अमेरिका में भारतीयों का कितना मतलब?

asiakhabar.com | August 19, 2020 | 3:12 pm IST

राजीव गोयल

अमेरिका में जब नवंबर माह में होने वाले राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनावों के मामले में भारतीय चुनाव की तरह
मुद्दे उछाले जाने के बारे में लिख रहा था तो कई बार इस मामले के जानकार पत्रकारों से विचार विमर्श करने के
बाद मुझे लगने लगा कि कहीं मैं इस तरह की तुलना करके कोई गलती तो नहीं कर रहा हूं। एक वरिष्ठ पत्रकार
का कहना था कि वहां भारतीय मूल के मतदाता अपनी संख्या के मुताबिक निर्णायक स्थिति में नहीं आते हैं व
उनकी भूमिका संतुलन बिगाड़ने में थोड़ी बहुत ही है।
उन्होंने याद दिलाया कि अमेरिकी प्रशासन की नीति है कि अगर राष्ट्रपति समेत किसी भी अमेरिकी नागरिक का
अपहरण हो जाता है तो वहां की सरकार आतंकवादियों या अपहरणकर्ताओं की कोई मांग नहीं मानेगी। अमेरिकी
एयरफोर्स वन में तो आतंकवादियों द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति के विमान समेत उनका अपहरण कर लिए जाने के
बाद वहां प्रशासन द्वारा इस विमान को अपने लडाकू विमानों द्वारा हवा में ही उड़ा देने का फैसला लेने की बात
कही गई थी। यह बात अलग है कि यह कदम उठाने की नौबत नहीं आती।
बावजूद इसके सबके दिनों-दिन वहां के अश्वेत व भारतीय मूल के मतदाताओं को लुभाने के लिए उम्मीदवारों द्वारा
किए जाने वाले वादे तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बार ऐसा लगता है मानो वहां के ये चुनाव न होकर दिल्ली में होने
वाले विधानसभा व नगर निगम के चुनाव हो। जहां पानी बिजली माफ करने, अवैध कालोनियों को नियमित किए
जाने सरीखे वादे किए जा रहे हैं।
एक नेता का कहना था कि एक राजनीतिक कहावत प्रचलित है कि जब ‘हार जीत की सभावनाएं बढ़ने घटने लगे
तो जलेबियां बांटने लगे। अमेरिका में यही किया जा रहा है। हाल ही में जो बाइडेन ने कहा कि उनका प्रशासन
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भारत की भूमिका की वकालत करेगा। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार
के बाद सदस्य बनाने के लिए भारत की मदद करेगा। वहीं कमला हैरिस ने कहा है कि मुझे अपनी भारतीय
विरासत पर गर्व है।
सोशल मीडिया पर अमेरिका के चर्चित टाइम्स स्क्वायर में 15 अगस्त के अवसर पर अमेरिकी झंडे के साथ
भारतीय तिरंगा झंडा लहराने की तस्वीरे भी वायरल की जा रही है। वहीं कमला हैरिस के विरोधी उन्हें भारतीय व
हिंदू विरोधी करार दे रहे हैं। उनका आरोप है कि उन्होंने खुद को कभी भारतीय नहीं माना। अनुच्छेद 376 खत्म
किए जाने का विरोध किया था। बाइडेन का वादा है कि यदि वह चुनाव जीत गए तो एच-1बी वीजा प्रणाली में
सुधार करेंगे।
ये हालात पैदा होने की वजह वहां भारतीय लोगों की तादाद व अहम क्षेत्र में उनकी भूमिका का बढ़ना है। इसके
साथ ही अमेरिका की राजनीति में उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 2018 की तुलना में

