विकास गुप्ता
अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास को आधिकारिक तौर पर शनिवार को बंद कर दिया
गया है। चार दशक पहले खुले इस दूतावास को पहली बार इस तरह बंद करवाया गया है। अमेरिकी एजेंटों ने
दूतावास के अंदर घुसकर इसे बंद कराया। कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने ह्यूस्टन में चीनी दूतावास बंद करने का
आदेश दिया था। इसके बाद से दोनों देशों में तनातनी चरम पर पहुंच गई है। दोनों देशों के बीच पहले से ही
कोरोना वायरस के नियंत्रण को लेकर जुबानी जंग जारी है। अमेरिका ने चीन से 72 घंटे के भीतर ह्यूस्टन में
अपने वाणिज्य दूतावास को बंद करने के लिए कहा था। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने आरोप लगाया
था कि यह जासूसी और बौद्धिक संपदा की चोरी का एक केंद्र है। शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों ने वाणिज्य दूतावास
पर अमेरिका में बीजिंग के जासूसी अभियानों का हिस्सा होने का भी आरोप लगाया था। अमेरिका और चीन के बीच
बढ़ते तनाव ने जिस तरह का गंभीर रूप धारण कर लिया है, उससे इस बात की आशंका गहराती जा रही है कि ये
दोनों देश विश्व को किसी नए संकट में न धकेल दें। ऐसा इसलिए भी है कि अमेरिका और चीन की यह तनातनी
अब राजनयिक संबंधों के स्तर पर भी साफ झलकने लगी है। इस हफ्ते दोनों देशों के बीच जिस तरह का घटनाक्रम
चला, उससे तो यही लगता है कि यह विवाद आसानी से शांत नहीं होने वाला। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
पहले ही एलान कर चुके हैं कि वे चीन को सबक सिखा कर ही दम लेंगे। जाहिर है, दोनों देशों के बीच अब खाई
और चौड़ी होगी।
हाल में मामला इसलिए गरमाया कि अमेरिका ने ह्यूस्टन में चीन के वाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया और साथ
ही यह धमकी भी दी कि वह ऐसे कदम आगे भी उठाएगा। अमेरिका में चीन के ऐसे पांच वाणिज्य दूतावास हैं।
इसके जवाब में पलटवार करते हुए चीन ने भी अमेरिका से चेंगदू में अमेरिकी महावाणिज्य दूत के दफ्तर को बंद
कर देने का फरमान सुना दिया। तकरार जब राजनयिक स्तर पर होने लगे तो इसे मामूली मान कर खारिज नहीं
किया जा सकता। जब विवादों के बीच देश कूटनीति के स्तर पर इस तरह के कड़े फैसले लेते हैं तो इसके दूरगामी
निहितार्थ होते हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब अमेरिका ने चीन के खिलाफ इतना बड़ा कदम उठाया है। चीन भी
बराबरी पर उतरा हुआ है और चुप बैठने वाला नहीं है। दोनों का संदेश साफ है कि लड़ाई लंबी चलेगी। अमेरिका
और चीन के बीच रिश्तों में गतिरोध पिछले तीन साल से बना हुआ है। दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध बड़ा मुद्दा
है और यह ऐसा विवादित और पेचीदा मामला है कि राष्ट्रहित के लिए कोई भी देश आसानी से झुकने वाला नहीं
है। व्यापारिक मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच हुई वार्ताएं भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं। लेकिन पिछले
साल नवंबर से दुनिया में जिस तेजी से कोरोना महामारी फैली है, उसके पीछे ज्यादातर देशों को चीन का हाथ लग
रहा है।
अमेरिका तो खुल कर कह रहा है कि धरती पर कोरोनाविषाणु संक्रमण चीन ने ही फैलाया है और इस विषाणु को
चीन ने वुहान की प्रयोगशाला में तैयार किया है। इसलिए पूरी दुनिया को एकजुट होकर चीन के खिलाफ खड़े होना
चाहिए। चीन में कोरोनाविषाणु की उत्पत्ति को लेकर अमेरिका अपने स्तर जांच भी करवा रहा है। लेकिन इस
सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस आड़ में ज्यादातर देशों को साथ लेकर वह चीन की घेरेबंदी को
मजबूत कर रहा है। चीन और अमेरिका के बीच लड़ाई वचस्र्व की है। कौन दुनिया का दादा बने, इसी के लिए एक
दूसरे को पटखनी देने के खेल चल रहे हैं। इस साल नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं और ट्रंप
दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियों से अमेरिका की नींद
उड़ी हुई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के समक्ष भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी व सत्ता पर पकड़ और मजबूत करने
की चुनौती है। इसलिए वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे चीनी जनता और कम्युनिस्ट पार्टी में उनके कमजोर
होने का संदेश जाए। शी और ट्रंप दोनों के लिए यह मुश्किलों भरा समय है। अगर अमेरिका और चीन के रिश्तों में
खटास बढ़ती है, तो इसके परिणाम नए वैश्विक संकट को जन्म देने वाले हो सकते हैं।