कोविड-19 की महामारी में प्राकृतिक रूप से करें दिल की बीमारियों की रोकथाम

asiakhabar.com | July 14, 2020 | 5:45 pm IST
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जबसे कोरोना की महामारी की शुरुआत हुई है, तबसे दिल की बीमारियों से लोगों का ध्यान हट गया है। हालांकि,
विश्व स्तर पर हार्ट अटैक के कारण मृत्युदर और बीमारी की दर को अक्सर अनदेखा किया जाता है, लेकिन अभी
भी बहुत से ऐसे देश हैं जिन्हें इसके मृत्युदर के प्रकोप का आज भी सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां
अधिकतर देशों का मुख्य लक्ष्य कोविड19 के लिए वैक्सीन बनाना है, तो दूसरी ओर लोगों को इसकी रोकथाम के
तरीकों के बारे में बताया जा रहा है, जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन, हांथ धोना, किसी से हाथ न
मिलाना आदि।
हालिया आंकड़ों के अनुसार, 5.4 लाख मृत्युदर के साथ विश्वस्तर पर अबतक 1.2 करोड़ लोग कोरोना के संक्रमण
की चपेट में आ चुके हैं। वहीं भारत में 20, 000 मृत्यु दर के साथ अबतक 7.4 लाख मामले दर्ज किए जा चुके
हैं। बावजूद इसके, कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) और दिल की अन्य बीमारियों की तुलना में कोरोना के मामले
बहुत कम हैं। विश्वस्तर पर, हर साल 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों में दिल की किसी न किसी बीमारी की
पहचान होती है और अबतक 2 करोड़ लोगों की जान जा चुकी है, जिसके अनुसार इस बीमारी की मृत्युदर 10
प्रतिशत है। हर साल 6 करोड़ मरीजों के साथ, दुनिया भर के देशों की तुलना में भारत में दिल के मरीजों की
संख्या सबसे ज्यादा है, जो लगातार बढ़ रही है। इन आंकड़ों के अनुसार, हर रोज लगभग 9000 मरीजों की मौत
हो जाती है। लेकिन कोरोना के कारण इस गंभीर समस्या पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है।
कोविड और दिल की बीमारियों में संबंध
कई अध्ध्यनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि, कोरोना के जो मरीज पहले से किसी न किसी प्रकार की दिल की
बीमारी से ग्रस्त हैं, उनकी जान का खतरा 11.6 प्रतिशत गुना ज्यादा है। वहीं यदि मरीज डायबिटीज और उच्च
रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो तो जान का खतरा 8 गुना ज्यादा होता है। इसका सीधा संबंध कमज़ोर
इम्यूनिटी और बढ़ती उम्र से है। ऐसे में मृत्यु का खतरा 60 से अधिक उम्र के लोगों में 4 गुना, 70 से अधिक
उम्र के लोगों में 9 गुना और 80 से अधिक उम्र के लोगों में 15 गुना ज्यादा है। तथ्यों के अनुसार, कोविड19 की
मृत्युदर 2 प्रतिशत तक सीमित है जबकी दिल की बीमारियों के कारण 10 प्रतिशत से भी ज्यादा लोगों की जान
जाती है, इसके बावजूद इसे अनदेखा किया जाता है। भारत में लगभग 8-10 करोड़ मरीज दिल की बीमारियों से
जूझ रहे हैं, जहां प्रति 10 सेकेंड में एक मरीज मर रहा है।
प्राकृतिक बाईपास तकनीक एक बेहतरीन विकल्प
दरअसल, भारत के अस्पतालों में हर साल लगभग 2 लाख मरीजों की ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है, जिसकी
संख्या प्रति वर्ष 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद हार्ट अटैक के मामलों में कमी
नहीं आई है। इसके कारण भारत में एंजियोप्लास्टी और बाईपास सर्जरी के इस्तेमाल पर सवाल उठ रहे हैं, जहां
लगभग 10, 000 अस्पतालों में लालची हार्ट सर्जन और कार्डियोलॉजिस्ट काम करते हैं। भारत में, 5 लाख से भी
ज्यादा स्टेंट लगाए जाते हैं और लगभग 60, 000 बाईपास सर्जरी दिल के अस्पतालों में की जाती हैं जिसमें से
85 प्रतिशत उन मरीजों पर की जाती है, जिन्हें बिना सर्जरी के ठीक किया जा सकता है। वर्तमान में, सभी डॉक्टर

बाईपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी, दवाइयों और इमरजेंसी ट्रीटमेंट पर ज्यादा जोर देते हैं, जिसके कारण वे हार्ट
अटैक और हृदय रोगों के मूल कारण को नहीं समझ पाते हैं।
चूंकि, बीमारी के इलाज की प्रक्रिया में खून का बहाव होता है, जिससे संक्रमण का खतरा रहता है। ऐसे में यदि
किसी मरीज को प्राकृतिक रूप से ठीक किया जा सकता है, तो ऐसी खतरनाक प्रक्रियाओं को अनदेखा करना ही
बेहतर है। ईसीपी, जिसे प्राकृतिक बाईपास तकनीक के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जो बाईपास
या स्टेम सेल थेरेपी की तरह ही शरीर को नई रक्त वाहिकाओं को बढ़ाने के लिए सक्षम बनाती है। इसकी मदद से
मरीज जल्दी और देर तक चल सकते हैं। मरीजों का जीवन बेहतर हो जाता है, जबकी टेस्ट की मदद से दिल के
स्वास्थ्य का पता चलता रहता है। इसमें मरीज को सीने के दर्द, सांस की समस्या, थकान और चक्कर आदी से
छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा उन्हें एक्सरसाइज़ करने में आसानी होती है और शरीर में ऊर्जा का स्तर भी
बेहतर रहता है।
जीवनशैली में बदलाव जरूरी
ऑप्टिमम मेडिकल मैनेजमेंट के साथ योग और डाइट आधारित जीवनशैली की मदद से हृदय रोगों में कमी लाई जा
सकती है। ये न सिर्फ दिल को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं, बल्कि बाईपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी की
जरूरत को भी खत्म करते हैं। लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियां होने के नाते हृदय रोगों का इलाज भी लाइफस्टाइल
को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। चूंकि, हृदय रोग देश के करोड़ों लोगों और इकोनॉमी को प्रभावित करते
हुए भारतीय समाज पर एक बोझ की तरह बढ़ रहा है, इसलिए इसे जड़ से खत्म करना आवश्यक हो गया है।
बिना तेल का खाना
ट्राइग्लिसराइड्स एक प्रकार का तेल होता है, जो धमनियों को ब्लॉक करके विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों का कारण
बनता है। इसका यह अर्थ है कि हम हर रोज चाहे कितना भी कम तेल वाला खाना खाते हों, लॉग रन के हिसाब
से हम खुद को एक बड़ी मुश्किल में डाल रहे हैं। हालांकि, अधिकतर लोग खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए तेल का
उपयोग करते हैं, लेकिन सच यह है कि तेल में कोई स्वाद या फ्लेवर नहीं होता है। यदि इस बात पर यकीन न हो
तो आप खुद एक चम्मच तेल को पीकर यह जांच सकते हैं। तेल का उपयोग सिर्फ मसाले और खाने को पकाने के
लिए किया जाता है, जिससे खाने का स्वाद बढ़ जाता है। लेकिन क्या किसी को पता है कि बिना तेल के इस्तेमाल
के भी खाने का स्वाद बढ़ाया जा सकता है?
हमने 1000 से भी ज्यादा रेसिपी तैयारी की हैं, जो न सिर्फ बिना तेल के बनाई जा सकती हैं, बल्कि उनमें स्वाद
की भी कोई कमी नहीं है। हमारे शरीर को जितनी मात्रा में वसा की जरूरत होती है, वह चावल, सब्जियां, फल,
गेंहू और दाल आदि से पूरी हो जाती है। एडूवेक्सीन ‘हृदय रोगों की रोकथाम’ से संबंधित है, इस नॉन इनवेसिव
प्रक्रिया में लाइफस्टाइल में बदलाव, अमेरिका द्वारा प्रमाणित ईईसीपी और आयुर्वेदा, होमियोपेथी, नेचुरोपेथी और
डिटॉक्सिफिकेशन शामिल है।


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