भारतीय अमेरिकियों की जनसंख्या में 20 प्रतिशत वद्धी हो गई है। वहां रहने वाले ज्यादातर भारतीय चिकित्सा,
औषधि विज्ञान व तकनीक व सूचना तकनीक, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। गुजरात से आने वाले
पटेल समुदाय के लोगों का तो मोटल कारोबार पर अधिपत्य है।
यह सब तब है जब भारतीय अमेरिकी की जनसंख्या वहां की कुल जनसंख्या का महज एक फीसदी है जबकि सूचना
तकनीक के क्षेत्र में सिलीकॉन वैली में उनकी संख्या वहां के लोगों की एक तिहाई है। अमेरिका की आठ उच्च
तकनीकी कंपनियां भारतीय मूल के अमेरिकियों द्वारा स्थापित की गई है। इस समय अमेरिका में फार्च्यून 500
की सूची में शामिल की जाने वाली जानी-मानी 2 फीसदी कंपनियेां के सीईओ भारतीय है। इनमें माइक्रोसॉफ्ट,
एल्फाबेट, एबोड, आईबीएम से लेकर मास्टर कार्ड शामिल है। वहां के हर सात डाक्टरो में से एक भारतीय मूल का
है। मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्वास्थ्य देखभाल की सलाहकार एक भारतीय डाक्टर सीमा वर्मा को
बनाया हुआ है।
एक मौटे अनुमान के मुताबिक वहां के 50 फीसदी मोटल्स भारतीय मूल के लोगों के हैं। अब वे लोग वहां की
राजनीति में भी सक्रिय हो रहे हैं। वे टीवी जगत में आने लगे हैं। इनमें अपू की चरित्र भूमिका जानी पहचानी है।
इनके अलावा कलपेन, सुरेश मोदी या कारपेन अजीज आंर्गरी व मिडी केलिग सरीखे जाने माने कलाकार भारतीय
होने के कारण अपनी अलग जगह बना रहे हैं। वहां काम करने वाले भारतीय ग्रीन कार्ड हासिल करने की कोशिश में
हैं ताकि उनके बच्चों का भविष्य संवारा जा सके। कमला हैरिस चाहती है कि वहां आव्रजन को प्रोत्साहित करने
वाले कानून बने। इस संबंध में वे वहां काम कर रहे भारतीय लोगों को स्थायी नागरिक बनाने के लिए सीनेट में
एक बिल लेकर भी आई थी मगर वह पारित नहीं हो सका।
जब भारत में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा अमेरिका के साथ परमाणु करार पर दस्तखत किए जाने का विवाद चल
रहा था तब बड़ी तादाद में भारतीय अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अमेरिका के पक्ष में बोल रहे थे।
हालांकि 1971 में भारत-पाकिस्तान बां युद्ध हुआ था तब अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के बचाव के लिए अपना
सांतवे बेड़ा भेजे जाने के कारण उसके प्रति भारतीय लोगों के मन में नाराजगी बढ़ी थी। अब जब उसका चीन व
पाकिस्तान के साथ तनाव चल रहा है तो भारतीयो का उसके प्रति झुकाव है।
अमेरिका में भारतीय लोगों की वहीं राजनीतिक अहमितयत है जोकि दिल्ली में पुरबियो की है। दिल्ली में तो उत्तर
पूर्व के लोगों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि पिछले कुछ वर्षों से बिहार का छठ पर्व बहुत जोर शोर से
मनाया जाने लगा है। पहले यहां की राजनीति में पंजाबी व बनिया वर्ग हावी था पर कुछ वर्षा से उसका यह स्थान
पुरबियो ने ले लिया है। माना जाता है कि दिल्ली का हर पाचवां मतदाता पुरबिया है। यही वजह है कि भाजपा ने
मनोज तिवारी को अपनी कमान सौंपी तो आप ने भाजपा व कांग्रेस का पुरबियो की मदद से सफाया ही कर दिया।
मुफ्त पानी, बिजली सरीखे मुद्दे से लेकर गोपाल राय, संजय सिंह आदि को पुरबिए नेताओं के रूप में अहमियत
दी और वे लगातार दिल्ली की राजनीति पर हावी है। कांग्रेस ने इसकी शुरुआत महाबल मिश्रा को सांसद बनाकर की
थी। यह कहा जाने लगा है कि ‘जे’ अक्षर से शुरू होने वाली हर जगह चाहे वह जर्नलिस्म (पत्रकारिता) हो, जेएनयू
अथवा झुग्गी-झोपड़ी हर जगह पुरबिए हावी हैं। देखना है कि अमेरिकी चुनाव में दिल्ली के पुरबिए बने भारतीय क्या
कोई भूमिका लिए होंगे?


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