अर्पित गुप्ता
अब महेंद्र सिंह धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हुए नहीं दिखेंगे। क्रिकेट के मैदान पर आंखें उनकी तलाश करेंगी,
प्रतीक्षारत रहेंगी। ऐसा एहसास होगा कि भारत के महानतम फिनिशर को अभी मैदान पर आना है और उनके
‘हेलीकॉप्टर शॉट्स’ वाले ऊंचे-ऊंचे छक्के आनंदित करेंगे। ‘माही’ खिलाड़ी हैं और जब तक खेलते रहेंगे, कमोबेश
छक्के भी दिखाई देंगे और चीते की फुर्ती से, विकेट के पीछे, कैच लपकते या गिल्लियां बिखेरते भी दिखाई देंगे।
वैसे आईपीएल भी एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता है, लेकिन भारत देश के लिए ‘माही’ अब ऑस्टे्रलिया, इंग्लैंड,
साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों की क्रिकेट टीमों के खिलाफ खेलते दिखाई नहीं देंगे। धोनी अचानक
फैसले लेते रहे हैं। उनके परिवार को भी जानकारी नहीं होती कि ‘माही’ के मानस में भविष्य की क्या योजनाएं
प्रारूप ले रही हैं। ऑस्टे्रलिया में टीम इंडिया का दौरा था और टेस्ट मैच खेले जाने थे।
धोनी ने अचानक ही क्रिकेट बोर्ड को सूचित किया कि वह टेस्ट क्रिकेट नहीं खेलेंगे। वह क्रिकेट के इस फॉर्मेट से
संन्यास ले रहे हैं। सीरीज के दौरान ही धोनी के इस फैसले ने सभी को चौंकाया ही नहीं, स्तब्ध भी कर दिया था।
बहरहाल उन्होंने टेस्ट क्रिकेट छोड़ी और विराट कोहली को नया कप्तान बना दिया गया, लेकिन इतिहास याद
रखेगा कि धोनी की कप्तानी में ही टीम इंडिया ने ‘नंबर वन’ होने का गौरव हासिल किया। आज भी टेस्ट क्रिकेट
का राजमुकुट टीम इंडिया के सिर-माथे पर शोभायमान है। यकीनन यह क्रिकेट खेल की दुर्लभ उपलब्धि है। बहरहाल
संन्यास और सेवानिवृत्ति जीवन की अनिवार्य अवस्थाएं हैं। ‘माही’ ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने का
निर्णय किया है, तो उसके मायने ये नहीं हैं कि धोनी के युग का अंत हो गया, बल्कि धोनी के कालखंड की क्रिकेट
और उनके शांत, सहज और स्वाभाविक नेतृत्व का इतिहास तैयार हो रहा है।
बेशक धोनी की क्रिकेट के 16 सालों में टीम इंडिया की दशा और दिशा बदली है। भीतर का माहौल भी बदला है।
धोनी ने जूनियर क्रिकेटरों को प्राथमिकता दी है। कुलदीप यादव और युजवेंद्र चाहल सरीखे स्पिनर चमके हैं। अश्विन
और जडेजा की गेंदबाजी में धार आई है। बहुत विनम्र और ‘डाउन टू अर्थ’ शख्सियत रहे हैं ‘माही’। दरअसल धोनी
दुनिया के ऐसे अभूतपूर्व कप्तान रहे हैं, जिनके नेतृत्व में भारत ने टी-20 और एकदिनी क्रिकेट के विश्व कप जीते
और चैम्पियंस ट्रॉफी पर भी कब्जा किया। एक तरह से भारत क्रिकेट के सभी प्रारूपों में ‘विश्व-विजेता’ बना। धोनी
क्रिकेट के भाष्यकार, गणितज्ञ, चाणक्य की तरह रणनीतिकार और महानायक थे। क्रिकेट उनकी सांसों और जुनून
में बसी थी। खेलने की पिच सूंघ कर वह तय कर लेते थे कि खेल किस दिशा में बढ़ेगा। उसी आधार पर वह
गेंदबाजों को एक निश्चित जगह पर गेंद करने को कहते थे। उस सलाह के नतीजे भी मिलते थे। धोनी की प्रतिभा
और क्रिकेट शख्सियत को कसौटी पर परखा था ‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन तेंदुलकर ने और 2007 में टी-20
विश्व कप से पहले बोर्ड को सलाह दी थी कि कप्तानी धोनी को दी जाए।
उस ‘अग्नि-परीक्षा’ का सच हम सभी जानते हैं। दरअसल हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली रही है कि उसने दो महानतम
क्रिकेटरों को खेलते और संन्यास लेते देखा है। यकीनन सचिन के बाद धोनी का नाम ही आता है। हालांकि दोनों के
खेल की शैली भिन्न थी। दरअसल धोनी टीम इंडिया के ‘सर्वश्रेष्ठ फिनिशर’ रहे। उन्होंने 47 पारियां नाबाद खेलीं
और 45 में भारत जीता। एकदिनी मुकाबलों में नौ बार छक्के ठोंक कर धोनी ने टीम इंडिया को जीत दिलाई थी।
विकेटकीपर के तौर पर धोनी ने सबसे ज्यादा 359 छक्के मार कर विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया। उनके बाद
गिलक्रिस्ट के 259 और मैक्कुलम के 208 छक्के थे। भारत के वह सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर थे। दुनिया में उनसे आगे
बाउचर और गिलक्रिस्ट ही थे। वैसे एकदिनी मैचों में 123 स्टंपिंग का भी विश्व रिकॉर्ड धोनी के नाम है। टी-20
में उन्होंने कुल 91 शिकार किए, जिनमें 34 स्टंपिंग के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड धोनी के हिस्से दर्ज है। धोनी ने कुल
रन 17, 266 बनाए और श्रीलंका के पूर्व कप्तान एवं विकेटकीपर कुमार संगकारा के 17, 840 रनों के बाद ही
उनका स्थान है। 2019 के विश्व कप के सेमीफाइनल में भारत न्यूजीलैंड से पराजित हो गया था। उसके बाद
धोनी क्रिकेट से दूर थे। कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन धोनी ने अब अचानक घोषणा कर अपने फैसले से देश
और दुनिया को अवगत कराया है। धोनी को भविष्य की ढेरों शुभकामनाएं…लेकिन क्रिकेट अब भी उनकी ओर देख
रही है।