विकास गुप्ता
हम आए दिन सुनते हैं कि फ्लां राज्य में सत्ता के लिए संख्या बल का संकट उभर आया है और एक पार्टी या
दूसरी उनके सदस्यों को तोड़ने के लिए कोशिश कर रही है। इस कारण पार्टी के सदस्यों को एक रिजॉर्ट या पंचतारा
होटल में कैद कर दिया गया है जहां उन्हें मनोरंजन की अत्याधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं। लग्जरी बसें पार्टी
समर्थकों से भरी रहती हैं और उन्हें ऐसे रिजॉर्ट में ले जाया जा रहा है। कोई नहीं जानता कि ऐसी बसों में कोई
पुरुष या महिला ऐसी पंचतारा जेल में जाते हुए गाना गाते हैं अथवा नहीं? ऐसी स्थिति में इतना प्रतिबंध लगा
दिया जाता है कि वे सदस्य किसी दूसरी पार्टी से संपर्क तक नहीं कर सकते। कई बार उनसे किसी के मिलने को
रोकने के लिए पुलिस या प्राइवेट सिक्योरिटी को हायर कर लिया जाता है।
ऐसा कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश में हो चुका है और अब राजस्थान में हो रहा है। समस्या यह है कि
कानून निर्माता, जो किसी पार्टी विशेष के झंडे तले या चुनाव चिन्ह पर जीता होता है, पर यह विश्वास नहीं किया
जाता कि वह अपनी ही पार्टी के पक्ष में मतदान करेगा। दूसरे शब्दों में चुनाव में किए गए वायदों और अपनी पार्टी
के सिद्धांतों से सदस्य डिग जाते हैं। राजनीति में यह नैतिकता का संकट है और यह भी कि उनके कैडर की
कमान सुनिश्चित करने वाले उत्साही नेता का अभाव हो जाता है। राजनीति में आदर्शवाद कोई प्रतिबद्ध कारक नहीं
है। महाराष्ट्र का ही उदाहरण लेते हैं जहां इंडियन नेशनल कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व शिवसेना के साथ
मिलकर तीन पार्टी वाला गठबंधन ज्वाइन कर लिया। इन दलों की आपस में विचारधारा नहीं मिलती है और ऐसे
गठबंधन की उम्मीद भी नहीं थी।
पहले कोई भी शिव सैनिक कांग्रेस या एनसीपी से आंख में आंख मिलाकर नहीं देखता था। भारतीय राजनीति में
इस तरह के सिद्धांतहीन समझौते महज सत्ता के लिए या धन अर्जन के नाम पर होने लगे हैं। इससे पूरे
राजनीतिक परिदृश्य में अवैध लेन-देन होने लगे हैं और राजनीति में बेईमानी की गंध बढ़ने लगी है। राजस्थान को
लेकर कांग्रेस का आरोप है कि उसके सदस्यों का समर्थन खरीदने के लिए करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं। दूसरे शब्दों
में पार्टी यह स्वीकार करती है कि उनके सदस्य खरीदने योग्य हैं। प्रवर्त्तन विभाग या आयकर के छापों से जाहिर
होता है कि किसी अन्य देश से 100 करोड़ रुपए लाए गए और ये अशोक गहलोत के मित्र, जो होटल तथा अन्य
व्यापार का संचालन करते हैं, से संबंधित हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि उसके बागियों की हरियाणा के
एक आईटीसी होटल में भाजपा द्वारा आवभगत हो रही है।
प्रश्न यह है कि हम सभी प्रकार की बुरी परिपाटियों को प्रोत्साहन क्यों दे रहे हैं जो सरकार निर्माण में बुरी ख्याति
लाती हैं। महात्मा गांधी के युग में राजनीति में नैतिकता होती थी तथा कांग्रेस के नेता राम राज्य को प्रोत्साहित
करते थे, किंतु विभाजन के बाद देश की राजनीति में नैतिकता और सिद्धांतों का कोई स्थान शेष नहीं बचा है।
