हमारी बोलचाल, प्यार, उलाहनों और कहावतों में रचे बसे है श्रीराम

asiakhabar.com | August 8, 2020 | 3:42 pm IST

शिशिर गुप्ता

राम-राम जी। हरियाणा में किसी राह चलते अनजान को भी ये ‘देसी नमस्ते’ करने का चलन है। यह दिखाता है कि
गीता और महाभारत की धरती माने जाने वाले हरियाणा के जनमानस में श्रीकृष्ण से ज्यादा श्रीराम रचे-बसे हैं।
हरियाणवियों में रामफल, रामभज, रामप्यारी, रामभतेरी जैसे कितने ही नाम सुनने को मिल जाएंगे। रामनगरी

अयोध्या में 5 अगस्त रामकथा का नया अध्याय है, यह 492 वर्ष तक चली संघर्ष-कथा का अपना 'उत्तरकांड' है।
अपनी माटी, अपने ही आंगन में ठीहा पाने को रामलला पांच सदी तक प्रतीक्षा करते रहे तो रामभक्तों की
'अग्निपरीक्षा' भी अब पूरी हुई।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ हिम्मत सिंह के अनुसार हरियाणा के आम जनमानस में
बरसात होने पर रामजी खूब बरस्या या बरसात न होने पर रामजी बरस्या कोनी का उलाहना सुनने को मिलेगा।
किसी से अच्छा प्यार-पहचान जताने के लिए उस गेल्यो बढ़िया राम-राम है या अनजानापन जताने के लिए उसतै
तो मेरी राम-राम बी कौना, इस्तेमाल करते हैं। यहां सांग में राम के प्रसंग जुड़े हैं तो भजनों में भी राम का जिक्र
मिलता है। लाड्डू राम नाम का खाले नै हो ज्यागा कल्याण.. या मनै इब कै पिलशन मिल जा मैं तो ल्याऊ राम
की माला… जैसे हरियाणवी भजन हिट रहे हैं। किसी को सांत्वना देने के लिए राम भली करैगा या आंधे की माक्खी
राम उड़ावै जैसी कहावतें हैं।
रामायण पर चार पीएचडी करवा चुके 90 वर्षीय डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा कहते हैं कि सन् 1999 तक हिंदी भाषी
क्षेत्रों में राम व रामायण पर 150 से ज्यादा शोध थे। अब इनकी संख्या 250 से ज्यादा होगी। गैर हिंदी प्रदेशों में
भी काफी शोध हुए हैं। हरियाणा व हिंदी भाषी क्षेत्र में राम के लोकजीवन में रचने बसने का श्रेय कई संतों व
कवियों और आर्य समाज को जाता है। कबीर को निम्न जाति का मानते हुए उस काल में मंदिरों में नहीं जाने देते
थे। तब कबीर ने राम को निर्गुण मानते हुए प्रचार किया।
पहले आदि कवि वाल्मीकि, संत रविदास, नामदेव ने निर्गुण रूप का प्रचार किया। हरियाणा में आर्य समाज का
काफी प्रभाव रहा है और आर्य समाज ने राम को आदर्श पुरुष माना है। प्रदेश में कबीरपंथ का प्रचार करने के लिए
डेरे भी हैं। कबीर के दोहों में रा को छत्र और म को माथे की बिंदी माना है। यानी सभी को रक्षा व सम्मान का
प्रतीक माना है। हरियाणा के पुराने सांगों में राम के प्रसंगों का खूब जिक्र होता रहा है, इस वजह भी पीढ़ी दर पीढ़ी
राम की असर जनमानस है, जबकि कुरुक्षेत्र जैसी धर्मनगरी समेत प्रदेश में कहीं भी श्रीराम के प्राचीन मंदिर नहीं
हैं।
हरियाणा के डॉ. रोहताश ने राम व रामायण पर दो शोध किए हैं। एक रामराज्य की कल्पना व दूसरा रामायण में
नैतिक मूल्य व राजनीतिक दर्शन पर है। राजनीति में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली आया राम-गया राम की
कहावत भी हरियाणवी राजनीति से निकली है। जब 1967 में एक विधायक ने एक ही दिन में 3 बार में दल-बदल
किया था। हरियाणा के गांव मुंदडी में लव-कुश ने रामायण कंठस्थ की थी और सीवन गांव में माता सीता समाई
थी
कैथल दडी में भगवान राम व सीता के पुत्रों लव-कुश ने महर्षि वाल्मीकि से इसी तीर्थ पर रामायण को कंठस्थ कर
दिया था, जिसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने मौन धारण कर दिया था। इससे ही गांव का नाम मुंदडी हो गया। इस
तीर्थ पर शिव, हनुमान व लव-कुश के मंदिर हैं। मंदिर के गर्भगृह की भित्तियों पर राम, लक्ष्मण को कंधे पर बैठाए

हुए हनुमान, गोपियों के साथ कृष्ण, रासलीला व गणेश इत्यादि के चित्र बने हुए हैं। नारद पुराण के अनुसार चैत्र
मास की चतुर्दशी को इस तीर्थ में स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मंदिर के सरोवर की खुदाई से कुषाणकाल (प्रथम-द्वितीय शती ई.) से लेकर मध्यकाल 9-10वी शती ई. के मृदपात्र
एवं अन्य पुरावशेष मिले थे। जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है। यहां महर्षि वाल्मीकि संस्कृत
यूनिवर्सिटी भी बनाई जा रही है।
वहीं, कैथल के गांव सीवन या शीतवन को जनमानसे जनकनंदिनी सीता जी से संबंधित मानती है। प्रचलित
विश्वास के अनुसार सीता इसी स्थान पर धरती में समा गई थीं। इसीलिए इस तीर्थ को स्वर्गद्वार के नाम से भी
जाना जाता है। इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत एवं वामन पुराण के अतिरिक्त पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, कूर्म
पराण, नारद पुराण तथा अग्नि पुराण में भी पाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि यही शीतवन अपभ्रंश हो
कर परवर्ती काल में सीतवन के नाम से विख्यात हो गया। वामन पुराण में इस तीर्थ को मातृतीर्थ के पश्चात् रखा
गया है।
राममंदिर आंदोलन के पलों को हरियांवासी कभी भूल नहीं सकते, जब गांव-गांव राममंदिर के लिए रामशिलाएं आई
और देश के असंख्य लोग कारसेवा के लिए अवधपुरी की तरफ कूच कर गए थे। आधुनिक भारत का राममंदिर
सत्य, अहिंसा और न्यायप्रिय भारत की अनुपम भेंट है। देश के प्रधानमंत्री के अनुसार यह सर्वसत्य है कि यह
मंदिर तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक बनेगा। ये शाश्वत मंदिर आस्था और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा।
वास्तव में हमें जब भी कोई काम करना हो तो हम भगवान राम की ओर देखते हैं। भगवान राम की जय बोलते
हैं। राम हमारे मन में बसे हैं। राम हमारी संस्कृति के आधार हैं।


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