विकास गुप्ता
वर्तमान सरकारों द्वारा किये जाने वाले दावों और ढिंढोरों पर यदि विश्वास करें तो एक बार तो ऐसा लगेगा गोया देश को स्वतंत्रता ही अभी चंद वर्षों पूर्व ही मिली है। दावे
भी ऐसे जिनपर लंबी टी वी डिबेट तो ज़रूर हो चुकी हैं,मंत्रीगण प्रेस काँफ़्रेंस कर उन दावों से संबंधित हवाई क़िले
भी बना चुके हैं,विज्ञापनों पर भी सैकड़ों करोड़ रूपये ख़र्च किये जा चुके हैं,शासक वर्ग द्वारा अपनी पीठें भी ख़ूब
थपथपाई जा चुकी हैं। परन्तु आज उन दावों का हश्र क्या है,धरातल पर कहाँ हैं वह दावे,कोई इन सवालों का जवाब
देने वाला भी नहीं,न ही इनसे कोई पूछने वाला है। याद कीजिये जब देश में सौ स्मार्ट बनाने जैसा सब्ज़ बाग़ 6
वर्ष पूर्व दिखाया गया था। गंगा सफ़ाई अभियान को लेकर तरह तरह के भावनात्मक वादे किये जा रहे थे ,स्वच्छता
अभियान,गौ संरक्षण के वादे,दावे और भावनात्मक बातें आदि सब कहाँ हैं किसी को नहीं पता। मगर बड़ी ढिटाई
के साथ अभी भी यही कहा जा रहा है कि हमारा देश इक्कीसवीं सदी का भारत बनने की दिशा में अग्रसर है।
आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन के ढोल, ज़ोर शोर से पीटे जा रहे हैं।
परन्तु देश की असली हालत क्या है उसे समझना हो तो
बिहार जैसे राज्यों में बाढ़ के हालात और इससे प्रभावित जनता की दुर्दशा की तरफ़ नज़रें उठाकर देखिये ।
राजधानी दिल्ली को बारिश में डूबते हुए देखिये। हज़ारों करोड़ ख़र्च हो जाने के बावजूद गंगा नदी की दुर्दशा देखिये।
लगभग पूरे देश में सड़कों पर विचरण करते आवारा पशु जिनमें गोवंश की बढ़ती संख्या और इससे रोज़ाना होने
वाली सैकड़ों दुर्घटनाएँ देखिये। गोया सरकारी दावों के विपरीत हमारा देश इक्कीसवीं सदी का भारत बनने की दिशा
में आगे बढ़ने के बजाए दशकों पीछे जाता दिखाई दे रहा है।
इन दिनों मानसून की बारिश देश के अधिकांश भागों में हो
रही है। अनेक राज्यों में नए नाले व नालियां बनवाए गए हैं या बनवाए जा रहे हैं। शहरों की सड़कों व गलियों का
निर्माण या इनकी मरम्मत कराई गयी है। यह सड़क व गली निर्माण जनता को सुख देने के बजाए कष्टकारी
साबित हो रहे हैं। भ्रष्टाचार की छत्रछाया में निर्मित इन सड़कों व गलियों को ठेकेदारों द्वारा प्रशासन की मिली
भगत से तोड़ कर बनाने के बजाए बार बार ऊँचा किया जाता है। गहरी नालियों को छिछला कर दिया गया है।
सीवर की जो पाइप लाइनें बिछाई गई हैं या उनके जो मेनहोल बनाए गए हैं वे या तो क्षति ग्रस्त हैं या अवरुद्ध
हैं। परिणाम स्वरूप मामूली बारिश में या कभी कभी तो बिना बारिश के ही ये सीवरेज मेनहोल ओवरफ़्लो हो जाते
हैं और लोगों के घरों में सीवरेज के मेन होल का कीड़ा मकोड़ा युक्त गन्दा दुर्गंध पूर्ण पानी वापस आने लगता है।
इसी तरह सड़कें व गलियाँ ऊँची होने के चलते तमाम लोगों के मकान नीचे व सड़क गली का स्तर ऊँचा हो गया
है। नतीजतन मामूली सी बारिश में भी गलियों में पानी भर जाता है और वही पानी लोगों के घरों में भरने लगता
है।
अन्य राज्यों की तरह हरियाणा में भी इसी अंदाज़ से राज्य
के नगरपालिका व नगर निगम क्षेत्रों में तथाकथित 'विकास कार्य' किये गए हैं। सड़कें व गलियाँ ऊँची हो गयी हैं
