सुरेंद्र कुमार चोपड़ा
कोयला घोटाले के मामले में ‘जीरो लॉस थ्योरी’ के लेखक, जो कि वकील हैं, ने एक बार एक कविता लिखी थी।
उस पैरोडी का भावार्थ है: ‘मैं अपनी पार्टी को लेकर चिंतित हूं, इसके अस्तबल स्थायी नहीं हैं, कोई भी पार्टी के बारे
में नहीं सोचता है, जब हम शुरू करते हैं तो देर हो चुकी होती है, इसके घोड़े अस्तबल से भाग सकते हैं।’ हालांकि
यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की साहित्यिक अभिव्यक्ति है, यह कांग्रेस की आज की
स्थिति को बेहतर ढंग से बयान करती है। राजस्थान के अस्तबल सिब्बल के लिए परेशानी के स्रोत हैं क्योंकि
कर्नाटक, गोआ, असम, मध्यप्रदेश और हरियाणा में पहले ही कांग्रेस अपना आधार खो चुकी है तथा उसके घोड़े
भाग चुके हैं। यह पार्टी के लिए परेशानी का सबब है। राजस्थान में कांग्रेस के लिए कठिनाई से प्राप्त की गई जीत
थी क्योंकि वर्ष 2013 में भाजपा की 163 के मुकाबले उसे मात्र 21 सीटें मिली थीं, जबकि पिछले विधानसभा
चुनाव में सचिन पायलट के कठिन परिश्रम की बदौलत कांग्रेस ने 100 सीटें प्राप्त की और भाजपा की घटकर 73
सीटें ही रह गईं। सचिन पायलट को भरोसा था कि इस जीत का उन्हें पुरस्कार मिलेगा और राज्य में उन्हें नेतृत्व
की कमान सौंपी जाएगी। हालांकि मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अच्छा काम किया, किंतु सरकार के
निर्माण के लिए वह उस स्कोर को अर्जित नहीं कर पाए जिसे सचिन पायलट ने साध लिया। पार्टी हाईकमान से
ऊब कर ज्योतिरादित्य ने पार्टी को छोड़कर भाजपा को ज्वाइन कर लिया जिसमें उचित लेन-देन भी हुआ। उन्होंने
केंद्र के लिए सौदेबाजी की तथा राज्यसभा चुनाव जीत लिया। उनकी तुलना में पायलट के साथ यहां तक कि
शक्तियों के संचालन व बंटवारे में तुच्छ बर्ताव किया गया। उन्होंने सहन किया और लंबे समय तक समन्वय करते
रहे, लेकिन स्थितियां बुरी से बहुत बुरी होती चली गईं। अंत में जब उन्हें पार्टी व सरकार के खिलाफ काम करने के
आरोप में जांच एजेंसियों का नोटिस मिला तो उन्होंने सोच लिया कि अब काफी हो चुका है।
उन्होंने विद्रोह कर दिया, किंतु युवा और कम अनुभवी होने के कारण वह यह नहीं जानते हैं कि कैसे एक घाघ
राजनेता के साथ निपटा जाए। वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर पाए तथा अब अगर वह अपने साथियों को
अपने साथ रखते हैं तो यह एक उपलब्धि होगी क्योंकि उनके साथ बचे कैडर के लिए धन एक शक्तिशाली आकर्षण
है। केंद्र ने ‘मनी गेम’ पर अंकुश लगाने के लिए प्रवर्त्तन निदेशालय तथा आयकर विभाग को मोबिलाइज किया,
किंतु अब तक बहुत देर हो चुकी थी। राजस्थान अपने रास्ते पर चल सकता है या जैसा अभी है, वैसा ही जारी
रहेगा, किंतु कपिल सिब्बल द्वारा स्थापित की गई सूक्ति कांगे्रस के लिए बड़ी कीमती व विचारणीय है। पार्टी को
यह सोचना चाहिए कि वह अपने महत्त्वपूर्ण नेताओं को खो रही है, ये पार्टी के लिए संपदा की तरह हैं जिनकी
चिंता पार्टी को करनी ही होगी। यही बात है जिस पर सिब्बल ने जोर दिया है। पार्टी ने पूर्वी क्षेत्र में जो नेता खो
