संयोग गुप्ता
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की लड़ाई सड़कों पर आ गई है। दोनों
गुट एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। सचिन पायलट अपने साथ 18 अन्य कांग्रेसी
विधायकों को लेकर गुड़गांव के एक होटल में ठहरे हुए हैं। वहीं बाकी बचे कांग्रेसी विधायकों के साथ मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत जयपुर के एक रिसोर्ट में डेरा डाले हैं। मुख्यमंत्री गहलोत के साथ कांग्रेस के प्रभारी महासचिव
अविनाश पांडे सहित कई बडे़ केंद्रीय नेता भी जयपुर के रिसोर्ट में सरकार को बचाने में जुटे हुए हैं।
विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी द्वारा पायलट गुट के विधायकों को कारण बताओ नोटिस देने का मामला
राजस्थान हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है। जिस पर कोर्ट द्धारा सुनवाई जारी है। इस झगड़े में जीत चाहे मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत की हो या सचिन पायलट की हार तो कांग्रेस पार्टी की व राजस्थान की जनता की हो चुकी है।
दिसंबर 2018 में राजस्थान की जनता ने बड़े उत्साह के साथ राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत दिया था। लेकिन
सरकार के गठन के साथ ही मंत्रियों में गुटबाजी दिखने लगी थी। जिस पर कांग्रेस आलाकमान द्धारा समय रहते
काबू नहीं पाया जा सका। जिस कारण लड़ाई आर-पार की हो चुकी है। ऐसे में कांग्रेस को वोट देने वाले मतदाता भी
खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
प्रदेश में कोरोना का संक्रमण हर दिन तेजी से बढ़ता जा रहा है। राजस्थान में कोरोना मरीजो की संख्या 29 हजार
व मृत्यु साढ़े पांच सौ से अधिक हो चुकी है। इस समय कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जिन विधायको, मंत्रियों
को अपने क्षेत्रों में जनता के साथ रहना चाहिए था। उसके उलट कांग्रेस के सभी विधायक व मंत्री होटलों में डेरा
डाले बैठे हैं। ऐसे में जनता फरियाद भी किससे करें। सभी विधायकों के मोबाइल फोन बंद आ रहे हैं। होटलों में
किसी को घुसने नहीं करने दिया जा रहा है। सरकार द्धारा प्रदेश की जनता को राम भरोसे छोड़ दिया गया है।
दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान हाथ पर हाथ धरे बैठा नजर आ रहा है। लोकसभा चुनावो में पार्टी की करारी हार से
कांग्रेस के सभी बड़े नेता हताश दिख रहे हैं। इसी के चलते कांग्रेस एक-एक कर प्रदेशों में सत्ता गंवाती जा रही है।
कांग्रेस आलाकमान की ढ़िलाई के चलते 2016 में भारतीय जनता पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस से सत्ता छीन
ली थी। जबकि उस वक्त अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के 42 व भाजपा के मात्र 11 विधायक थे। उसके बावजूद भी
कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी थी। 2017 के मणिपुर विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस को 28 सीटें व भारतीय
जनता पार्टी को 21 सीटें मिली थी। मगर वहां भी भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को मात देकर सरकार बना ली
थी।
2017 में गोवा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को 17 व भारतीय जनता पार्टी को 13 सीटें मिली थी। मगर
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की लापरवाही के कारण भारतीय जनता पार्टी ने छोटे दलों व निर्दलीयों को साथ लेकर
सरकार बना ली थी। 2019 में भाजपा ने कर्नाटक में कांग्रेस व जनता दल सेकुलर की मिली जुली सरकार को
गिरा कर अपनी पार्टी के एस येदुरप्पा को मुख्यमंत्री बनवा दिया। कर्नाटक में कांग्रेस के 16 विधायकों के पद से
इस्तीफा देने के कारण वहां की सरकार गिर गयी थी। कर्नाटक सरकार की कार्यप्रणाली से नाराज विधायकों ने
प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल को अपनी समस्याओं से कई बार अवगत करवाया था। मगर उन्होंने कोई ध्यान
ही नहीं दिया।
यही हाल मध्यप्रदेश का रहा जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी उपेक्षा से नाराज होकर आलाकमान से लगातार
गुहार लगाते रहे। मगर कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के प्रभाव के चलते कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया
आलाकमान तक सिंधिया गुट की बातों को पहुंचने ही नहीं देते थे। कांग्रेस आलाकमान ने सिंधिया की बातों पर
