एकता की शक्ति से वैश्विक उम्मीदें

asiakhabar.com | July 18, 2020 | 5:01 pm IST

अर्पित गुप्ता

कोरोना के परिदृश्य में स्पष्ट हो चुका है कि केवल सबके बचाव में ही स्वयं का बचाव संभव है। एकता की शक्ति
से वैश्विक उम्मीदें हैं। जो देश इस कठिनाई के समय में भी विस्तार की नीति अपना रहे हैं, वहां की सरकारें
जनता से छल कर रही हैं। दुनियां के लिये यह समय सामंजस्य और एकता के विस्तार का है। हमारी युवा शक्ति
ही देश की सबसे बड़ी ताकत है। बुद्धि और विद्वता के स्तर पर हमारे देश के युवाओ ने सारे विश्व में मुकाम
स्थापित किया है। हमारे साफ्टवेयर इंजीनियर्स के बगैर किसी अमेरिकन कंपनी का काम नही चलता। हमारी स्त्री
शक्ति सशक्त हुई है। देश के युवाओ से यही कहना है कि हम किसी से कम नही है और हमारे देश को विश्व में
नम्बर वन बनाने की जबाबदारी हमारी पीढ़ी की ही है। हमें नीति शिक्षा की किताबो से चारित्रिक उत्थान के पाठ
पढ़ने ही नही उसे अपने जीवन में उतारने की जरूरत है। मेरा विश्वास है कि भारतीय लोकतंत्र एक परिपक्व शासन
प्रणाली प्रमाणित होगी, इस समय जो कमियां भ्रष्टाचार, जातिगत आरक्षण, क्षेत्रीयता, भाषावाद, वोटो की खरीद
फरोक्त को लेकर देश में दिख रही हैं उन्हें दूर करके हम विश्व नेतृत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् के प्राचीन भारतीय
मंत्र को साकार कर दिखायेंगे। आज जब मानवीय मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं, संभवतः रोबोट और मशीनी
व्यवस्थायें ही देश से भ्रष्टाचार समाप्त कर सकती है, जैसा कंप्यूटरीकरण के विस्तार से रेल्वे या अन्य विभिन्न
क्षेत्रो में हो भी रहा है।
सैक्स के बाद यदि दुनिया में कुछ सबसे अधिक लोकप्रिय विषय है तो संभवतः वह राजनीति ही है। लोकतंत्र
सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानी जाती है। और सारे विश्व में भारतीय लोकतंत्र न केवल सबसे बड़ा है वरन सबसे
तटस्थ चुनावी प्रणाली के चलते विश्वसनीय भी है। चुनावी उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र में अपनी जो आय
घोषित कर चुके हैं वह हमसे छिपी नही है, एक सांसद को जो कुछ आर्थिक सुविधायें हमारा संविधान सुलभ
करवाता है,वह इन उम्मीदवारो के लिये ऊँट के मुह में जीरा है। प्रश्न है कि आखिर क्या है जो लोगो को राजनीति
की ओर आकर्षित करता है। क्या सचमुच जनसेवा और देशभक्ति? क्या सत्ता सुख, अधिकार संपन्नता इसका
कारण है? मेरे तो परिवार जन तक मेरे इतने ब्लाइंड फालोअर नही है, कि कड़ी धूप में वे मेरा घंटों इंतजार करते
रहें, पर ऐसा क्या चुंबकीय व्यक्तित्व है, राजनेताओ का कि हमने देखा लोग कड़ी गर्मी के बाद भी लाखो की
तादात में हेलीकाप्टर से उतरने वाले नेताओ के इंतजार में घंटो खड़े रहे, देश भर में। जबकि उन्हें पता था कि नेता
जी आकर क्या बोलने वाले हैं।
इसका अर्थ यही है कि अवश्य कुछ ऐसा है राजनीति में कि हारने वाले या जीतने वाले या केवल नाम के लिये
चुनाव लड़ने वाले सभी किसी ऐसी ताकत के लिये राजनीति में आते हैं जिसे मेरे जैसे मूढ़ बुद्धि शायद समझ नही
पा रहे। तमाम राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार देश के "रामभरोसे" मतदाता की तारीफ करते नही अघाते,
देश ही नही दुनिया भर में हमारे रामभरोसे की प्रशंसा होती है, उसकी शक्ति के सम्मुख लोकतंत्र नतमस्तक है।
रामभरोसे वोटरे के फैसले के पूर्वानुमान की रनिंग कमेंट्री कई कई चैनल कई कई तरह से करते रहे हैं। मैं भी
अपनी मूढ़ मति से नई सरकार का हृदय से स्वागत करती हूं। पिछले अनुभवों में हर बार बेचारा रामभरोसे वोटर

