देश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस का कहर बढ़ता ही जा रहा है

asiakhabar.com | September 8, 2020 | 3:52 pm IST

विकास गुप्ता

भारत और दुनिया में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले रोज रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। दुनियाभर में कुल केस अब
ढाई करोड़ के पार पहुंच गए हैं। जिसके बाद देश में कुल मामले 42 लाख के पार पहुंच गए हैं और 71 हजार से
ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। चिंता की बात ये है कि देश में 30 लाख मामलों से 42 लाख होने में महज 15 दिन का
समय लगा है। आज शाम तक देश में कुल कोरोना मरीजों की संख्या 42 लाख, 04 हजार हो गई है। वहीं देश में
कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों का आंकड़ा 71642 हो गया है। देश में फिलहाल एक्टिव मरीज 882542 हैं।
वहीं इलाज के बाद संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों की संख्या 3250429 है। चिंता तो इस बात की है कि देश के
ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस का कहर बढ़ता ही जा रहा है। इन इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं का अभाव
पहले से ही है।
महामारी की शुरूआत में कोरोना के मामले केवल शहरों तक सीमित थे। ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस कितना
फैला है, इस बारे में सटीक आंकड़े नहीं हैं, वहीं विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर संक्रमण नहीं रोका गया
तो इसके सामुदायिक स्तर पर फैलने की सम्भावना बढ़ जाएगी। शहरों की तुलना में गांवों में संक्रमण की दर
अधिक होना स्वाभाविक है। अप्रैल के अंत तक ग्रामीण इलाकों में सब कुछ ठीक-ठाक था लेकिन प्रवासी श्रमिकों के
सूरत, मुम्बई और दिल्ली से अपने घर लौटने के बाद महामारी ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंच गई। पश्चिम बंगाल
में भी प्रवासियों के लौटने के साथ कोविड-19 के मामलों में वृद्धि हुई। देश में महामारी से सर्वाधिक प्रभावित
राज्यों में शामिल महाराष्ट्र में लॉकडाउन के पांचवें महीने की समाप्ति तक ग्रामीण इलाकों में नए मामलों और
महामारी से होने वाली मौतों में बढ़ौतरी दर्ज की गई है।
इस सच्चाई से आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं कि भारत के गांवों और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में बड़े शहरों की तरह
अस्पतालों और प्रयोगशालाओं की सुविधाएं नहीं हैं। सुनी-सुनाई रिपोर्टों से पता चलता है कि जांच की संख्या सीमित
है। ज्यादातर इलाजरत मरीज महानगरीय इलाकों और उसके आसपास में केन्द्रित हैं। ओडिशा, बिहार जैसे राज्यों में
अगले कुछ सप्ताह में मामले बढ़ने की दर यदि नहीं थमी तो वहां एक बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। पूर्वी राज्यों
में इस महामारी से खतरा काफी अधिक है क्योंकि वहां 75 फीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास
करती है। भारत की 13 0 करोड़ की आबादी का 65 फीसदी हिस्सा गांवों में है। देश के 714 जिलों में कोरोना
वायरस संक्रमण के मामले सामने आए हैं। इस तरह 94.76 फीसदी आबादी खतरे का सामना कर रही है। मानसून
के दिनों में काफी इलाके जलभराव से ग्रस्त हो जाते हैं, वहां संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
जहां तक आर्थिक राजधानी मुंबई का सवाल है तो यहां भी कोरोना के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पूरी मुंबई व्
आसपास में जांच की बेहतरीन व्यवस्था है लेकिन ऐसा लगता है कि मुंबई वासियों में कोरोना का भय खत्म हो
गया है। लोग लापरवाह होते जा रहे हैं। मुंबई के पास ही यदि 20 लाख की आबादी वाले शहर वसई-विरार का
आंकलन करें तो संक्रमण से बचने के लिए लोगों ने मास्क पहनना ही छोड़ दिया है। यदि कोई पहनता भी है तो

गले का हार बना लेता है , तभी 20 लाख की आबादी वाले शहर में रोजाना औसतन 200 नए केस आ रहे है।
ऐसे लोग अपनी जिन्दगी के साथ-साथ परिवार और दूसरों को भी खतरे में डाल रहे हैं। ज्यादा समस्या उन राज्यों
में है जहां बाढ़ का भयंकर प्रकोप छाया हुआ है। बिहार, आंध्र और उत्तर प्रदेश के बाढ़ प्रभावित इलाकों में तो बहुत
बुरा हाल है। प्रशासन को पहले बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों को राहत पहुंचानी है, उनके लिए भोजन और दवाइयों
की व्यवस्था करनी है, वहां महामारी से लड़ना दूसरी प्राथमिकता है।
हम अपनी आर्थिकी कोरोना के भय के भरोसे नहीं छोड़ सकते लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम संक्रमण से
बचाव के कायदे-कानूनों का पालन न करें। दुनिया के विकसित देश भी यह दावा नहीं कर पा रहे कि वे कोरोना के
शिकंजे से मुक्त हो गए हैं। कुछ देशों में तो कोरोना लौट-लौट कर आ रहा है। हरियाणा के सोनीपत में मुरथल के
दो ढाबों में 75 से अधिक कर्मचारियों का कोरोना संक्रमित होना हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। अनुमान है
कि लगभग दस हजार से अधिक लोग इनके सम्पर्क में आए होंगे क्योकि इन ढाबों पर दिल्ली, चंडीगढ़ और पंजाब
जाने वाले यात्री ज्यादा रुकते हैं। ऐसी स्थिति में कांटेक्ट ट्रेसिंग का कोई मतलब नहीं रह जाता। हकीकत तो यह
भी है कि देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी आने की वजह तेजी से हो रही टेस्टिंग भी है। तेजी से हो
रही टेस्टिंग से ही संक्रमण की संख्या को कम किया जा सकता है लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में संसाधनों
की अपनी सीमाएं हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो ग्रामीण भारत में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना है। राज्य
सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का नेटवर्क स्थापित करने की नई योजनाओं पर तेजी से काम
करना होगा। बहरहाल इंसान होने के नाते हमारा दायित्व बनता है कि हम अतिरिक्त सावधानी बरतें। आर्थिक
गतिविधियां, राजनीतिक गतिविधियां अपनी जगह हैं और हमारी सावधानी अपनी जगह है। कोरोना को हराना है तो
हमें कोरोना संक्रमण को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ग्रामीण भारत के लोगों को भी अधिक सतर्कता बरतनी होगी।


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