दिया, वह हेमंत बिस्वास हैं, जिन्होंने पूर्वी राज्यों में भाजपा के लिए पूरी रणनीति का सूत्रपात किया। उन्होंने भी
जब वह कांगे्रस में थे, कहा था कि राहुल गांधी हठी हैं, जो पार्टी नेताओं की बातों को हल्के में लेते हुए अपने
कुत्तों को बिस्कुट खिलाते रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस का गांधी परिवार के साथ कोई भविष्य नहीं
है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को पार्टी में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वह है हाईकमान से साथ
संचार का अभाव। सचिन पायलट, राहुल से केवल अप्रैल महीने में ही मिल पाए। मैंने पार्टी के एक जानकार से
बात की तो उसने भी मुझे बताया कि शायद पार्टी की शैली है कि विलग रखा जाए तथा बहुत सारे निजी मसलों में
व्यस्त रहा जाए। उनमें कोई भी मोदी की तरह नहीं है, जो हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे के आधार पर काम करते
हैं। राजसी शैली उत्तराधिकारी शासन में काम आ सकती है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अगर हाईकमान से बात
करनी होती है, तो वहां कोई उपलब्ध नहीं होता।
लोकतांत्रिक शासन में जनता की सरकार होती है तथा जनता से मिलना पड़ता है। पार्टी में अब यह परंपरा बन गई
है कि वहां योग्यता का कोई स्थान नहीं है क्योंकि विभिन्न पदों पर मनमर्जी से नियुक्तियां हुई हैं। संजय झा की
जगह ज्यादा दब्बू नेता को रखा गया और उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया। राज्यों में पार्टी के अध्यक्ष कोई सक्षम लोग
नहीं हैं। हार्दिक पटेल को अगर गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाता है, तो आप सोच सकते हैं कि वंशवादी
शासन में किस तरह की पार्टी बनाई जा रही है। अधीर रंजन चौधरी, पवन खेड़ा और रणदीप सुरेजवाला पार्टी के
प्रतिनिधि हैं, जबकि ज्यादा वरिष्ठ और सक्षम नेताओं को कोई जगह नहीं दी गई है। कांग्रेस को पार्टी में कुछ
जरूरी सुधार करने चाहिए। सबसे पहले पार्टी में चुनाव प्रणाली को पुख्ता करना होगा। पार्टी में विभिन्न पदों को
लोकतांत्रिक ढंग से हुए चुनावों के जरिए भरा जाना चाहिए। दूसरे, पार्टी को भाजपा से सीखना चाहिए कि नेताओं
को किस तरह उभारा जा सकता है तथा उन्हें किस तरह सहेज कर रखा जाना चाहिए। मिसाल के तौर पर जैसे ही
अमित शाह गृह मंत्री बने, जेपी नड्डा पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार थे। भाजपा के पास राज्यों में देवेंद्र
फड़नवीस, प्रेम कुमार धूमल, मनोहर लाल खट्टर तथा कई अन्य सक्षम नेता हैं। उधर कांगे्रस में संजय झा अच्छे
नेता साबित हो सकते थे, परंतु उन्हें बाहर कर दिया गया। हिमाचल की बात करें तो विप्लव ठाकुर और कौल सिंह
पार्टी के लिए सक्षम नेता साबित हो सकते हैं। पार्टी के सक्षम नेता भाग रहे हैं। पहले हेमंत बिस्वास, फिर संजय
झा और अब सचिन पायलट उसी पंक्ति में लग रहे हैं। कांग्रेस को अपने नेताओं को संभाल कर रखना होगा। उधर
राजस्थान में सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा देने के कारण स्थिति और
पेचीदा हो गई है।