संयोग गुप्ता
12 अप्रैल के बाद से दिल्ली-एनसीआर में भूकम्प के बार-बार लग रहे झटके चिंता का सबब बने हैं। करीब तीन
महीनों के इस अंतराल में इस क्षेत्र में भूकम्प के करीब दो दर्जन झटके लग चुके हैं। 3 जुलाई की शाम रिक्टर
स्केल पर 4.7 तीव्रता के झटकों के साथ दिल्ली-एनसीआर का पूरा इलाका एक बार फिर कांप उठा। बार-बार लग
रहे ऐसे झटकों के मद्देनजर इस इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकम्प का अनुमान लगाया जा रहा है।
बड़े भूकम्प के खतरे को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग के भूकम्प रिस्क असेसमेंट सेंटर द्वारा दिल्ली-एनसीआर
में इमारतों के मानक में शीघ्रातिशीघ्र बदलाव किए जाने का परामर्श दिया है। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान
संस्थान (एनजीआरआई) के मुख्य वैज्ञानिक डा. विनीत के गहलोत का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में आ रहे
भूकम्पों को लेकर अध्ययन चल रहा है। उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक
प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है
कि क्या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकम्प को झेलने की स्थिति में हैं?
दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे भूकम्प के झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट हाल ही में दो
बार कड़ा रूख अपना चुका है। 9 जून को हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई
दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आने पर लोगों की सुरक्षा
सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और
अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकम्प के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने
की जरूरत है। अदालत का कहना था कि भूकम्प जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है
क्योंकि भूकम्प से लाखों लोगों की जान जा सकती है। उसके बाद 18 जून को मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल तथा
न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने दिल्ली में भूकम्प के झटकों से इमारतों को सुरक्षित रखने के संबंध में बनाई
गई योजना को लागू करने में असफल होने पर दिल्ली सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी। दिल्ली सरकार तथा
एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा था कि भूकम्प से शहर को
सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने
भूकम्प के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो।
याचिकाकर्ता के मुताबिक हाईकोर्ट के कई निर्देशों के बावजूद दिल्ली सरकार ने अब तक भूकम्प से निपटने के लिए
कोई कार्ययोजना तैयार नहीं की है। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2015 में मुख्य याचिका दायर करते हुए
कहा था कि भूकम्प के लिहाज से दिल्ली की इमारतें ठीक नहीं हैं और तीव्र गति वाला भूकम्प आने पर दिल्ली में
बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है। हाईकोर्ट में यह याचिका अभी तक लंबित है और अदालत समय-समय
पर दिल्ली सरकार और नगर निकायों को कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश देती रही है। याचिकाकर्ता का कहना है
कि कागजों पर निश्चित तौर पर बेहतर दिशा-निर्देश और अधिसूचना बनाई गई है लेकिन जमीन पर ये लागू होती
दिखाई नहीं देती। हाईकोर्ट की पीठ ने प्राधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि दिल्ली सरकार तथा नगर निगम की
कोई कार्ययोजना है तो वह इसके संबंध में आम जनमानस को बताएं ताकि वे इस गंभीर समस्या के लिए खुद को
तैयार कर सकें।
अदालत को ऐसी टिप्पणियां करने को इसलिए विवश होना पड़ रहा है क्योंकि दिल्ली-एनसीआर भूकम्प के लिहाज
से काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में आता है। इसीलिए अदालत को
कहना पड़ा है कि केवल कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर ठोस काम
करने की जरूरत है। दरअसल वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर इस इलाके में कोई बड़ा भूकम्प आया तो उसके
बहुत भयानक परिणाम होंगे। वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी द्वारा कहा जा रहा है कि दिल्ली
एनसीआर क्षेत्र में लगातार हो रही सिस्मिक गतिविधि के कारण दिल्ली में बड़ा भूकम्प आ सकता है। नेशनल सेंटर
ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के पूर्व प्रमुख डा. ए.के शुक्ला के अनुसार दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा
है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है।
अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की इमारतों को भूकम्प के लिए तैयार करना शुरू कर
देना चाहिए ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को कम किया जा सके। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में करीब नब्बे
फीसदी मकान क्रंकीट और सरिये से बने हैं, जिनमें से 90 फीसदी इमारतें रिक्टर स्केल पर छह तीव्रता से तेज
भूकम्प को झेलने में समर्थ नहीं हैं। एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का करीब तीस फीसदी हिस्सा जोन-
5 में आता है, जो भूकम्प की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भी कहा
गया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से 6.6 तीव्रता के भूकम्प को झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें 5 से
5.5 तीव्रता का भूकम्प ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान
होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि करीब 1.9 करोड़ आबादी वाली दिल्ली में प्रतिवर्ग किलोमीटर दस
हजार लोग रहते हैं। कोई बड़ा भूकम्प 300-400 किलोमीटर की रेंज तक असर दिखाता है। वर्ष 2001 में भुज में
आए भूकम्प के कारण वहां से करीब 300 किलोमीटर दूर अहमदाबाद में भी काफी तबाही हुई थी। फिलहाल
इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिक भी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और उत्तरकाशी के इलाकों में भयंकर
भूकम्प आने की चेतावनी दे चुके हैं। उनके मुताबिक लगभग पूरा उत्तर भारत भूकम्प की चपेट में आ सकता है।
दिल्ली एनसीआर सहित समूचे उत्तर भारत में तीन महीने के अंदर भूकम्प के जो झटके महसूस किए गए हैं, वे
भले ही रिक्टर पैमाने पर कम तीव्रता वाले रहे किन्तु भूकम्प पर शोध करने वाले इन झटकों को बड़े खतरे की
आहट मान रहे हैं। एनसीएस के पूर्व प्रमुख ए के शुक्ला भी छोटे भूकम्पों को बड़ी चेतावनी के रूप में देख रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक संभव है कि दिल्ली एनसीआर में आ रहे हल्के भूकम्प किसी दूरस्थ इलाके में आने वाले बड़े
भूकम्प का संकेत दे रहे हों। राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र के निदेशक (ऑपरेशन) जे एल गौतम के अनुसार दिल्ली-
एनसीआर में जमीन के नीचे दिल्ली-मुरादाबाद फाल्ट लाइन, मथुरा फाल्ट लाइन तथा सोहना फाल्ट लाइन मौजूद है
और जहां फाल्ट लाइन होती है, भूकम्प का अधिकेन्द्र वहीं पर बनता है। उनका कहना है कि बड़े भूकम्प फाल्ट
लाइन के किनारे ही आते हैं और केवल दिल्ली ही नहीं, पूरी हिमालयन बेल्ट को भूकम्प से ज्यादा खतरा है।