विकास गुप्ता
वर्तमान में श्रमिकों का पलायन एक देश से दूसरे देश को और एक राज्य से दूसरे राज्य को भारी संख्या में हो रहा
है। एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को श्रम का पलायन दो कारणों से होता है। पहला कारण भौगोलिक है, जैसे बिहार में
कृषि बहुत आराम से हो जाती थी, इसलिए वहां के लोगों ने औद्योगीकरण के लिए विशेष प्रयास नहीं किया। दूसरी
तरफ पंजाब में भाखड़ा बांध के कारण सिंचाई का विस्तार हुआ और वहां श्रम की मांग बढ़ी। इस प्रकार बिहार के
आरामदेह भूगोल और भाखड़ा के सिंचाई के भूगोल के कारण बिहार से पंजाब को श्रम का पलायन हुआ। पलायन
का दूसरा कारण शासन की गुणवत्ता है। आज उत्तर प्रदेश के श्रमिक सूरत को पलायन कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश के
उद्यमी भी सूरत को पलायन कर रहे हैं।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश का उद्यमी उत्तर प्रदेश के श्रमिक को सूरत में रोजगार दे रहा है। वहीं उत्तर
प्रदेश का उद्यमी उत्तर प्रदेश में उसी श्रमिक को रोजगार देने को स्वीकार नहीं करता है। आज के युग में माल की
ढुलाई आसान है, इसलिए कपड़े जैसे उद्योग को उतनी ही आसानी से सूरत में चलाया जा सकता है जितना कि
उत्तर प्रदेश में। किसी समय उत्तर प्रदेश में टांडा और बनारस में विशाल कपड़ा उद्योग था, लेकिन उत्तर प्रदेश के ये
कपड़ा उद्यमी आज टांडा में उद्योग चलाने के स्थान पर सूरत को स्वयं पलायन कर रहे हैं। कारण यह कि
गुजरात की तुलना में उत्तर प्रदेश में शासन की गुणवत्ता न्यून है। यहां पर अधिकारियों का रुख उद्यमी से
अधिकाधिक वसूलने का होता है। नेताओं और दबंगों द्वारा वसूली की जाती है। यहां उद्योग को आगे बढ़ाने में
व्यवधान आते हैं, इसलिए उत्तर प्रदेश का उद्यमी उत्तर प्रदेश से पलायन कर रहा है। कोविड ने बिहार, उत्तर प्रदेश
और झारखंड के तमाम श्रमिकों को मेजबान राज्यों से अपने मूल राज्य को वापस आने के लिए मजबूर कर दिया
है। इनके लिए हमारे सामने दो विकल्प हैं।
एक यह कि हम इन श्रमिकों को पुनः उन मेजबान राज्यों में भेजने की व्यवस्था करें जहां ये पहले कार्यरत थे।
दूसरा यह कि हम इनके लिए मनरेगा, खाद्य सबसिडी, बेरोजगारी भत्ता इत्यादि जन कल्याणकारी कार्यक्रमों को
लागू करें जिससे ये अपने मूल राज्य में ही अपना जीवनयापन कर सकें। मूल राज्य में इनको समाहित करने से
तीन समस्याएं पैदा होती हैं। पहली समस्या यह कि ये प्रवासी श्रमिक सूरत में कपड़ा बुनाई के लूम को चलाने एवं
मरम्मत इत्यादि को करने अथवा हीरों को तराशने की दक्षता हासिल कर चुके हैं। वे वहां 1000-1500 रुपए तक
दैनिक वेतन पाते थे, और इससे भी ज्यादा वे देश की आय में जोड़ते थे, मान लें 2500 रुपए। जब हम इन्हें
वापस अपने गांव ले आते हैं तो यहां पर मनरेगा के अंतर्गत इन्हें मिट्टी उठाने का कार्य करना होगा जिस कार्य का
देश की आय में योगदान कुल 300 रुपया प्रतिदिन है और इन्हें वेतन मात्र 200 रुपए प्रति दिन मिलेगा। इसलिए
इनको घरेलू राज्य में समाहित करने से देश के आर्थिक विकास का हृस होगा। जो व्यक्ति देश की आय में एक
