संयोग गुप्ता
वाशिंगटन। रूस की ओर से मिले इनाम के लालच में अफगानिस्तान के आतंकवादियों ने
अमेरिकी सैनिकों की हत्या करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था, यह खुफिया जानकारी मिलने के बावजूद
अमेरिका-तालिबान समझौता बेपटरी नहीं हुआ है और न ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान से अपने हजारों
सैनिकों को वापस बुलाने की योजना को ठंडे बस्ते में डाला है। हालांकि इस खुलासे ने इस समझौते के आलोचकों
को यह कहने की एक और वजह दे दी है कि तालिबान भरोसे लायक नहीं है। खुफिया अधिकारियों के मुताबिक
राष्ट्रपति को दैनिक रूप से दी जाने वाली खुफिया सूचनाओं के ब्योरे के तहत 27 फरवरी को ट्रंप को रूस द्वारा
तालिबान को इनाम की पेशकश किए जाने संबंधी सूचना भी दी गई थी। हालांकि इसके दो दिन बाद अमेरिका तथा
तालिबान ने कतर में समझौता कर लिया। इस समझौते ने अफगानिस्तान में 19 साल से अमेरिकी सैनिकों की
तैनाती को खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया, साथ ही ट्रंप के लिए उस वादे को पूरा करने का रास्ता भी
बनाया जिसमें वह इस ‘‘अंतहीन युद्ध’’ में अमेरिका की भागीदारी को खत्म करना चाहते थे। समझौते के तीन दिन
बाद, तीन मार्च को राष्ट्रपति ने तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से फोन पर बात की। जून
में जब यह खुलासा हुआ कि इनाम की रूस की पेशकश के बदले तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की हत्या का
जिम्मा लिया है तो विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बरादर से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बात की और यह साफ कर
दिया कि अमेरिका तालिबान से अपने वादों पर कायम रहने की उम्मीद करता है। सीनेट सदस्य माइक वॉल्ट्ज ने
कहा, ‘‘तालिबान ने समझौता होने से पहले और बाद में यह बार-बार दिखाया है कि वह इसे लेकर गंभीर नहीं हैं।’’
हालांकि सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकियों की हत्या करने के लिए तालिबान को पैसे के लालच की
जरूरत नहीं है। यूएस इंस्टिट्यूट ऑफ पीस में अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया मामलों के विशेषज्ञ स्कॉट स्मिथ ने
कहा, ‘‘केवल इनाम की बात नहीं है, हम इसे इस तरह देखते हैं कि तालिबान समझौते का सम्मान करेगा या
नहीं।’’ रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों ही दलों के सांसदों, रक्षा अधिकारियों और अफगानिस्तान विशेषज्ञों ने यह
दावा किया है कि तालिबान ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे यह पता चलता हो कि वह चार महीने पुराने
समझौते का पालन कर रहा है। उन्होंने अंदेशा जताया कि तालिबान 9/11 हमलों के लिए जिम्मेदार अल-कायदा के
साथ शायद ही कभी संबंध तोड़ेगा। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियानों की निगरानी कर रहे अमेरिकी
जनरल फ्रेंक मैक्केंजी ने कहा कि वह अमेरिकी सैनिकों की जल्द वापसी के पक्ष में नहीं हैं। हाल में आई रक्षा
विभाग की एक युद्ध संबंधी रिपोर्ट में कहा गया कि तालिबान ने अफगान बलों के खिलाफ अधिक हिंसा शुरू कर
दी है जबकि अमेरिकी या गठबंधन बलों पर हमलों से वह बच रहा है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया कि
तालिबान के अलकायदा से करीबी संबंध कायम हैं।