विकास गुप्ता
पिछले चार वर्षों से हमारी जीडीपी की विकास दर लगातार गिर रही थी। ऊपर से कोविड-19 ने एक और बड़ा
झटका दे दिया है। इस विषम परिस्थिति में देश का एक वर्ग और कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं हमें आशा दिला रही हैं
कि हम विदेशी निवेश हासिल करके आगे बढ़ सकते हैं। चीन से नाराजगी के कारण चीन को छोड़कर जाने को
उद्यत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में आकर्षित किया जा सकता है, लेकिन इस दिशा में अभी तक का रिकार्ड
सफल नहीं है। एक रपट के अनुसार चीन से लगभग 46 बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बाहर जाने का फैसला किया है।
उनमें से करीब 24 वियतनाम को और केवल दो भारत में आई हैं।
दरअसल इस सुझाव के पीछे मानसिकता यह है कि भारत का आर्थिक विकास विदेशी पूंजी को आकर्षित करके ही
आगे बढ़ सकता है। इनका कहना है कि हमें कोविड-19 के दौरान चीन की बदनामी का लाभ उठाते हुए विदेशी
निवेश को और ताकत लगा कर आकर्षित करना चाहिए, लेकिन हम इस सत्य की अनदेखी कर रहे हैं कि हमारे
देश की अपनी पूंजी स्वयं बड़ी मात्रा में बाहर जा रही है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 5000 अमीर लोग हर
साल भारत छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता अपना रहे हैं। वे अपने साथ अपनी पूंजी को भी भारत से ले जा रहे
हैं। एक तरफ हमारी पूंजी बाहर जा रही है जबकि हम दूसरी तरफ विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के असफल
प्रयास में लगे हुए हैं। महिपाल ग्लोबल एजुकेशन के प्रमुख टी. मोहनदास पाई ने भारत से अमीरों के पलायन के
तीन कारण बताए हैं। पहला कारण टैक्स व्यवस्था का आतंक बताया है। उनके अनुसार देश के अमीर टैक्स
अधिकारियों द्वारा प्रताडि़त किए जा रहे हैं और भयभीत हैं। दूसरी तरफ मेरे जानकार मुंबई के एक उद्यमी ने
बताया कि भारत सरकार ने अमीरों द्वारा देश के बैंकों के साथ कपट करने पर साहसिक और सराहनीय कदम
उठाए हैं।
पूर्व में अमीर लोग बैंकों से ऋण लेकर देश छोड़कर चले जाते थे, जैसे विजय माल्या गया है। लेकिन अब सरकार
ने इस प्रकार के बैंक के घपले पर भारी नियंत्रण किया है। भारत सरकार ने अमीरों द्वारा देश के साथ जो कपट
एवं दुर्व्यवहार किया जा रहा था, उस पर अंकुश लगाने का सार्थक प्रयास किया है। लेकिन संभवतः यह एक सीमा
से अधिक बढ़ गया है। जैसे कक्षा में बच्चों को अनुशासित करना जरूरी है, लेकिन एक सीमा से अधिक अनुशासन
कर दिया जाए तो वे अपने को प्रताडि़त और अपमानित समझते हैं। बच्चे यदि कक्षा में बात करें और उन्हें कड़ी
सजा दी जाए तो उचित नहीं होता है। ऐसा करना उनका स्वभाव होता है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार
द्वारा अमीरों के साथ दुर्व्यवहार पर जरूरत से अधिक अंकुश लगाने से अमीर अपने को आतंकित समझ रहे हैं और
देश छोड़ कर जा रहे हैं। इस प्रकार सही दिशा में उठाया गया सरकार का कदम उल्टा पड़ रहा है। इस समस्या का
उपाय यह है कि टैक्स अधिकारियों का बाहरी मूल्यांकन किया जाए। उनके द्वारा जिन लोगों का असेसमेंट किया
जाता है, उन लोगों से अधिकारी का गुप्त सर्वे कराया जाए। ऐसा करने से सरकार के संज्ञान में आ जाएगा कि
कौन अधिकारी एक सीमा से अधिक अमीरों को आतंकित कर रहे हैं जिसके कारण वे देश छोड़ कर जा रहे हैं।
यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि अपने देश के अमीर इंगलैंड जैसे देशों को पलायन कर रहे हैं जहां पर टैक्स
