हरसंभव कदम उठाया जा रहा है। मोदी सरकार ने बैंकों
को सख्त आदेश दे रखे हैं कि वह बेरोजगारों को आसानी से कर्ज दें ताकि बेरोजगार युवा अपना काम-धंधा शुरू कर
सकें। सरकार के प्रयासों से स्थिति में थोड़ा-बहुत सुधार आया है, लेकिन अभी बहुत किया जाना बाकी है। हो सकता
है देर-सबेर सब कुछ ठीकठाक हो जाए। बात जहां तक सरकारी नौकरियों की है, तो यह मान कर चलना चाहिए
कि समय के साथ सरकारी नौकरियों का दायरा सिकुड़ता ही जाएगा। जब सरकार निजीकरण को बढ़ावा देगी तो
सरकारी नौकरियों में भी तो कमी आएंगी। अच्छी बात यह है कि कोरोना का असर धीमा होने के बाद निजी क्षेत्रों
की कंपनियों में फिर से भर्तियों का दौर शुरू हो गया है, केन्द्र की मोदी सरकार जिस तरह से मेड इन इंडिया पर
जोर दे रही है, उससे निश्चित ही बेरोजगारी में काफी हद तक कमी आएगी।
बहरहाल, बात निजी क्षेत्रों में काम करने वालों की लोगों की नौकरी की गारंटी की है तो अभी इसमें बहुत कुछ
किया जाना बाकी है। अभी तक कोई ऐसा ठोस फार्मूला तैयार नहीं तय हुआ है जिसके आधार पर प्राइवेट सेक्टर में
काम करने वालों का शोषण रोका जा सके और उन्हें काम के अनुसार उचित पारिश्रमिक भी मिले। प्राइवेट सेक्टर में
कार्यरत कर्मचारी की सेवा की शर्ते तय करते समय बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मालिक मनमानी करते हैं। काम के घंटे
और कितना काम कर्मचारी से लिया जा सकता है, इस पर गंभीरता से कभी मंथन नहीं होता है। सरकार ने प्राइवेट
सेक्टर में काम करने वालों के लिए जो गाइड लाइन तय की भी हैं उसका शायद ही कहीं पालन होता होगा।
इसीलिए निजी क्षेत्र में रोजगार तलाशना जितना आसान लगता है, उतना ही जोखिम भरा भी रहता है और सरकारें
इन्हीं की बदौलत लाखों लोगों को रोजगार और नौकरी देने के दावे करती हैं।
खैर, सरकारी दावों से अलग हिन्दुस्तान में बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो कोरोना काल में
शहरी क्षेत्र में हर दस में से एक व्यक्ति इस समय बेरोजगारी झेल रहा है। देशभर में जून के महीने में लॉकडाउन
में ढील मिलने के बाद जुलाई 2020 में रोजगार के बेहतर आंकड़े सामने आए थे। उम्मीद की जा रही थी कि
अनलॉक के बाद धीरे-धीरे रोजगार के आंकड़े और बेहतर होंगे, लेकिन अगस्त 2020 के आंकड़ों ने एक बार फिर
निराश कर दिया। जुलाई के मुकाबले अगस्त 2020 में रोजगार के अवसर काफी कम हो गए। पहले यह अनुमान
लगाया जा रहा था कि जैसे-जैसे देश अनलॉक की तरफ बढ़ेगा, रोजगार की स्थिति और बेहतर होगी।
वैसे हालात हिन्दुस्तान में ही नहीं खराब हैं। कोरोना के चलते पूरी दुनिया में स्थिति बिगड़ी है। वर्ल्ड इंप्लॉयमेंट एंड
सोशल आउटलुक की इसी वर्ष जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना काल में दुनियाभर में करोड़ों लोगों की नौकरी
चली गई हैं। लगभग आधा अरब लोगों के पास अपेक्षित वैतनिक काम नहीं हैं, या कह सकते हैं उन्हें पर्याप्त रूप
से वैतनिक काम नहीं मिल पा रहे हैं। रोजगार और सामाजिक रुझान पर आईएलओ की रिपोर्ट बताती है कि बढ़ती
बेरोजगारी और असमानता के जारी रहने के साथ सही काम की कमी के कारण लोगों को अपने काम के माध्यम से
बेहतर जीवन जीना और मुश्किल हो गया है। जल्द ही सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना होगा।