आया राम गया राम की स्थिति को सुधारने के लिए राजीव गांधी ने साफ-सुथरे मापदंडों की पहल की थी। गया
राम कांग्रेस के एक विधायक थे जिनके नाम यह रिकार्ड है कि उन्होंने 15 दिनों में तीन बार पार्टी को बदल डाला।
एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने की स्थिति को प्रकट करने के लिए उसका उदाहरण एक मुहावरा बन
चुका है। दलबदल निरोधक कानून ने सिद्धांतहीन तरीके से दलबदल पर काफी अंकुश लगाया था। इस कानून के
अनुसार इस मसले पर निर्णय करने के लिए स्पीकर को अंतिम शक्ति दी गई थी। लेकिन बाद में कोर्ट ने व्यवस्था
दी कि यह मसला न्यायिक परिधि में आता है तथा वह इसमें हस्तक्षेप कर सकती है। एक नजरिया रखने के लिए
कई प्राधिकारियों को इस विषय को खोल दिया गया।
महाराष्ट्र के राज्यपाल के मामले में तथा यहां तक कि राष्ट्रपति को भी संलग्न कर दिया गया। भारतीय लोकतंत्र में
यह बड़ी खामी है कि कोई भी सदस्य कभी भी अपने नजरिए व विचार को बदल सकता है। इसने प्रशासन को
अस्थिर कर दिया तथा लंबी अवधि की योजना का निर्माण करना मुश्किल हो गया। वर्तमान में राजस्थान की
राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है तथा बड़ी संख्या में एक पार्टी से दूसरी पार्टी में सदस्यों के दलबदल की स्थिति
बनी हुई है। सचिन पायलट धड़े के विधायक पंचतारा होटल में कैद हैं तथा इसी तरह दूसरे धड़े के विधायक भी
होटल में ही जकड़ कर रखे गए हैं। दोनों धड़े इस कोशिश में हैं कि उनके सदस्य एकजुट रहें तथा दूसरा पक्ष कोई
सेंध न लगा सके। इस मसले पर कोर्ट के प्रारंभिक फैसले में सचिन पायलट गुट को कुछ राहत मिली है, हालांकि
विस्तृत फैसला आना अभी बाकी है। पायलट और गहलोत धड़े के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं तथा एक-
दूसरे को निकम्मा साबित करने की कोशिशों में हैं।
गहलोत का आरोप है कि सचिन पायलट भाजपा के उकसावे पर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में हैं। उधर
पायलट का कहना है कि वह भाजपा में शामिल होने वाले नहीं हैं। भाजपा ने अस्थिरता की इन कोशिशों में अपनी
भूमिका से साफ इनकार किया है। क्या सचिन पायलट नई पार्टी बनाएंगे, यह प्रश्न अभी भविष्य के गर्भ में है। इस
मसले में पार्टी के नेतृत्व की विफलता जगजाहिर हो रही है। वह अपने सदस्यों को नियंत्रण में नहीं रख पाया।
राज्य भी केंद्रीय हाईकमान के कमजोर नेतृत्व को दोष दे रहा है। राजस्थान के मामले में फोन टैपिंग का मसला भी
सामने आया है जिसमें धन की पेशकश की जा रही है। यह उचित समय है जब विधायिका की लोकतांत्रिक
कार्यप्रणाली के ऐसे दुरुपयोग से बचने के लिए कानून में बड़ा बदलाव किया जाना चाहिए। अनैतिक तरीके से
दलबदल तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कानून का निर्माण होना चाहिए। कोई विधायक अगर चुनाव के बाद पार्टी
को बदलता है तो उसे सदस्यता के अयोग्य मानना चाहिए। उसे सदस्य न रहने दिया जाए तथा सदस्यता जारी
रखने के लिए उसके लिए नया चुनाव लड़ना जरूरी किया जाए। ऐसा करके ही विभिन्न विधानसभाओं में चली
‘आया राम गया राम’ की इस रीति को रोका जा सकता है।