दिन में 2500 रुपए जोड़ सकता था, वह अब केवल 300 रुपए ही जोड़ेगा। अपने मूल राज्य में श्रमिक को
समाहित करने में दूसरी समस्या यह है कि कृषि में श्रम को समाहित करने की सीमा है। आज विकसित देशों में
कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत से भी कम कृषि के क्षेत्र में कार्यरत है। अपने देश में स्वतंत्रता के समय लगभग
50 प्रतिशत जनता कृषि पर आधारित थी जो आज घट कर 18 प्रतिशत हो गई है।
आर्थिक विकास के साथ कृषि का महत्त्व घटता जाता है। ऐसे में इन वापस आए श्रमिकों को कृषि में समाहित
करना इन्हें उस क्षेत्र में प्रवेश कराना होगा जहां पहले ही आय न्यून है, जैसे इन्हें गड्ढे में धकेला जा रहा हो।
इनके प्रवेश करने से कृषि में श्रम की उपलब्धि बढ़ेगी, कृषि श्रमिक के वेतन घटेंगे, इन वापस आए श्रमिकों की
आय और घटेगी। तीसरी समस्या यह है कि मूल राज्यों को इन्हें मनरेगा इत्यादि में रोजगार देने के लिए सरकारी
खर्च बढ़ाने होंगे। ये राज्य जो रकम सड़क अथवा अस्पताल बनाने के लिए उपयोग कर सकते थे, उसका उपयोग ये
इन श्रमिकों को जीवनयापन करने के लिए देने में करेंगे। चौथा बड़ा नुकसान यह है कि मेजबान देश में श्रमिक की
उपलब्धता कम हो जाने के कारण वहां मशीनों का उपयोग बढ़ेगा। जैसे पंजाब में हार्वेस्टर का और सूरत में
ऑटोमेटिक मशीनों का उपयोग बढ़ेगा और इन राज्यों में श्रम की मांग स्थायी रूप से कम हो जाएगी। गुजरात और
पंजाब में श्रम की मांग कम होने का अर्थ होगा कि संपूर्ण देश में श्रम की मांग कम होगी और श्रम का अस्तित्व
कमजोर होगा। इन तमाम कारणों से सरकार को चाहिए कि वापस आए श्रमिकों को शीघ्रातिशीघ्र उनके मेजबान
राज्यों में पहुंचाने की जुगत करे। इस दिशा में सरकार को निम्न कदमों पर विचार करना चाहिए।
पहला यह कि कानून बनाकर सभी प्रवासी श्रमिकों को आश्वासन देना चाहिए कि यदि कभी दोबारा लॉकडाउन जैसी
परिस्थिति बनी तो उन्हें मेजबान देश में न्यूनतम जीविका उपलब्ध करा दी जाएगी। दूसरा कार्य यह कि वापस आए
श्रमिकों को मूल राज्य में ही उच्च कोटि के रोजगार उत्पन्न कराने के प्रयास करने होंगे। इसके लिए सुशासन पर
ध्यान देना होगा कि उत्तर प्रदेश का उद्यमी उत्तर प्रदेश में ही उद्योग लगाए और यहीं श्रमिकों के लिए रोजगार
बनाए। तीसरा यह कि उच्च कीमत के कृषि उत्पाद जैसे गुलाब अथवा ग्लाइडोलस के फूलों के उत्पादन के लिए
मिशन बनाना चाहिए। हर डिवीजन में एक संस्था को मिशन मोड पर कार्य देना चाहिए कि उस क्षेत्र के लिए
उपयोगी कीमती कृषि उत्पादों को बढ़ाए जिससे कि कृषि में ही इन लोगों को उच्च वेतन मिल सके। चौथा यह कि
मूल राज्यों को नेट आधारित रोजगार उत्पन्न करने के लिए प्रयास करने चाहिए। जैसे हर जिले में विदेशी भाषाओं
को पढ़ाने की संस्था बनाई जा सकती है जिसके आधार पर हमारे युवा एक विदेशी भाषा से दूसरी विदेशी भाषा में
अनुवाद करके अपनी जीविका चला सकें। जैसे दरभंगा का युवक जर्मन से जापानी में ट्रांसलेशन कर सके। इन
कदमों को उठाने से वापस आए श्रमिकों को अपने मूल राज्य में समाहित करके भी लाभ अर्जित किया जा सकता
है।