अर्पित गुप्ता
सोशल मीडिया को लेकर इन दिनों देश में तूफान आया हुआ है। कांग्रेस पार्टी के नेता आरोप लगा रहे हैं कि दुनिया
का सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक भाजपा के लिए काम कर रहा है। फेसबुक पर भाजपा नेताओं की
ओर से डाले गए नफरत फैलाने वाले कंटेंट को बढ़ावा देने के आरोप लगाते हुए कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि इसकी
संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराई जाए, जिसे भाजपा ने ठुकरा दिया है। खबर है कि सूचना तकनीक मामलों
की संसदीय समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस के नेता शशि थरूर फेसबुक को तलब करेंगे। यह भी खबर है कि
दिल्ली सरकार फेसबुक की टीम को विधानसभा में तलब करेगी।
फेसबुक के मामले का खुलासा अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने किया है। उसने बताया है कि भाजपा के
कुछ नेताओं के नफऱत फैलाने वाले और भड़काऊ पोस्ट को फेसबुक ने हटाया नहीं। इस बारे में बताए जाने पर
फेसबुक की पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास में कथित तौर पर कहा कि भाजपा के नेताओं की पोस्ट हटाने से कंपनी
को भारत में काम करने में दिक्कत हो सकती है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल के इस खुलासे के बाद से कांग्रेस के नेता
आरोप लगा रहे हैं कि फेसबुक पर भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का कंट्रोल है। यह मामले को बढ़ा-चढ़ा कर
बताना है। कांग्रेस के नेता अपनी सुविधा के हिसाब से सोशल मीडिया में उठे दूसरे विवाद को भूल जा रहे हैं। सोशल मीडिया
का दूसरा मामला सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण के दो ट्विट से जुड़ा हुआ है। उन्होंने न्यायपालिका को लेकर
दो ट्विट किए थे, जिन्हें सर्वोच्च अदालत ने अपनी अवमानना करार दिया और आपराधिक मानहानि का मुकदमा
शुरू किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर को भी फटकार लगाई और कहा कि उसने प्रशांत भूषण की पोस्ट
क्यों नहीं हटाई थी। अदालत ने यह भी कहा कि अवमानना का मुकदमा शुरू होने के बाद पोस्ट हटानी चाहिए थी।
इस पर कंपनी का जवाब था कि अगर अदालत कहे तो वह पोस्ट हटा सकती है, अपने आप पोस्ट हटाने की
उसकी कोई नीति नहीं है। अदालत ने कंपनी की इस सफाई को स्वीकार कर लिया।
सोचें, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अवमानना के जिस मामले को इतना गंभीर माना है कि सारी दुनिया की आपत्तियों के
बावजूद प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया है उसने कंपनी की सफाई स्वीकार कर ली है पर कांग्रेस के नेता यह
साबित करने में लगे हैं कि फेसबुक पर भाजपा और संघ का कंट्रोल है। अगर किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
पर कंट्रोल करना इतना आसान होता तो सारे देश के सत्तारूढ़ दल उस पर कंट्रोल कर लेते। पर हकीकत यह है कि
ये ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अमेरिका जैसे महाबली देश के राष्ट्रपति की पोस्ट हटा देते हैं और राष्ट्रपति ट्रंप
कुछ नहीं कर पाते हैं।
इसलिए फेसबुक पर भाजपा नेताओं की आपत्तिजनक पोस्ट का जो भी मामला है वह एक व्यक्ति की पसंद-नापसंद
से जुड़ा हुआ है। यह कंपनी का पॉलिसी मैटर नहीं है। कांग्रेस को इस बात को समझना चाहिए। कोई कंपनी
नीतिगत तौर पर इस तरह के पोस्ट को बढ़ावा नहीं दे सकती है क्योंकि उन पर पूरी दुनिया की नजर होती है।
असल में सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है। इस पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस पार्टी के विरोध में पोस्ट डाले
जा रहे हैं या सिर्फ भड़काऊ बातें पोस्ट की जा रही हैं। प्रशांत भूषण का समर्थन और विरोध भी इसी प्लेटफॉर्म पर
चल रहा है। मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनके खिलाफ दुनिया भर से जो समर्थन जुटाया जा
रहा है वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही जुटाया जा रहा है। आज अगर राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी किसी
नीतिगत मसले पर सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर उस पर दबाव बना पा रही है तो वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
की वजह से ही संभव हो पा रहा है।
पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चीन, आर्थिकी और कोरोना को लेकर एक वीडियो सीरिज जारी
की थी। पार्टी की ओर से बताया गया कि राहुल के वीडियो 15 करोड़ लोगों ने देखे। इनमें से आधे से ज्यादा लोगों
ने उनकी वीडियो फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही देखी थी। अगर इन दोनों पर भाजपा और संघ का कंट्रोल होता तो
राहुल की वीडियोज को इसका दस फीसदी व्यूज भी नहीं मिल पाते। इसलिए ऐसी बातें कांग्रेस के विरोध को हलका
बना रही हैं।
इसके उलट कांग्रेस, भाजपा और दूसरी तमाम पार्टियों के साथ साथ मीडिया को भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की
कमियों को सामूहिक रूप से सामने लाना चाहिए। इसके गलत इस्तेमाल को कम करने के उपाय खोजने चाहिए।
इसका इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए हो रहा है, दंगे भड़काने के लिए हो रहा है, लोगों या संस्थाओं को बदनाम
करने के लिए हो रहा है, ऐसा न हो, इसके उपाय खोजने चाहिए। यह एक दोधारी तलवार की तरह है, जैसे कोई
भी तकनीक होती है। परमाणु का इस्तेमाल ऊर्जा बनाने के लिए भी होता है और बम बनाने के लिए भी।
अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए किसी गरीब के लिए क्राउड फंडिंग हो जा रही है या किसी के लिए ब्लड
और प्लाज्मा जुटाया जा रहा है तो उसी प्लेटफॉर्म के जरिए हिंसा भी भड़काई जा रही है। इसे कैसे कम किया जाए,
इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। छोटे-छोटे राजनीतिक हितों में उलझने की बजाय इसकी बड़ी भूमिका को
लेकर सवाल होना चाहिए और इसके नकारात्मक इस्तेमाल को कैसे कम किया जाए इस पर साझा तौर से विचार
कर सहमति बनानी चाहिए।