गरीब महिलाओं का जीवन कोरोना से अधिक डरावना है

asiakhabar.com | July 23, 2020 | 5:30 pm IST

विकास गुप्ता

किसी भी प्रकार की आपदा का सबसे अधिक प्रभाव सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों पर पड़ता है।
आर्थिक नुकसान के रूप में भले ही मध्यम व उच्च आय वालों को अधिक नुकसान होता है, लेकिन जो वर्ग
सामान्य समय में निम्न आय से अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते, किसी भी प्रकार की आपदा में बूरी तरह से
टूट जाते हैं। महिलाएं सभी वर्गों में किसी न किसी प्रकार की निःसहायता में जकड़ी हुई हैं। उच्च आय वर्ग में
महिलाएं समानता को लेकर संघर्षरत हैं तो मध्यम आय वर्ग में बराबरी के अधिकारों, जेंडर आधारित भूमिकाओं में
बदलाव, स्वच्छंदता के लिए जद्दोजहद कर रही है। लेकिन निम्न आय वर्ग में महिलाओं के जीवन से जुड़े मुद्दे
कुछ अलग हैं। एकल महिलाएं जहां अपने परिवार की गाड़ी अकेले खींचती है, तो जोड़ीदार में वह अपने पति के
साथ कंधा मिलाकर सामाजिक और आर्थिक तौर पर जर्जर पारिवारिक गाड़ी के पहियों को गति देती है। कोविड-19
जैसी वैश्विक स्वास्थ्य संबंधी आपदा से बचाव के लिए घोषित लॉक डाउन में सभी वर्गों में महिलाओं के अलग
प्रकार के मुद्दे रहे होंगे, लेकिन निम्न आय वर्ग की महिलाओं की मुश्किलें कुछ अलग ही बयां करती है।
थाना देवी का पति मजदूरी कर अपने परिवार को पालता था। दो साल पहले पति का देहांत हो गया और चार
बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी थाना देवी पर आ गई। विधवा पेंशन एवं खाद्य सुरक्षा का राशन मिलता है।
महात्मा गांधी नरेगा में रोजगार मिलता है, तो मजदूरी करती है, इस साल रोजगार नहीं मिला। प्रधानमंत्री आवास
में चयनित है, लेकिन खरीदी गई जमीन अभी तक इनके नाम होने की प्रकिया पूरी नहीं होने के कारण आवास का
लाभ नहीं मिला। पानी स्टोरेज के लिए परिवार के पास संसाधन नहीं है। कोविड-19 के चलते लॉक डाउन, भीषण
गर्मी, मजदूरी नहीं, तो पेट भरने के लिए राशन नहीं और ऊपर से पानी का संकट। आवास के रूप में एक झोंपड़ी
है जिसमें पांच लोग रहते हैं। निर्माण श्रमिक में पंजीयन नहीं है। थाना देवी को नियमित महात्मा गांधी नरेगा की
मजदूरी तथा भूमि सुधार के तहत वर्षा जल संग्रहण के लिए अंडरग्राउंड टैंक, प्रधानमंत्री आवास, निर्माण श्रमिक में
पंजीयन व श्रमकल्याण योजनाओं का लाभ मिल पाता, तो आपदा से मुकाबला करने में सक्षम हो पाती।
सत्तर वर्षीय लादी अपने दो पौत्र व एक पौत्री के साथ रहती है। बच्चों के मां की मौत, पिता न्यायिक दंड के कारण
जेल में है, इसलिए बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा लादी के वृद्ध कंधों पर है। आस-पड़ोस के लोग इनके घर
नहीं आते और ना ही सहयोग करते हैं। लादी को वृद्धा पेंशन व खाद्य सुरक्षा के तहत प्रति यूनिट पांच किलो गेहूं
के अतिरिक्त किसी प्रकार की सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता। जीवन की मूलभूत जरूरतों के अभाव के
कारण बच्चे नियमित स्कूल नहीं जा पाते, इसलिए पालनहार योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा। कल्पना करना
भी मुश्किल होगा कि लादी ने लॉक डाउन के दौरान बच्चों की जरूरतों को कैसे पूरा किया होगा।

