देश भर में ऑनलाइन क्लासेस के नाम पर दिनों निजी स्कूलों में फीस वसूली का खेल धड़ल्ले से जारी है। यही
नहीं वो इन सबके के लिए खुलेआम अपनी आवाज़ बुलंद कर रहें है, इसी बीच इस बात को लेकर स्कूल प्रशासन
और अभिभावकों के बीच तनातनी के बहुत से मामले सामने आये है। फीस वसूलने के लिए निजी स्कूल
अभिभावकों को लगातार मैसेज और फोन कर रहे हैं। यही नहीं फीस जमा करने के लिए अभिभावकों को छूट का
ऑफर भी दिया जा रहा है। कई स्कूलों में तो अप्रैल महीने का भी फीस भी उगाही जा रही है, जबकि अप्रैल महीने
में न तो ऑनलाइन क्लासेस लगी और न ही स्कूल खुले थे।
देश भर के प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर अभिभावकों से अप्रेल, मई और जून की बढ़ी हुई फीस
वसूली कर रहे हैं। साथ ही स्कूली शिक्षकों को वेतन न देना पड़े, इसके लिए तरह-तरह की तिकड़मबाजी भी कर रहे
हैं। इन सब समस्याओं को लेकर राज्यों के शिक्षा विभाग भी अनजान नहीं हैं, लेकिन वो कर कुछ नहीं पा रहे या
फिर करना करना नहीं चाहते है। क्या ये शिक्षा का बाजीकरण कर माफिया तरह की हरकत नहीं है। तभी तो उलटा
हो गया है क्योंकि होमवर्क ही नहीं, क्लासवर्क भी पेरेंट को करवाना पड़ रहा है। ऑनलाइन क्लास में टीचर्स इतने
छोटे बच्चे को पढ़ाने में सक्षम नहीं है और वह बच्चे की बजाय बच्चे के पेरेंट्स को ही कहते हैं कि इसे एल्फाबेट
और नंबर लिखना सिखाएं।
यही नहीं खर्चे भी दोहरे हो गए है इस वजह से पेरेंट्स को अलग से स्मार्ट फोन का प्रबंध करना पड़ रहा है, जो
ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चे के लिए उपलब्ध रहे और दोनों में से एक पेरेंट्स को घर भी रहना पड़ता है
क्योंकि छोटा बच्चा खुद मोबाइल ऑपरेट नहीं कर सकता है आज देश भर के अभिभावक मजबूर है। छात्र परेशान
हैं। पर वो जायें तो कहां जाये? कोचिंग सेंटरों और प्राइवेट स्कूलों की इस प्रकार की लूट पर सरकार का भी
नियंत्रण नहीं है। शिक्षा विभाग भी चुप है। क्या नजीर है ये भी? घर में पूरी पढाई अभिवावक करवायेंगे और फीस
स्कूल लेंगे। क्या अभिभावकों को अब फीस माफ़ी के बजाय अपनी मेहनत के लिए स्कूलों से उलटी उनको फीस
अदायगी की बात नहीं रखनी चाहिए। इस बात की मीडिया भी वकालत क्यों नहीं कर रहा है?
प्राइवेट स्कूलों का तर्क है कि उनके खर्चे पूरे कैसे हो। ये बात ज्यादा जमने वाली नहीं है। पहली बात तो आजकल
स्कूल बंद है तो उनके बिजली, पानी, साफ़-सफाई और ट्रांसपोर्ट के सभी खर्चे शून्य हो चुके है। जहां तक शिक्षकों
के वेतन की बात है तो सभी को पता है कि पहले से ही र्पाइवेट स्कूल घपले करते रहे हैं। ये शिक्षकों से 30 हजार
पर साइन करा के 14 हजार देते रहे हैं लेकिन इस लॉकडाउन में शिक्षकों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जा रहा
है या फिर उनसे ऑनलाइन क्लासेज पढ़वाने के बावजूद कई महीनों से वेतन नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में ये भी
सवाल है कि आखिर यह पैसा जा कहां रहा है?
