विनय गुप्ता
गैंगरेप और भीषण यातनाओं का शिकार हुई यूपी के हाथरस जिले की 19 साल की दलित लड़की ने 15 दिनों तक
मौत से जूझने के बाद मंगलवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। एक दिन पहले ही उसे
गंभीर स्थिति में अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से यहां लाया गया था। इस मौत ने जहां एक बार
फिर पूरे देश की संवेदना को झकझोर दिया है, वहीं गैंगरेप जैसे अपराध से निपटने में प्रशासनिक और पुलिस तंत्र
की घोर विफलता को भी उजागर किया है। इस घटना के बाद स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए
उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि इसके सभी दोषियों के लिए कठोरतम सजा सुनिश्चित की जाए। मुख्यमंत्री
आदित्यनाथ योगी ने मामले की जांच के लिए एसआईटी भी गठित कर दी है। 7 दिन में रिपोर्ट देने का भरोसा
जताया गया है। गौर करने वाली बात यह भी है कि यदि स्वयं प्रधानमंत्री निर्देश नहीं करते तो क्या मामला यूँ ही
ढीला ढाला चलता रहता जैसे 15 दिन से चल रहा था।
दिल्ली के निर्भया मामले के बाद जैसी सामाजिक क्रांति देखने को मिली थी, उससे यह उम्मीद बंधी थी कि अब
शायद देश में महिलाओं को वैसे त्रासद अपराध से नहीं गुजरना पड़ेगा। बलात्कार कानूनों को सख्त बनाया गया
लेकिन ना बलात्कार रुके, ना दरिन्दगी ना ही महिलाओं की हत्याएं। उत्तर प्रदेश में खासतौर पर महिलाओं के
खिलाफ अपराधों जैसा सिलसिला चल पड़ा है। इस राज्य को महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित राज्य में
शामिल कर दिया है। हाथरस की बेटी से दरिन्दगी हुई, इसकी पुष्टि उसकी मौत से होती है। उसकी रीढ़ की हड्डी
तोड़ी गई और जीभ काटी गई। हाथरस पुलिस इस दरिन्दगी का खंडन कर रही है।यह कोई अकेली घटना नहीं है,
लेकिन इस घटना की जो प्रकृति है, वह किसी भी आदमी को झकझोर देने के लिए काफी है। युवती दलित
पृष्ठभूमि से थी और गिरफ्तार चारों आरोपी उच्च जाति के हैं। सवाल फिर सामने है कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों में आज
भी दलित पृष्ठभूमि का होना ही अपराध का शिकार होने की स्थितियां बना देता है? वह कौन-कौन से कारण हैं कि
दबंगों को यह सब करने से पहले कानून का कोई खौफ क्यों नहीं रहा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत के ग्रामीण
क्षेत्रों में जातिवाद की जड़ें आज भी गहरी हैं।
आज भी दलितों पर अत्याचार जारी है और उच्च जातियों के दबंग अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए ऐसी
घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। अफसोस तो इस बात का है कि तमाम सख्त कानूनों के बावजूद देशभर में
जमीनी स्तर पर महिलाओं के खिलाफ असुरक्षा और अपराधों की स्थितियों में कोई फर्क नहीं आया। समें कोई संदेह
नहीं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य को अपराधमुक्त बनाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। बड़े अपराधियों
पर शिकंजा कसा जा रहा है और उनकी अवैध सम्पत्तियों को तोड़ा जा रहा था, जब्त किया जा रहा है। बड़े-बड़े
माफिया सरकार से आतंकित हैं लेकिन समाज में पनपी विकृति पर काबू पाना सरकारों के लिए मुश्किल काम होता
है। इस वर्ष की शुरूआत में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में बताया गया था कि महिलाओं के खिलाफ
अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे खतरनाक हालत में पहुंच चुका है। समाज के कमजोर तबकों की महिलाओं
से बलात्कार और उनकी हत्या की घटनाएं जिस तरह से लगातार आने लगी हैं, उससे पुलिस पर सवाल तो उठेंगे
ही।
पूर्व में हमने देखा है कि देश को झकझोर देने वाले आपराधिक मामलों की गूंज मीडिया से जरिये देश के एक कोने
से दूसरे कोने पर सुनाई पड़ी, इन पर सेलिब्रिटिज की प्रतिक्रियाएं आईं और कैंडिल मार्च निकाले गए। राजधानी
दिल्ली में इंडिया गेट और मुम्बई में गेटवे ऑफ इंडिया तक मशहूर सेलिब्रिटिज की अगुवाई में तमाम मामलों में
न्याय की मांग की गई। धीरे-धीरे कैंडिल मार्च भारत में लोकतांत्रिकता और अभिव्यक्ति की आजादी का एक नया
आयाम बनकर उभरा। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए। पुरुषों की नग्नता
क्रूर अटहास करती नजर आती है। बहरहाल, एसआईटी जांच के नतीजों का सबको इंतजार रहेगा, मगर अभी ऐसी
कई बातें प्रकट हैं जो पुलिस-प्रशासन को संदेह के घेरे में खड़ा करती हैं। मामले की पहली शिकायत से लेकर रात
के अंधेरे में बिना पारिवारिक भागीदारी के पीड़िता का अंतिम संस्कार कर देने तक उसकी भूमिका पर सवाल ही
सवाल हैं। ऐसी दीदादिलेरी स्थानीय तंत्र अकेले दम पर नहीं दिखा सकतीा लिहाजा संदेह के छींटे अन्य दिशाओं में
भी जा रहे हैं। उम्मीद करें कि पीएम के निर्देश और सीएम की तत्परता से इन सवालों के अधिक भरोसेमंद जवाब
सामने आएंगे।