कोई ध्यान नहीं दिया। अंततः सिंधिया गुट के 22 विधायकों ने बगावत कर कमलनाथ सरकार को गिरा दिया।
यदि मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया निष्पक्षता से काम करते तो मध्य प्रदेश की कमलनाथ
सरकार को बचाया जा सकता था।
इसके बाद भी कांग्रेस आलाकमान ने कोई सबक नहीं लिया लगता है। राजस्थान में भी कांग्रेस के प्रभारी महासचिव
अविनाश पांडे खुलकर अशोक गहलोत का पक्ष लेते रहे हैं। सचिन पायलट पिछले डेढ़ साल से अपनी उपेक्षा की
शिकायत करते आ रहे थे। मगर उनकी बातों पर आलाकमान ने ध्यान देना उचित नहीं समझा। जिसका नतीजा
उनकी बगावत के रूप में देखने को मिल रहा है। राजस्थान में भी यदि प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे निष्पक्ष
होकर सभी नेताओं के बीच सही तालमेल बैठाते तो कांग्रेस को आज शर्मनाक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
दिल्ली में कांग्रेस के कई बड़े नेता आलाकमान बने हुए हैं। उनमें से अधिकांश तो वर्षों पूर्व ही जनता द्वारा नकार
दिए गए हैं। कई नेता बढ़ती उम्र के चलते अधिक भाग दौड़ करने की स्थिति में भी नहीं है। कांग्रेस की राष्ट्रीय
कार्यकारिणी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के अलावा फिलहाल 11 महासचिव व 11
प्रदेश प्रभारी है। जिनमें से सात राज्यसभा में वह तीन लोक सभा के सदस्य हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में
सोनिया गांधी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, गुलाम नबी आजाद, हरीश रावत, मलिकार्जुन खड़गे, मोतीलाल वोरा,
उम्मन चांडी वृद्ध हो चुके हैं।
सोनिया गांधी के अलावा एक कोषाध्यक्ष व 11 महासचिवो में से कोई भी लोकसभा का सदस्य नहीं है। इनमें से
अहमद पटेल, अंबिका सोनी, गुलाम नबी आजाद, मोतीलाल वोरा, मुकुल वासनिक को तो चुनाव लड़े वर्षों बीत
चुके हैं। वही हरीश रावत, मलिकार्जुन खड़गे पिछले चुनाव में हार चुके हैं। अविनाश पांडे, प्रियंका गांधी ने कभी
चुनाव ही नहीं लड़ा है। यही स्थिति कांग्रेस कार्यसमिति व कांग्रेस चुनाव समिति की भी है। इनमें अधिकांष नेता
अपनी वरिष्ठता के चलते बड़े पदों पर काबिज हैं।
जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तब कई युवा नेता कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर लाए गए थे। मगर अंततः
बुजुर्ग नेताओं ने एक-एक कर सभी युवा नेताओं को ठिकाने लगा दिया। कांग्रेस के युवा नेता पेमा खांडू अब भाजपा
से अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। असम के हेमंत विश्व शर्मा भी असम सरकार में कई विभागों के
महत्वपूर्ण मंत्री हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा उनको संकटमोचक के रूप में देखती है।
बिहार के दलित नेता व कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक चैधरी को भी अंततः जनता दल यू में जाना पड़ा। हरियाणा
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अशोक तंवर को ऐन विधानसभा चुनावों से पहले पद से हटाकर पार्टी छोड़ने को मजबूर
किया गया। मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे संजय निरूपम को भी चुनाव से ठीक पहले अध्यक्ष पद से
हटा दिया गया था। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, उत्तराखंड में रेखा आर्य, गोवा में विश्वजीत राणे ऐसे युवा
नेता हैं जिनको यदि कांग्रेस संरक्षण देती तो आगे चलकर बड़े जनाधार वाले नेता बन सकते थे। मगर कांग्रेस के
बड़े नेताओं की उपेक्षा के चलते आज सब भारतीय जनता पार्टी में बड़े पदों पर काम कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी बात कहने वाले युवा नेता मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त, जितिन प्रसाद जैसे लोगों को
भी यदि कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। कांग्रेस में आज भी पुराने क्षत्रपों
का दबदबा बरकरार है। कांग्रेस पार्टी में जब तक जनाधार वाले सक्रिय युवा नेताओं को आगे नहीं लाया जायेगा तब
तक कांग्रेस का प्रभाव कम होता जाएगा। देश में कांग्रेस को यदि फिर से अपनी पैंठ बनानी है तो पार्टी के भीतर
आंतरिक लोकतंत्र स्थापित करना होगा। सब की बात सुननी होगी। निष्पक्षता से काम करने वाले लोगों को प्रदेश
प्रभारी बनाना होगा। तभी कांग्रेस के आंतरिक झगड़े रूक पायेगें।