सुरेंद्र कुमार चोपड़ा
मालदीव ने एक बार फिर इस बात पर मुहर लगाई है कि वो भारत का सच्चा दोस्त है। इस साल की शुरुआत में
मालदीव ने ओआईसी में भारत का साथ दिया था लेकिन अब सार्क देशों की बैठक को लेकर पाकिस्तान की
उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। मालदीव ने पाकिस्तान में होने वाले 19वें सार्क समिट पर एक बार फिर रोक लगा
दी है। सार्क विदेश मंत्रियो की बैठक में पाकिस्तान ने एक बार फिर सार्क समिट शुरू करने की बात कही थी। ये
समिट साल 2016 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में होना था लेकिन किसी ना किसी कारण से इसे
टाला जा रहा था। अब एक बार फिर मालदीव की ओर से इस समिट को टाल दिया गया है। मालदीव के विदेश
मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि अभी पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है, इसलिए ऐसे समय में
समिट पर चर्चा करना सही समय नहीं है। मौजूदा सार्क अध्यक्ष नेपाल ने सदस्यों देशों से समिट की प्रक्रिया करने
की बात कही थी लेकिन मालदीव के हस्तक्षेप के बाद इसे टाल दिया गया। ऐसा पहली बार नहीं है जब मालदीव ने
भारत की इस तरह सहायता की हो। इस साल मई में ओआईसी की बैठक में, मालदीव ने ऐसे किसी एक्शन का
समर्थन करने के लिए मना कर दिया था जिसमे इस्लामोफोबिया के लिए भारत को बाहर कर दिया था। वहीं साल
2016 से पाकिस्तान इस्लामाबाद में सार्क समिट कराने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत इसका लगातार
विरोध कर रहा है।
पाकिस्तान 2016 से सार्क समिट होस्ट करने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, 2016 के बाद भारत ने उरी,
पठानकोट और पुलवामा के आतंकी हमले के बाद इवेंट का बहिष्कार करने का फैसला किया था। भारत ने कहा है
कि समिट होने के लिए पाकिस्तान को ऐसा माहौल बनाना बड़ेगा। यही बात मालदीव ने भी दोहराई है।
सार्क सम्मेलन स्थगित हो जाने से पाकिस्तान की समझ में आ गया होगा कि आतंकवाद पर उसका खेल अब
ज्यादा दिन नहीं चल सकता। दुनिया के सामने उसकी पोल खुल चुकी है और अब भी उसने अपना रवैया नहीं
बदला तो एकदम अकेला पड़ जाएगा। उरी हमले के बाद पाक को अलग-थलग करने की भारतीय रणनीति रंग लाती
दिख रही है। तब भारत ने साफ कर दिया था कि इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन की बैठक में वह हिस्सा
नहीं लेगा। इस घोषणा का मकसद पाकिस्तान को यह संदेश देना था कि हम उससे किसी भी तरह का संबंध तभी
रखेंगे, जब वह आतंकी ढांचों को पालने-पोसने की अपनी नीति से बाज आएगा। उसके बाद बांग्लादेश, भूटान और
अफगानिस्तान ने भी भारत का साथ देते हुए सम्मेलन में शामिल न होने का निर्णय किया।
सार्क का लगातार बहिष्कार करके भारत ने पूरी दुनिया को जता दिया है कि क्षेत्र विशेष को जोड़कर रखने वाला
अकेला तत्व उसका भूगोल नहीं होता। दूसरी चीजें उसकी एकता के लिए ज्यादा मायने रखती हैं। पाकिस्तान जैसा
देश अगर पड़ोसी राष्ट्रों के लिए लगातार समस्या खड़ी करता रहे तो ऐसे किसी सामूहिक प्रयत्न का कोई मतलब ही
नहीं रह जाएगा। देखने की बात है कि ऐसी हरकतों ने आखिर सार्क को कहां पहुंचाया है? इसकी स्थापना 1985
में आपसी सहयोग के जरिए दक्षिण एशिया में शांति, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और आर्थिक समृद्धि हासिल
करने के उद्देश्य से की गई थी। 1994 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साटा) समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
लेकिन, पाकिस्तान के कारण कभी अमन-चैन का माहौल ही नहीं बन पाया, जिससे व्यापारिक गतिविधियों को
बढ़ावा मिलता।
यही कारण है कि साटा विश्व का सबसे कमजोर मुक्त व्यापार संगठन बना हुआ है। विश्व व्यापार में सार्क का
हिस्सा 5 प्रतिशत से भी कम है। आज भी व्यापारिक लेन-देन की प्रक्रिया में बाधाएं बरकरार हैं। सार्क देशों के बीच
लोगों और उत्पादों की आवाजाही काफी मुश्किल है। उनका आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का सिर्फ 10 फीसदी
है। आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन जहां अपने मकसद में काफी आगे बढ़ गए, वहीं सार्क अपनी शुरुआती जगह पर
ही कदमताल कर रहा है। दक्षिण एशिया के और देश भी इसे समझ रहे हैं। पिछले महीने अफगानिस्तान के
राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपनी भारत यात्रा में पाकिस्तान की आतंकी भूमिका की कड़ी आलोचना की थी।
बांग्लादेश भी समझ चुका है कि उसके यहां उत्पात मचा रहे कट्टरपंथियों को कहां से खुराक मिल रही है। हमें अब
एक कदम और आगे बढऩा चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ सख्ती की शर्त पर ही पाकिस्तान को सार्क में
शामिल रहने देना चाहिए।