की दरें हमारे बराबर या हमसे अधिक भी हैं। इसलिए टैक्स दरों में कटौती का लाभ नहीं मिल रहा है, बल्कि टैक्स
अधिकारियों के आतंक के कारण देश की पूंजी बाहर जा रही है। श्री मोहनदास पाई ने अमीरों के पलायन का दूसरा
कारण देश में जीवन की गुणवत्ता में गिरावट बताया है। उनका कहना है कि शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है,
यातायात की समस्याएं बढ़ रही हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचने में कठिनाई होती है इत्यादि। यहां सरकार को
अपनी पर्यावरण नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। वर्तमान सरकार ने बुलेट ट्रेन के लिए भारी संख्या में मैन्ग्रोव
वृक्षों को काटने का निर्णय लिया है, जल मार्ग से यातायात करने के लिए नदियों का पूरी ताकत से खनन किया
है, सड़क बनाने के लिए बेरहमी से जंगलों को काटा है, बिजली का उत्पादन सस्ता करने के लिए थर्मल संयंत्रों को
वायु प्रदूषण करने के मानकों में छूट दी है इत्यादि इत्यादि।
सरकार का उद्देश्य है कि पर्यावरण की अड़चनों को कम करके देश के आर्थिक विकास को गति दी जाए, लेकिन
इसका प्रभाव ठीक इसके विपरीत हो रहा है। कारण यह कि आर्थिक विकास को हासिल करने के प्रयास में जब
सरकार जंगलों इत्यादि को काटती है तो उससे प्रदूषण बढ़ता है और जिसके कारण अमीर देश से पलायन कर रहे हैं
और उनके पलायन से विकास दर में गिरावट आ रही है। आर्थिक विकास हासिल करने के गलत रास्ते को अपनाने
के कारण सरकार आर्थिक विकास दर में गिरावट को बुला रही है। सरकार को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होना
होगा। जैसे जल मार्ग, खनन एवं थर्मल बिजली संयंत्रों को छूट देने के पीछे सरकार की मंशा देश में मैन्युफेक्चरिंग
को बढ़ावा देने की है। सरकार को मैन्युफेक्चरिंग अर्थात मेक इन इंडिया को छोड़कर सेवा क्षेत्र यानी ‘सर्विस फ्रॉम
इंडिया’ का नारा अपनाना चाहिए। सेवा क्षेत्र में सिनेमा, ट्रांसलेशन, मेडिकल ट्रांस्क्रिप्शन इत्यादि तमाम कार्य आते
हैं।
इनके संपादन में हमें माल की ढुलाई कम करनी पड़ती है। इनके उत्पादन में मैन्युफेक्चरिंग की तुलना में बिजली
की खपत केवल 10 प्रतिशत होती है। इसलिए यदि सरकार मैन्युफेक्चरिंग के स्थान पर सेवा पर ध्यान दे तो हम
जल मार्ग जैसे हानिप्रद कार्यों को त्याग कर भी आर्थिक विकास हासिल कर सकते हैं। तदानुसार प्रदूषण कम होने
से अपने देश से अमीरों का पलायन भी कम होगा, उनकी पूंजी का देश में पुनर्निवेश होगा और हमें विदेशी निवेश
आकर्षित करने की जरूरत नहीं रह जाएगी। अतः सरकार को अपनी पर्यावरण को नष्ट करके आर्थिक विकास
हासिल करने की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। नौकरशाही के बाहरी मूल्यांकन और पर्यावरण के प्रति
संवेदनशील होने से देश का आर्थिक विकास भी होगा और हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार भी होगा। बेटर
लिविंग कंडीशन उपलब्ध होने पर अमीरों का पलायन भी रुकेगा। पर्यावरण का नुकसान करके कोई भी देश तरक्की
नहीं कर सकता है। पर्यावरण को हर कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए। पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना भी
विकास संभव है। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तो कई समस्याएं स्वयं ही हल हो जाएंगी। सरकार को अपनी नीति में
संशोधन करना चाहिए।