संयोग गुप्ता
अब कोरोना वायरस की समीक्षा करने का वक्त आ गया है। कई स्तरों पर आकलन किया जा रहा है कि संक्रमण
घटने लगा है। कमोबेश भारत में मृत्यु-दर औसतन दो फीसदी हो गई है, जो बड़े देशों की तुलना में बेहतर है।
संक्रमित मरीजों की संख्या 16 लाख को पार कर गई है, तो कोरोना वायरस से स्वस्थ होने वाले भी 10.20 लाख
से अधिक हैं, लेकिन बुधवार तक 24 घंटे के दौरान पहली बार 52,000 से ज्यादा संक्रमित मरीज सामने आए
हैं। बहरहाल लोगों के स्वस्थ होने के आधार पर ही रिकवरी रेट तय किया जाता है, जो अब 64 फीसदी से ज्यादा
हो गया है।
बेशक बीते एक सप्ताह के दौरान 49-50 हजार नए मरीज सामने आते रहे हैं, लेकिन यह भी गौरतलब है कि अब
5.25 लाख से अधिक टेस्ट हररोज किए जा रहे हैं। संक्रमण का रोजाना का आंकड़ा, बेशक, अमरीका और ब्राजील
से भी ज्यादा है, मौतें उन देशों की तुलना में ज्यादा हो रही हैं, लेकिन हम अपने देश की 138 करोड़ से ज्यादा
की आबादी के परिप्रेक्ष्य में ही आकलन करेंगे। भारत में संक्रमण की औसत दर आठ फीसदी है। दिल्ली जैसे राज्य
में तो यह पांच फीसदी के करीब है। लिहाजा यह स्थिति संतोषजनक है। लेकिन अभी से यह व्याख्या करना उचित
नहीं है कि कोरोना वायरस का ‘पीक’ गुजर चुका है अथवा गुजरने की प्रक्रिया में है। कोरोना संक्रमण कम हो रहा
है, लिहाजा हम कोरोना-मुक्त हो रहे हैं। फिलहाल ऐसे मुगालतों से बचें।
यदि टेस्ट जांच के आधार पर विश्लेषण करें, तो फिलहाल हमारी 1.5 फीसदी आबादी का ही सच सामने आया है
कि कितने संक्रमित हैं और कितने संक्रमित होकर स्वस्थ हो चुके हैं। सिर्फ इतनी-सी जांच के आधार पर कोरोना
वायरस के प्रभावों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक का कहना है कि यह नया
वायरस है, लिहाजा इसकी अगली करवट क्या होगी, यह कहना अभी असंभव है। अभी तो दुनिया कोरोना के
मौजूदा कहर को झेल रही है। करीब सात लाख मौतें हो चुकी हैं। यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है, लेकिन कोरोना
की दूसरी और तीसरी लहर की संभावनाओं से खौफ पैदा किया जा रहा है। यह असंगत सोच है। कोरोना के
अलावा कुछ और बीमारियां ऐसी हैं, जिनसे मनुष्य लड़ता रहा है और अपना अस्तित्व बरकरार रखा है। कोरोना
फैलता रहेगा, तो उसका टीका या कोई दवा के बाजार में आने का भी वक्त हो जाएगा। बहरहाल हमने कोरोना
वायरस की समीक्षा करने से अपनी बात शुरू की थी। भारत में मात्र 3 फीसदी राज्यों और शहरों में लॉकडाउन शेष
है, बाकी देश अनलॉक हो चुका है।
बाजार, उद्योग-धंधे, सरकारी और निजी कार्यालय खुल चुके हैं। बेशक कोरोना से जुड़ी तालाबंदी ने करीब 10
करोड़ लोगों की नौकरियां छीन ली थीं, लेकिन नई नौकरियों के आमंत्रण, नए रोजगार भी मिल रहे हैं। जो नौकरी
की मुख्यधारा से पिछड़ चुके हैं, वे भी किसी न किसी काम में व्यस्त होंगे! देश में औसतन बेरोजगारी-दर 7-8
फीसदी के बीच झूल रही है। यह डरावना प्रतिशत नहीं है, बल्कि मानना चाहिए कि वैश्विक महामारी की जकड़न से
मुक्त होकर अर्थव्यवस्था खिलखिलाने लगी है। मायूसी, अवसाद और नकारात्मक प्रतिक्रिया के भी उदाहरण मौजूद
होंगे। अनलॉक-तीन में जिम और योग केंद्र खोलने की इजाजत दी गई है। सिनेमा हाल खोलने की भी चर्चा थी, न
जाने क्या हुआ? यदि सरकार मेट्रो, अन्य रेलगाडि़यों और ज्यादा से ज्यादा बसें खोलने की भी पहल करती, तो
अनलॉक ज्यादा सुविधाजनक और सार्थक होता, क्योंकि सार्वजनिक परिवहन में लगी मोटी अर्थव्यवस्था भी संभल
जाती। अब तो वे ऋणात्मक अवस्था में पहुंच रहे हैं। अब तक यह तो साबित हो चुका है कि कोरोना संक्रमण
फैलने का आधार भीड़ ही नहीं है।
कुछ राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री और फिल्मों के महानायक सरीखे अतिविशिष्ट चेहरे इस दौर में भीड़ से बचकर रहे
हैं, लेकिन फिर भी कुछ हस्तियां संक्रमित हुई हैं। संक्रमण से इतना खौफजदा रहना था, तो फिर देश में लॉकडाउन
ही होना चाहिए था। अब भी बंदिशें कई हैं और हमारे आर्थिक हालात प्रभावित हो रहे हैं। अभी 50 फीसदी
कामकाज की बहाली नहीं हो पाई है, लिहाजा हमारा आग्रह है कि कोरोना वायरस और उससे उपजी परिस्थितियों
की सम्यक समीक्षा की जानी चाहिए। कोरोना को सिर्फ डर और मौत का वायरस ही नहीं मान लेना चाहिए। मोर्चे
पर जिंदगी के साथ कामकाज के खुलेपन को भी तैनात करें।