गौतमी का पति पेमाराम पत्थर खदान में काम करता था, लंबे अर्से तक काम करने पर सिलिकोसिस बीमारी ने
जकड़ लिया। मेडिकल जांच में सिलिकोसिस प्रमाणित नहीं होने के कारण टीबी का ट्रीटमेंट चालू किया गया जिससे
सिलिकोसिस पीडि़त को राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ा। अकाल दर अकाल में
खेती से ज्यादा कुछ मिलता नहीं। पति सिलिकोसिस के कारण दस कदम चलता है, तो सांस फूल जाती है। गौमती
महात्मा गांधी नरेगा में मजदूरी करती है, लेकिन ग्राम पंचायत ऐसे गरीब परिवारों को सौ दिन का रोजगार में
प्राथमिकता नहीं देती। रेगिस्तान में रेत के धोरों के बीच बसावट, आवागमन के लिए कोई साधन नहीं पहुंच पाता।
पानी एक किलोमीटर दूर हैंड पंप से लाती है। एक हजार रू. प्रति माह पति की दवा, ज्यादा तबीयत खराब होने पर
हॉस्पिटल लाने ले जाने का किराया भाड़ा, घर में राशन पानी का जुगाड़, पति की देखभाल करना ही गौमती की
आंखों का सपना रह गया है। वृद्धा पेंशन का आवेदन किया मगर स्वीकृति का इंतजार है। लॉक डाउन ने दुखद
जीवन को और ज्यादा डरावना बना दिया है।
निमाजी का पति सत्तारखां ट्रक ड्राइवर था। दो वर्ष पूर्व अहमदाबाद के पास दुर्घना में दोनों पैर कट गये। एक पैर
को फिर से जोड़ने का प्रयास किया लेकिन आपरेशन सफल नहीं हुआ, पूरी तरह से जुड़ा नहीं। दुर्घटना के बाद
इलाज के पैसे रिश्तेदारों ने खर्च किए। पत्नी निमाजी पति व बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ मजदूरी कर
राशन आदि जुटाती हैं। लॉक डाउन में मजदूरी नहीं मिलने से राशन की मुश्किल हो गई। निमाजी के निजी जीवन
के सपने धूमिल हो चुके हैं। पति व बच्चों की देखभाल, मजदूरी, खेती, पशु, घर उसकी दिनचर्या में आंखों के
सामने तैरते रहते हैं। पूरा जीवन इसी तंगहाली में परिवार का पालन-पोषण करने में गुजर जायेगा।
कोविड-19 से बचाव के लिए किए गये लॉक डाउन ने निम्न आय वर्ग से ताल्लुक रखने वाली इन महिलाओं के
जीवन की मुश्किलों को और बढ़ा दिया। कोरोना वायरस का डर कम और लॉक डाउन के कारण उत्पन्न समस्याएं
ज्यादा भयानक लगने लगी हैं। लॉक डाउन की घोषणा के साथ ही परिवार के सदस्यों को खाना मुहैया कराने,
बीमारी से ग्रसित लोगों की नियमित दवा के अभाव को दूर करने, पशुओं के लिए चारा-पानी की व्यवस्था, अपने
जमीन के छोटे से टुकड़े में खरीफ फसल की खेती के लिए बीज-बुआई का जुगाड़ करना, जैसी चिंताएं सताने लगी
हैं। राजकीय अव्यवस्थाओं को कोसने या किस्मत को दोष देकर परिस्थितियों से उत्पन्न संकट को सहन करने के
अतिरिक्त इन महिलाओं के सामने कोई विकल्प भी नहीं रहा। इन महिलाओं के पास जीवन का साथ छोड़ चुके
पति की याद, बीमारी से ग्रसित जीवन और मौत के बीच झूल रही पति की देह और बच्चे जिनको पालपोस कर
बड़ा करना ही लक्ष्य रह गया है।
लॉक डाउन के दौरान जाने कितने परिवार भूखे सोए होंगे, कितनों ने दवा के अभाव में कष्ट झेले होंगे, कितनों ने
जीवन जीने के लिए आवश्यक कैलोरी का भोजन नहीं मिलने के कारण आहिस्ता-आहिस्ता कुपोषण का शिकार
होकर दम तोड़ा होगा, कितनी महिलाओं को हिंसा का शिकार होना पड़ा होगा, इसका हिसाब आज की तारीख में
हमारे सामने नहीं है, लेकिन देर-सवेर हैल्थ इंडेक्स, गरीबी सूचकांक, भूख इंडेक्स, जेंडर इंडेक्स, नेशनल सैंपल सर्वे
और मानव विकास सूचकांकों के माध्यम से जरूर सामने आएगा।

ऐसे परिवारों को एक अदद सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। संवेदनशील
तरीके से इनकी बात सुनी नहीं जाती है। सामाजिक स्तर पर भी ऐसे परिवारों को लक्ष्य में रखकर इनको सरकारी
योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए पैरवी नहीं होती। कारण, सब अपने लाभ की प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं। एक
समय था, जब गांव में लोग मिल बैठकर गांव के गरीब लोगों को सरकारी योजनाओं से जुड़ाव की बात करते थे,
लेकिन अब समय बदल गया। सभी अपने आप को गरीब साबित कर लाभ लेने की होड़ में लगे रहते हैं, जिसके
चलते वास्तव में गरीबी के शिकार लोग पिछड़ जाते हैं। प्रतिदिन मजदूरी से गुजारा चलाने वाली, सामान्य समय में
शोषणवादी आपदा की शिकार अपने परिवार का पालन-पोषण करने वाली इन महिलाओं के जीवन में किसी भी
प्रकार की आपदा की दस्तक परिवार को हिलाकर रख देती है।
कोविड-19 के तहत लॉक डाउन के दौरान ऐसा ही कुछ हुआ। हजारों परिवार निम्न से निम्नतर स्थिति में चले गये
जिससे उभरने में काफी वक्त लगेगा। ज़रूरत है ऐसे परिवारों को प्राथमिकता एवं योग्यता के अनुसार सरकारी
योजनाओं का पैकेज देना, ताकि समय पर उन्हें कुछ हद तक राहत मिल सके और ऐसे परिवार धीरे-धीरे आर्थिक
संबलता की तरफ बढ़ सकें। राजकीय और सामाजिक व्यवस्था में ऐसे परिवारों के लिए संवेदनशीलता जरूरी है।
दूसरी तरफ ऐसे परिवारों के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को समेकित विकास का पैकेज बना कर सहायता प्रदान
करने की जरूरत है ताकि ज़रूरतमंद महिलाओं को राहत मिल सके।


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