शिशिर गुप्ता
हर वर्ष 26 अगस्त को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1893 में इसकी शुरुआत न्यूजीलैंड में हुई
थी। यदि भारत के परिवेश में इसकी चर्चा करें तो देश आजादी के बाद महिलाओं को मतदान करने का अधिकार
मिल गया था लेकिन पंचायतो और नगर निकायों में लड़ने का अधिकार तेहतरवें संशोधन के माध्यम से मिला था।
आज इस वजह से हमारे देश की पंचायतों में महिलाओं की पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी बन गई। केन्द्र व
राज्य सरकार हमेशा महिलाओं के उत्थान के लिए काम करती आ रही हैं। स्थिति यह है राजनीति के साथ अन्य
सभी क्षेत्रों में महिलाओं का योगदान बड़े स्तर पर देखा जा रहा है लेकिन वहीं दूसरी ओर महिलाओं पर बढ रहे
अपराधों की वजह से सभी तरक्की शून्य सी लगती है। हर रोज महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की घटनाएं हो रही है।
बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, एसिड अटैक, हत्या, दहेज़ हत्या, हॉनर किलिंग, भ्रूण हत्या के अलावा कई तरह के
घिनौने अपराध के आंकडें बढ़ रहे हैं। आज भी हमारे देश में कुछ लोग लडकियों का तरक्की करना व्यर्थ समझते हैं
जिस वजह से हम हर रोज टैलेंट को मार रहे हैं। जो लोग लडकियां पैदा होने पर अपना दुर्भाग्य समझते हैं वो
गीता व बबीता फोगाट, साइना नेहवाल, मिताली राज के अलावा तमाम इन जैसी लडकियों की जिंदगी को समझ
लें। गांव के परिवेश व मुस्लिम समुदाय में आज भी लडकिय़ों को इस इतना भी हक नही हैं कि वो अपनी मर्जी से
अपनी जिंदगी जी सकें। विरोध करने पर जान से तक मार दिया जाता है।
हमारे देश में तेजी से कामयाबी की ओर अग्रसर होने वाली तस्वीर को कुछ लोगों की वजह से ग्रहण लग रहा है।
महिलाओं को सामाजिक तौर पर स्थान तो दे दिया लेकिन उनके प्रति सोच को साफ करने का काम अभी बाकी है।
सरकार की ओर से शिक्षा के लिए प्रेरित व जागरुक करने के लिए कैंप लगाए जाते व योजनाएं को भी अंजाम देना
जारी है लेकिन साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। हालांकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार
महिलाओं की साक्षरता दर में करीब 13 प्रतिशत की वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन बिहार व अन्य कुछ राज्यों में
महिला साक्षरता दर अभी भी साठ प्रतिशत से नीचे है। हम इस बात को भलिभांति जानते हैं शिक्षा ही ऐसा माध्यम
हैं जिससे हम सभ्य व सश्क्त समाज का निर्माण कर सकते हैं फिर न जाने क्यों अंजान बनकर आने वाली पीढियों
को संकट में डाल रहे हैं। यह बात भी स्पष्ट लडको की अपेक्षा लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई में रुचि अधिक होती है
व शिक्षा के प्रति ज्यादा गंभीर होती है। लेकिन इसके बावजूद लडकियों का ज्यादा पढ़ना व्यर्थ माना जाता है।
पिछले तीन दशकों से बडे व अहम पदों पर महिलाओं को आने से महिला सशक्तिकरण बढ़ा है। समाज में बराबर
का हक मनावाने वाली महिलाओं ने देश व दुनिया में नाम रोशन किया है। लेकिन कुछ लोग ऐसी महिलओं से
प्रेरणा लेने की बजाए उनको गलत नजरिये से देखते हैं। ऐसों लोगों को घटिया मानसिकता की वजह से हम आगे
बढ़ने की स्पीड धीमी पड़ जाती है। लेकिन भारत की मिसाइल महिला कहे जाने टेसी थॉमस, हमारे देश की सबसे
बडी महिला व्यापारी किरन मजमूदार, देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी, पूर्व महिला विदेश सेवा की
अधिकारी निरुपमा रॉव के अलावा तमाम ऐसी दमदार महिलाएं देश व दुनिया के आइडियल बनी हैं। यह सभी
परिवर्तन युग की प्रमाण हैं जिन्होनें महिलाओं को उनका हक व कीमत समझाई है।
दरअसल मामला यह है कि भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में में न जाने कितने देश हैं। हमारे यहां हर
किसी भी चीज को एप्लाई करना बेहद कठिन हैं। यदि शासन व प्रशासन द्वारा दिए गए नियम व पालन या
सरकार द्वारा बनाई गई योजना का फायदा लेना चाहता है तो उसे आसपास के वो लोग इतना नेगेटिव कर देते हैं
जैसे उससे उनको कोई भारी नुकसान हो जाएगा। और जब बात लडकियों व महिलाओं के उत्थान की आए तो वो
ऐसा महसूस करते हैं कि यदि लड़की पढ-लिख कर कुछ बन गई तो उससे हमारा वजूद खत्म हो जाएगा। ऐसे चंद
लोगों की बीमार या यू कहें कि घटिया सोच न जाने कितनी बच्चियों व महिलाओं के सपने कुचले जाते हैं। जबकि
आज हमें पूरी दुनिया में एक अलग नाम व पहचान मिल रही है। हर किसी के जीवन में चुनौतियां होती हैं लेकिन
इस बात को भी कहां भूला देते हैं कि जो धरातल पर मेहनत करके लड़ा नही वह महान योद्धा नही माना जाता।
फिल्म में काम करने वालों को हीरो कहा जाता है लेकिन हीरो शब्द की सच्चाई यह है जो हर तरह की चुनौतियां
से लडकर आगे बढता है उसे असली हीरो कहा जाता है। जितनी स्वतंत्रता व सहयोग हम लडको का करते हैं यदि
इससे आधे से भी कम हम लडकियों का कर दें तो लडकियां बहुत बेहतर कर सकती हैं और जिनको मौका मिलता
हैं वो करके दिखा भी रही हैं। इसलिए सोच को स्वच्छ रखें और बाहरी मन से नही आंतरिक रुप से भी समानता
का अर्थ समझें।