और लोगों के मकान या दुकानें जो साधारण व्यक्ति अपने पूरे जीवन में मुश्किल से ही एक बार बना पाता है,वे
डूब रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि मकानों में गन्दा बदबूदार नाली व सीवर का पानी प्रवेश होने के बाद घर के साज़
सामन भी भीग कर चौपट हो जाते हैं। सोने पर सुहागा यह कि शहरों में जो सफ़ाई कर्मचारी नियमित रूप से
नालियों की सफ़ाई किया करते थे वे भी आना बंद हो चुके हैं। किसी नगर निगम या नगर पालिका के कर्मचारियों
को तनख़्वाहें नहीं मिलतीं या देर से मिलती हैं,कहीं उनकी संख्या कम है कहीं उन्हें उनकी दैनिक ड्यूटी से मुक्त
कर किसी वी आई पी क्षेत्र में लगा दिया जाता है या दूसरे अवरुद्ध नालों की सफ़ाई के नाम पर नियमित ड्यूटी से
हटा लिया जाता है। गोया आम नागरिकों को सड़कें गलियाँ ऊँची करा कर उन्हें उनके हाल पर डूबने व बदबूदार
पानी में बीमार होकर जीने-मरने के लिए छोड़ दिया गया है। पिछले दिनों मात्र एक घंटे की तेज़ बारिश मेंअम्बाला
के सेक्टर 9 व 10 के बीच का मुख्य मार्ग तथा अग्रसेन चौक के आसपास का क्षेत्र तथा शहर के और भी कई
इलाक़े पानी में डूब गए। यदि आप किसी से इन बातों की शिकायत करें तो जवाब मिलेगा कि आपका घर
क्या,उनका भी घर डूबा है,आपकी गली मोहल्ला ही क्या अमुक मोहल्ला या सेक्टर भी डूबा हुआ है। और कुछ नहीं
तो दिल्ली डूब रहा है,बिहार बह रहा है इस तरह के जवाबों से आपकी शिकायत का तुरंत बेहयाई पूर्ण ज़ुबानी
'समाधान' करने की कोशिश की जाती है।
उधर सरकारों की प्राथमिकताओं में पार्क का
नवीनीकरण ,पुराने तालाब के नवीनीकरण,बने बनाए मज़बूत व ऐतिहासिक घंटा घर को गिराकर नया स्मारक
बनाना,चौक चौराहों पर नए नए लोक लुभावने स्मारक स्थापित करना,और इन सब निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार को
प्रश्रय देना आदि शामिल है। गलियों में सफ़ाई कर्मचारियों का नियमित रूप से आना बंद हो चुका है। स्वच्छता
अभियान के तहत सरकार ने घरों से कूड़ा उठवाने की योजना बनाई थी। वह मुंह के बल गिर चुकी है। अब निजी
स्तर पर कुछ कूड़ा उठाने वाले घर घर जाते हैं और कूड़ा उठाने बदले 50 रूपये प्रति घर के दर से पैसे लेते हैं।
सरकार ने स्वच्छता अभियान के लिए अपने चहेतों से सैकड़ों करोड़ की बाल्टियां,टब,कूड़ेदान,रेहड़ी,रिक्शा आदि न
जाने क्या क्या ख़रीद लिया। ख़रीद फ़रोख़्त करने वालों का तो उल्लू सीधा हो गया जनता का उल्लू टेढ़ा का टेढ़ा
ही बना रहा। लिहाज़ा सरकार को अपनी पीठ थपथपानी तो बंद करनी ही चाहिए साथ ही जो लोग सरकार के
लोकलुभावन झांसों में फँस कर अपने इन बुनियादी अधिकारों से वंचित रहकर भी सरकार से सवाल नहीं करते या
उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं उन्हें भी अपने स्थानीय जन प्रतिनिधियों से सवाल पूछना चाहिए कि आख़िर हमारी
यह दुर्दशा क्यों ?क्या इसी दिन के लिए आप हमसे वोट मांगते हैं ? उनसे ज़रूर पूछिए कि जब शहरों में नाली
नाले अवरुद्ध हैं लोगों के मकान डूब रहे हैं, क्या यही इक्कीसवीं सदी का हिंदुस्तान है ?