ठगा गया है, कभी गरीबी हटाने के नाम पर तो कभी धार्मिकता के नाम पर, कभी देश की सुरक्षा के नाम पर तो
कभी रोजगार के सपनो की खातिर। एक बार और सही। हर बार परिवर्तन को वोट करता है रामभरोसे, कभी यह
चुना जाता है कभी वह। पर रामभरोसे का सपना टूट जाता है, वह फिर से राम के भरोसे ही रह जाता है, नेता जी
कुछ और मोटे हो जाते हैं। नेता जी के निर्णयो पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं,जाँ च कमीशन व न्यायालय के फैसलो में वे
प्रश्न चिन्ह गुम जाते हैं। रामभरोसे किसी नये को नई उम्मीद से चुन लेता है।
चुने जाने वाला रामभरोसे पर राज करता है, वह उसके भाग्य के घोटाले भरे फैसले करता है। मेरी पीढ़ी ने तो कम
से कम अब तक यही होते देखा है। प्याज के छिलको की परतो की तरह नेताजी की कई छबिया होती हैं। कभी वे
जनता के लिये श्रमदान करते नजर आते हैं, शासन के प्रकाशन में छपते हैं। कभी पांच सितारा होटल में रात की
रंगीनियो में रामभरोसे के भरोसे तोड़ते हुये उन्हें कोई स्पाई कैमरा कैद कर लेता है। कभी वे संसद में संसदीय
मर्यादायें तोड़ डालते हैं, पर उन्हें सारा गुस्सा केवल रामभरोसे के हित चिंतन के कारण ही आता है। कभी कोई
तहलका मचा देता है स्कूप स्टोरी करके कि नेता जी का स्विस एकाउंट भी है। कभी नेता जी विदेश यात्रा पर
निकल जाते हैं रामभरोसे के खर्चे पर, वे जन प्रतिनिधि जो ठहरे। संभवतः सर्वहारा को सर्व शक्तिमान बना सकने
की ताकत रखने वाले लोकतंत्र की सफलता के लिये उसकी ये कमियां स्वीकार करनी जरूरी हैं। जो भी हो शायद
यही लोकतंत्र है, तभी तो सारी दुनिया इसकी इतनी तारीफ करती है।
भारतीय लोकतात्रिक प्रणाली की वैधानिक व्यवस्थायें अमेरिकन व इंगलैण्ड सहित दुनिया के विभिन्न संविधानो के
अध्ययन के उपरांत भीमराव अम्बेडकर जैसे विद्वानो ने निर्धारित की थीं। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार
तो विजयी उम्मीदवारों में से सबसे बड़े दल के सांसद,अपना नेता चुनते हैं, जो प्रधानमंत्री पद के लिये राष्ट्रपति के
सम्मुख अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करता है, अर्थात जनता अपने वोट से सीधे रूप से प्रधानमंत्री का चुनाव नही
करती यद्यपि सत्ता की मूल शक्ति प्रधानमंत्री में ही सन्नहित होती है। जबकि अमेरिकन प्रणाली में राष्ट्रपति सत्ता
की शक्ति का केंद्र होता है, और उसका सीधा चुनाव जनता अपने मत से करती है।
अब जन आकांक्षा केवल घोषणायें और शिलान्यास नहीं कुछ सचमुच ठोस चाहती है। सरकार से हमें देश की
सीमाओ की सुरक्षा, भय मुक्त नागरिक जीवन, भारतवासी होने का गर्व, और नैसर्गिक न्याय जैसी छोटी छोटी
उम्मीदें हैं। सरकार सबके हितो के लिये काम करे न कि पार्टी विशेष के, पर्दे के सामने या पीछे के नुमाइन्दो से
सिफारिश पर, केवल उन लोगो के काम हो जिन के पास वह खास सिफारिश हो। जो उम्मीदें चुनावी भाषणो और
रैलियो में जगाई गई हैं, वे बिना भ्रष्टाचार के मूर्त रूप लें। महिलाओ को सुरक्षा मिले, पुरुषो की बराबरी का
अधिकार मिले। युवाओ को अच्छी शिक्षा तथा रोजगार मिले। आम आदमी को मंहगाई और भ्रष्टाचार से निजात
मिले। अल्पसंख्यको को विश्वास मिले। देश का सर्वांगीण विकास हो सके। राष्ट्र कूटनीतिक रूप से, तकनीकी रूप
से,सक्षम हो। विकास के रथ पर सवार होकर हमारा देश दुनिया के सामने एक विकसित राष्ट्र के रूप में पहचान
बनाये यह हर भारतीय की आकांक्षा है, और यही सरकार की चुनौती है।

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते विकास के सारे मापदण्ड छिन्न भिन्न हैं निश्चित ही सारी जबाबदारी केवल
सरकार पर नही डाली जा सकती, हर नागरिक को भी इस महायज्ञ में अपनी भूमिका निभानी ही होगी। सरकार
विकास का वातावरण बना सकती है, सुविधायें जुटा सकती है, पर विकास तो तभी होगा जब प्रत्येक इकाई
विकसित होगी, हर नागरिक सुशिक्षित बनेगा। जब देशप्रेम की भावना का अभ्युदय हर बच्चे में होगा तो स्वहित के
साथ साथ देशहित भी हर नागरिक के मन मस्तिष्क का मंथन करेगा। भ्रष्टाचार स्वयमेव नियंत्रित होता जायेगा
और देश उत्तरोत्तर विकसित हो सकेगा। अतः नागरिको में सुसंस्कार विकसित करना भी नई सरकार के सम्मुख एक
चुनौती है।


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