अर्पित गुप्ता
हमारी धरती अब जिस नए खतरे से घिर रही है, वह जमीन पर ओजोन का खतरा है। 16 दिसंबर, 1987 को
संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियल शहर में 33 देशों ने
एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसे 'मांट्रियल प्रोटोकाल कहा गया। इस सम्मेलन में यह तय किया गया था
कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) के उत्पादन और उपयोग को सीमित
किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इस पर बहुत ज्यादा अमल नहीं हुआ है।
ओजोन गैस वायुमंडल में पतली और पारदर्शी परत के रूप में रहती है। वायुमंडल में ओजोन का कुल प्रतिशत अन्य
गैसों की तुलना में बहुत कम है। ओजोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल, जिसे क्षोभ मंडल कहा जाता है, में भी
पाई जाती है। इसलिए ओजोन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह समताप मंडल में पृथ्वी को हानिकारक
पराबैंगनी विकिरण से बचाने का काम करती है।
मानवजनित औद्योगिक प्रदूषण के फलस्वरूप क्षोभ मंडल में ओजोन की मात्रा बढ़ रही है और समताप मंडल में
जहां इसकी जरूरत है, वहां ओजोन की मात्रा घटती जा रही है। वाहनों से उत्सर्जित होने वाला धुआं जब सूर्य के
प्रकाश के संपर्क में आता है तो ओजोन का निर्माण होता है। ओजोन गैस न केवल लोगों की सेहत बिगाड़ रही है,
बल्कि फसलों को भी प्रभावित कर रही है। जैसे-जैसे वाहनों की संख्या बढ़ रही है, इसकी तीव्रता भी बढ़ रही है।
ऐसे में मौजूद ओजोन वैज्ञानिकों के समक्ष चुनौती बन गई है। पर्यावरण में दिनों-दिन बढ़ती ओजोन से भविष्य में
बढ़ते खतरों को लेकर विश्व में शोध हो रहे हैं। भारत में भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के
वैज्ञानिक जानने का प्रयास कर रहे हैं कि अगर पर्यावरण में ओजोन की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही, तो गेहूं के
साथ-साथ अन्य फसलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। वैज्ञानिक यह भी पता करने में लगे हैं कि ओजोन से किस किस्म
की फसलें ज्यादा प्रभावित हो रही हैं, कौनसी फसल बची रहेगी और कौन सी ओजोन के दुष्प्रभाव के बावजूद
अच्छी फसल देगी? वायुमंडल में ओजोन परत पतली होना एक चिंता का विषय है। यह एक नया खतरा मंडराता
नजर आ रहा है।
जो ओजोन धरती पर आ रही है, वह खतरनाक बन रही है। ओजोन तत्व ऑक्सीजन के तीन अणुओं से बना है।
जीवन के लिए ऑक्सीजन के दो अणु जरूरी होते हैं, लेकिन वहीं ऑक्सीजन के तीन अणु घातक होते हैं जो जमीन
पर जमा होकर इंसान और पौधों की सांस में व्यवधान उत्पन्न करते हैं। जब वाहनों, बिजली संयंत्र, रिफाइनरियों
और अन्य स्रोतों से हुआ प्रदूषण सूर्य के प्रकाश के साथ मिलता है, तब हानिकारक गैस ओजोन बनती है और वह
जमीन पर जमा होती जाती है। सर्दियों के दौरान स्मॉग भी ऐसे ही बनता है। स्मॉग का प्रमुख कारण ओजोन ही
है। ऐसा देखने में आ रहा है कि वायु की गुणवत्ता घटने से ओजोन का स्तर जमीन पर बढ़ रहा है जो भारत के
कई शहरों के लिए समस्या बन गया है। जब हवा में घुली ओजोन मनुष्यों के फेफड़ों में जाती है तो यह फेफड़ों के
छोटे-छोटे छेदों को बंद करने की कोशिश करती है। ऐसे में खांसी और सीने में दर्द होने लगता है और कई बार
फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। अस्पतालों में रोजाना त्वचा संबंधी रोगों के
मरीजों की संख्या बढ़ रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि सुरक्षा कवच कही जाने वाली ओजोन परत नष्ट हो
रही है।
अगर हमने ओजोन परत की रक्षा नहीं की, तो आने वाले दिनों में और घातक बीमारियों का सामना करना पड़
सकता है। इससे बचने के लिए हमें धरती के आसपास बढ़ती ओजोन गैस को रोकना होगा। शोध से पता चला है
कि जमीनी स्तर पर ओजोन गैस फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। इसके कारण 2005 में साठ लाख टन गेहूं,
चावल, सोयाबीन और कपास की फसलों का नुकसान हुआ। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर ने एक शोध में
पाया कि 2012 से 2013 के बीच 90 लाख टन गेहूं और 26 लाख टन चावल की फसलें नष्ट हुई थीं। इसी
तरह वर्ष 2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए शोध से पता चला कि भारत में फसलों के नुकसान का
प्रमुख कारण जमीन पर मौजूद ओजोन है। पेड़-पत्तियों में भी ओजोन द्वारा कुछ ऐसा ही असर दिख रहा है और वे
सूखने लग रहे हैं। ओजोन परत को नष्ट करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार चीन है। चीन के कुछ उद्योग भारी
मात्रा में प्रतिबंधित गैसों को वातावरण में छोड़ रहे हैं, जिससे ओजोन की परत में छेद बड़ा हुआ है।