वहीं अगर स्कूल पक्ष की बात करें तो स्कूलों की ओर से कहा जा रहा है कि उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती
सिर्फ फीस से ही शिक्षकों-स्टाफ को वेतन दिया जाता है। तो सालों की कमाई आखिर कहाँ गायब हो गई। एक बच्चे
से ये साल बाहर तीस से चालीस हज़ार तो कम से कम लेते हैं। फिर कहाँ गायब हो गए इनके करोडो रुपए? ऐसे
में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से भी आदेश दिया गया है कि सभी र्पाइवेट स्कूल अपने अकाउंट का
ब्यौरा सार्वजनिक करें। और पता किया जाए कि ये स्कूल अपने खर्चों को घटाने के बावजूद भी भारी मुनाफा कमा
रहें है। सभी स्कूल अपनी बैलेंस शीट और आय-व्यय का विवरण अपने स्कूल कि वेबसाइट पर लगाए और
सम्बंधित जिला शिक्षा अधिकारी से वेरीफाई करवाए। प्राइवेट स्कूलों के धंधे बड़े काले है, बीस रुपए की सरकारी
पुस्तक लगाने की बजाये ये अपने पब्लिशर से उसी पुस्तक के पांच सौ से छह सौ रुपए वसूलते आये है। आखिर ये
खुली लूट की छूट इनको मिलती कैसे है, सोचना होगा और अभिभावकों को इस बारे आंदोलन पर उतरना होगा।
फीस वसूली बारे दक्षिण भारत में कनार्टक सरकार ने राज्य के प्राइवेट स्कूलों को चेतावनी दी है कि यदि कोई भी
प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन दाखिला या ऑनलाइन क्लॉस लेने के नाम पर फीस लेगा तो उसके खिलाफ महामारी रोग
अधिनियम 1897 की धारा -3 के तहत कार्रवाई की जाएगी। सार्वजनिक निर्देश विभाग ने स्कूल प्रबंधन को
चेतावनी दी है कि यदि कोई शैक्षणिक संस्थान कानून का उल्लंघन करता हैं, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी
की जाएगी। ऐसे कानून सभी राज्यों और केंद्र सरकार को तुरंत अमल में लाने चाहिए।
लेकिन इनके लिए सबसे पहले, यह मानना आवश्यक है कि स्कूलों का नियंत्रण राज्य सरकारों का विषय है।
इसलिए राज्य सरकारों को निजी पहल को रोकना नहीं चाहिए। स्कूलों की शोषणकारी प्रथाओं से जनता की रक्षा
करना होना चाहिए। राज्यों को एक स्वतंत्र, अर्ध-न्यायिक विद्यालय नियामक संस्था का गठन करना चाहिए। आज,
शिक्षा विवादित हैं क्योंकि बड़े-बड़े राजनेता और उनके रिश्तेदार इन स्कूलों के सबसे बड़े संचालक भी हैं। राजनीतिक
और नौकरशाही हस्तक्षेप से ही इस लूट से बचा जा सकता है।
कानून के अनुसार ऐसा हो कि स्कूल लाभ के लिए न हों बल्कि समाज सेवा के अंतर्गत हो। और इसे प्रमाणित
करने के लिए, कंपनियों के समान ही वार्षिक वित्तीय लेखा परीक्षाओं को उसी कठोरता के साथ निष्पादित किया
जाना चाहिए। स्कूलों के लिए लेखांकन मानकों को विकसित करने की आवश्यकता है, जो कि ऐसी नॉन-फॉर-प्रॉफिट
एंटिटीज़ से पैसे निकालने के लिए अक्सर इस्तेमाल की जाने वाली प्रथाओं को खत्म करने के उद्देश्य से किया
जाता है।
स्कूलों को हर साल सार्वजनिक रूप से अपनी फीस प्रकाशित करनी चाहिए, और उसके बाद किसी भी बदलाव की
अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसा कोई भी प्रयास अधिक भ्रष्टाचार के लिए जगह प्रदान करेगा। फीस की
स्थिरता, अन्य वित्तीय मामलों और सुरक्षा पर माता-पिता के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराया जाना
चाहिए। समतामूलक शिक्षा तक पहुंच के खिलाफ कुछ भी हो, उसे राष्ट्रीय कुरीति माना जाना चाहिए और इसे
अत्यंत प्राथमिकता और महत्व के साथ ठीक किया जाना चाहिए। अच्छी, न्यायसंगत शिक्षा के लिए एक मजबूत
सार्वजनिक प्रणाली का कोई विकल्प नहीं है।