शिशिर गुप्ता
देश युवाओं के बल पर विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दम्भ भर रहा है, वहीं युवा पीढ़ी अब नशे में घुलती
जा रही है, यह चिन्ता का विषय होना ही चाहिए। नशे की इस डरावनी स्थिति के लिये जिम्मेदार लोगों पर सख्त
कार्रवाई जरूरी है, क्योंकि इनके कारण नशे की ओर बढ़ रही युवा पीढ़ी बौद्धिक रूप से दरिद्र बन रही है। जीवन
का माप सफलता नहीं सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर
की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? मुम्बई में माफिया लोगों ने इन फिल्मी
हस्तियों के सहयोग से आर्थिक राजधानी को नशे की राजधानी बनाने में सफलता प्राप्त की, भले ही महाराष्ट्र
पुलिस ने नशे के इन गिरोहों का नेटवर्क काफी हद तक विध्वंस किया था लेकिन राजनीतिक प्रभाव एवं फिल्मी
हस्तियों के सहयोग से अरबों रुपए का ड्रग्स का धंधा बंद नहीं हो सकता।
अनेक सिने कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे
की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं नशे की लत के कारण कीर्तिमान तो
स्थापित कर लेती हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पाई हैं। सिंथेटिक ड्रग्स तो इतने उत्तेजक होते
हैं कि सेवन करने वालों को तत्काल ही आसपास की दुनिया से काट देते हैं, पंगु बना देते हैं और उनके सोचने-
विचारने-काम करने की क्षमताओं को विनष्ट कर देते हैं। अनेक फिल्मी कलाकारों का असमय में मौत का ग्रास
बनने के कारणों में यह नशा ही प्रमुख कारण बना है।
पिछले दो दशकों में मद्यपान करने वाली एवं ड्रग्स लेने वाली महिलाओं की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
विशेष कर उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं में यह एक फैशन के रूप में आरंभ होता है और फिर धीरे-
धीरे आदत में शुमार होता चला जाता है। इनमें से कुछ महिलाएँ खुलेआम तथा कुछ छिप-छिप कर शराब, सिगरेट
एवं अन्य नशों का सेवन करती हैं। ड्रग्स की आदत भी बढ़ती जा रही है। महानगरों और बड़े शहरों की कामकाजी
महिलाओं एवं छात्रावासों में यह बहुत ही आम बात होती जा रही है।
पंजाब में आतंकवाद ही नहीं, ड्रग्स के धंधे ने व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बनाई है, जिसके दुष्परिणाम समूचे
देश ने भोगे हैं। शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों से हर रोज युवाओं की मौत की खबरें हों या विधवाओं का क्रंदन, समूचा
देश हिला है। कितनी मांओं की गोद उजड़ गई और कितने वृद्ध पिताओं की सहारे की लाठी टूट गई। नशीले
पदार्थों का धंधा सीमाओं से होते हुए देश की रग-रग में पसरता गया है। पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश के जरिए
नशीले पदार्थ की तस्करी की जाती है। बॉलीवुड और दक्षिण भारत का फिल्म उद्योग में पांव जमा चुके नशे के
ग्लैमर की चकाचौंध ने चिन्ताजनक स्थितियां खड़ी कर दी हैं।
टीवी चैनल्स पर ड्रग्स पार्टियों, रेव पार्टियों और इनमें नामी सितारों के बच्चों के नशे करने के दृश्यों ने समस्या को
और अधिक गहराया है। जो सितारे आदर्श बने हुए हैं, उनके बच्चे खुद कितने बिगड़े हुए हैं-ये दृश्य बता रहे हैं। ये
तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर सहित अनेक
जानलेवा बीमारियां लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं।इन फिल्मी हस्तियों के साथ-साथ हजारों-लाखों लोग अपने
लाभ एवं अनुचित कमाई के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के चरित्र एवं स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़
कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल में ‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ अभियान चलाने की बात कहकर इस राष्ट्र की
सबसे घातक बुराई की ओर जागृति का शंखनाद किया है। उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश के
युवा गुटका, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, शराब और भांग आदि के नशे में पड़ कर बर्बाद हो रहे हैं। इस कारण से
वे आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकलांगता की ओर अग्रसर हो रहे हैं।