लवण्या गुप्ता
उस रात उन दो चोरों को तेनालीराम के घर चोरी करने के लिए जेल से रिहा कर दिया गया। तेनालीराम के घर
एक खूबसूरत बगीचा था। दोनों ने पहले उस बगीचे को पार किया और फिर वे घर की दीवारों तक पहुंच गए। राजा
कृष्णदेव हर महीने एक बार अपनी जेलों का मुआयना करने जाया करते थे। इस दौरान वे वहां कैदियों को दी जाने
वाली सुविधाओं का जायजा लेते। यह क्रम लंबे समय से चला आ रहा था।
एक बार की बात है, राजा जेलों को देखने पहुंचे। उन्हें वहां देखकर दो कैदी उनसे अपनी सजा माफी की याचना
करने लगे। अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने राजा से कहा, ‘चोरी करना तो वेद की 64 कलाओं में से एक माना
गया है। लेकिन अगर आप हमें माफ कर देते हैं तो हम इस काम को हमेशा के लिए छोड़ देंगे और जीवनयापन के
लिए कोई दूसरा रास्ता अपनाएंगे।’
यह सुन राजा सोच में पड़ गए। उन्होंने चोरों से कहा, ‘ठीक है। मैं तुम्हें रिहा कर दूंगा, पर पहले तुम्हें अपनी
कला का प्रदर्शन मेरे सामने करना होगा। तुम दोनों को तेनालीराम के घर चोरी करनी होगी और वहां से वापस मेरे
पास आना होगा। अगर तुम इस काम में सफल हो जाते हो तो तुम्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा।’
राजा ने आगे कहा, ‘पर हां, इस काम में तुम किसी को शारीरिक हानि नहीं पहुंचाओगे। यही मेरी शर्त है।’ उस रात
को उन दो चोरों को तेनालीराम के घर चोरी करने के लिए रिहा कर दिया गया। तेनालीराम के घर एक खूबसूरत
बगीचा था। दोनों ने पहले उस बगीचे को पार किया और फिर वे घर की दीवारों तक पहुंच गए। चोरों ने आसपास
देखा, पर वहां कोई नहीं दिखा। उन्हें लगा कि उनका रास्ता साफ है। दोनों रात गहरी होने का इंतजार करने लगे।
पर तेनालीराम सबसे अलग थे। उन्होंने उन्हें घर के पीछे छिपते देख लिया था। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज
लगाई, ‘सुनो, जरा इधर आना। पूरे शहर में घबराहट है, दो चोर जेल तोड़कर फरार हो गए हैं। हमें भी सावधान
रहना चाहिए। तुम अपने सभी गहनों और नकदी को जल्दी किसी सुरक्षित जगह पर रख दो। या ऐसा करो कि सभी
चीजों को एक गठरी में बांधो और यहां मेरे पास ले आओ।’ जल्दी ही तेनालीराम की पत्नी सारे सामान की गठरी
ले आई। उन्होंने वो गठरी पत्नी से ली और उसे घर के पीछे बने कुएं में डाल दिया।
चूंकि गठरी काफी भारी थी, इसलिए पानी में उसके डूबने की आवाज काफी देर तक आती रही। जैसे ही दोनों चोरों
ने ये देखा, उनकी आंखों में चमक आ गई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि तेनालीराम के घर चोरी करना इतना
आसान होगा।
थोड़ी देर बाद तेनालीराम अपनी पत्नी के साथ घर के भीतर चले गए। चोर तो इसी बात का इंतजार कर रहे थे।
कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि दोनों सो गए हैं, चोर धीरे-धीरे झाड़ियों से बाहर आ गए।
चोर इतने दबे पांव चल रहे थे कि बिल्कुल आवाज न हो। कुएं के पास पहुंचकर दोनों ने उसमें झांका, पर अंधेरे की
वजह से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। पहले चोर ने दूसरे से कहा, ‘तुम कुएं के भीतर जाकर देखो कि यह
कितना अधिक गहरा है।’
दूसरा चोर कुएं में उतरा। उसने बाहर आकर कहा, ‘भाई, कुआं तो काफी अधिक गहरा है। उसमें काफी पानी भी है।
गहनों की गठरी को उसमें से निकालना काफी मुश्किल है। यह तभी हो सकता है, जब हम कुछ पानी कुएं से बाहर
निकाल दें।’
थोड़ी देर सोचने के बाद दोनों ने यह फैसला किया कि वे कुएं से पानी निकालेंगे। दोनों एक के बाद एक
बाल्टी से पानी निकालने लगे और पानी को बगीचे में ही डालने लगे।
कुछ देर बाद वहां पानी काफी अधिक मात्रा में जमा हो गया। पानी पौधों की ओर भी बढ़ने लगा। तेनालीराम
खिड़की से यह सब छिपकर देख रहे थे। उन्होंने एक शॉल ओढ़ी और चुपके से बाहर बगीचे में आ गए। उन्होंने
खुरपी की सहायता से पानी को दूसरे पौधों व पेड़ों तक पहुंचाना शुरू कर दिया। चूंकि वहां काफी अंधेरा था और
दोनों चोर पानी निकालने में व्यस्त थे, इसलिए वे तेनालीराम को ये सब करते देख नहीं पाए।
कुएं से 3-4 घंटे पानी निकालने के बाद दोनों चोर बुरी तरह से थक गए। इसके बाद उनमें से एक फिर से कुएं के
भीतर गया और बाहर आकर उसने कहा, ‘तुम नीचे आ जाओ। ये गठरी काफी भारी है। मैं इसे अकेले नहीं उठा
पाऊंगा।’ यह सुनकर दूसरा चोर भी कुएं के भीतर चला गया। बड़ी मुश्किल से दोनों ने गठरी उठाई और उसे बाहर
लेकर आए।
अब तो दोनों की खुशी का ठिकाना ही नहीं था। पहले चोर ने दूसरे से कहा, ‘जल्दी से इस गठरी को खोल देते हैं
और देखते हैं कि अंदर कितना माल भरा है।’
पर ये क्या, जैसे ही दूसरा चोर गठरी खोलता है तो दोनों की आंखें बड़ी हो जाती हैं। उसमें गहने नहीं, बल्कि
पत्थर भरे दिखाई देते हैं। वे समझ नहीं पाते कि आखिर क्यों तेनालीराम इन पत्थरों को छिपाना चाहता था।
उन दोनों को आश्चर्यचकित देख तेनालीराम ने उन्हें आवाज लगाई, ‘क्या तुम दोनों कुएं से कुछ और बाल्टी पानी
निकाल सकते हो? इस बगीचे में केवल दो ही पौधे ऐसे बचे हैं, जिन्हें पानी नहीं मिल सका है। इसलिए कृपया
जल्दी से पानी निकाल दो।’
तेनालीराम की आवाज सुनकर दोनों हैरान हो गए। एक ने दूसरे से कहा, ‘भागो, ये तो तेनालीराम है।’
दोनों सिर पर पांव रख कर भाग खड़े हुए। राजा के पास पहुंचकर दोनों ने अपनी कहानी सुनाई और चोरी को फिर
कभी ‘कला’ न कहने की कसम खाकर खुद ही सजा काटने जेल में चले गए।