मंहगा तेल, ये कैसा खेल?

asiakhabar.com | July 1, 2020 | 1:57 pm IST
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विनय गुप्ता

देश के इतिहास में तेल को लेकर कई कीर्तिमान नए स्थापित हुए हैं। एक तो यह कि डीज़ल की क़ीमत कभी भी
पेट्रोल से अधिक नहीं हुई परन्तु पिछले दिनों यह रिकार्ड भी टूट गया और राजधानी दिल्ली में डीज़ल का दाम
पेट्रोल से भी आगे निकल गया। 30 जून को दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल के दाम 80.47 रुपये और डीज़ल का दाम
80.57 रुपये था। दूसरा यह कि तेल के मूल्यों में वृद्धि लगातार कई दिनों तक कभी नहीं जारी रही मगर पिछले
21 दिनों तक लगातार पेट्रोल व डीज़ल के मूल्यों में इज़ाफ़ा होता रहा। तीसरे यह कि भारत में किसी भी सरकार
के रहते प्रायःतेल के मूल्यों में वृद्धि तभी हुई है जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों में इज़ाफ़ा
हुआ है। परन्तु यह पहली बार हो रहा है की एक ओर तो कच्चे तेल की क़ीमतें रिकार्ड स्तर तक गिर रही हैं दूसरी
तरफ़ रिकार्ड स्तर पर ही तेल की क़ीमतों में इज़ाफ़ा भी हो रहा है। ग़ौर तलब है कि इस समय कच्चे तेल की
क़ीमत यूपीए सरकार के समय की क़ीमत की तुलना में लगभग एक तिहाई मात्र है। सवाल यह है कि इस अवसर
का लाभ देश की आम जनता व किसानों को दिए जाने के बजाए उल्टे आम जनता की ही जेबें क्यों ढीली की जा
रही हैं?
क्या सरकार को इस बात का ज्ञान नहीं कि डीज़ल का मूल्य पेट्रोल से अधिक या पेट्रोल के बराबर होने की स्थिति
में मंहगाई पर कितना असर पड़ेगा? क्या सरकार को नहीं मालूम कि वर्तमान कोरोना व लॉक डाउन के संकट काल
में जबकि देश की अर्थव्यवस्था को संभालने का एकमात्र साधन देश की कृषि व्यवस्था व देश के किसान हैं? फिर
आख़िर डीज़ल के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि कर ट्रैक्टर, कम्बाइन पम्पिंग सेट तथा अन्य डीज़ल चलित कृषि
उपकरणों को प्रभावित करने के पीछे सरकार की क्या मंशा है? सरकार क्या इस बात से भी अनभिज्ञ है कि डीज़ल
के मूल्य बढ़ने से माल भाड़ा /ढुलाई मंहगी होगी जिसका सीधा असर समस्त सामानों पर पड़ेगा। यानी रातों रात
महँगाई और बढ़ जाएगी और बढ़ भी चुकी है? क्या सरकार उन दिनों को भूल चुकी है जबकि विपक्ष में रहते हुए
यही लोग तेल की क़ीमत बढ़ने पर -'बहुत हुई मंहगाई की मार' का नारा लगाने लगते थे। इनके नेता अर्ध नग्न
अवस्था में प्रदर्शन किया करते थे? भाजपा के यही नेता एक दिन तेल की मूल्य वृद्धि होने पर ऐसे घड़ियाली
आंसू बहाते थे गोया इनसे बड़ा जनहितेषी कोई है ही नहीं?जबकि पिछली यूपीए सरकार के समय में आम तौर पर
कच्चे तेल की क़ीमतें बढ़ने पर ही पेट्रोल व डीज़ल के मूल्यों में वृद्धि की जाती थी।
पिछले दिनों पेट्रोल व डीज़ल के मूल्यों में होती जा रही ज़बरदस्त वृद्धिके विरोध में देश के मुख्य विपक्षी दल
कांग्रेस पार्टी के आह्वान पर राष्ट्रीय स्तर पर धरने प्रदर्शन आयोजित किये गए। बिहार में तो साईकिल व बैलगाड़ी
की रैली निकाल कर विरोध प्रदर्शित किया गया। बंगलूरू में भी तेल के बढ़ते दामों के खिलाफ कांग्रेस ने साइकिल
रैली निकाली। कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने निवास स्थान से साइकिल चलाकर प्रदर्शन स्थल
पहुंचे। परन्तु इन प्रदर्शनों को कई जगह कुचलने का प्रयास किया गया। अनेक शहरों से प्रदर्शंकारियों पर लाठी
बरसाने के समाचार सामने आए। कई जगह इन प्रदर्शनकारियों को पुलिस हिरासत में भी लिया गया।परन्तु अपने
को विपक्ष के निशाने पर घिरा देख सरकार के ज़िम्मेदार मंत्री स्तर के लोगों द्वारा इतना बेहूदा जवाब दिया गया
जिसे इनके 'संस्कारों' के सिवा और क्या कहा जा सकता है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा तेल की क़ीमतों में लगातार होने वाली वृद्धि के आरोपों के प्रत्युत्तर में कहा,

कि – 'बिचौलियों, 'राष्ट्रीय दामाद', 'परिवार' और राजीव गांधी फ़ाउंडेशन के खातों में पैसा ट्रांसफ़र करने के कांग्रेस
के इतिहास के विपरीत, मोदी जी का डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) ग़रीबों, किसानों, प्रवासी कर्मचारियों और
महिलाओं के हाथ में पैसा देना है।' यह है केंद्रीय मंत्री के उत्तर देने की भाषा और उनका अंदाज़। देश की
अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाने वाली सरकार के मंत्री 'बिचौलियों, 'राष्ट्रीय दामाद', 'परिवार' और राजीव गांधी
फ़ाउंडेशन का नाम लेकर अपने आक़ाओं को ख़ुश कर अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं परन्तु जब
यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी जैसे नेता इन विषयों पर इन्हें बहस की चुनौती देते हैं तो इन्हें छुपने की जगह भी
नहीं मिलती।
कौन सी नीति यह कहती है कि लॉक डाउन व कोरोना के संकटों से अवसाद की स्थिति में पहुंच रहे देशवासियों,
आम लोगों मज़दूरों किसानों व बेरोज़गार हो चुके करोड़ों लोगों से पहले तो आप तेल की बढ़ी क़ीमत के नाम पर
पैसे वसूल कीजिये उसके बाद उन्हीं के खातों में पैसे ट्रांसफ़र करने का हवाला देकर तेल की बढ़ी क़ीमतों को उचित
ठहराइए? इसमें कोई शक नहीं कि दूसरी बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद भाजपा के नेताओं का अहंकार
चौथे आसमान पर है। इन्हें किसी नेता या विपक्षी दल का विरोध, विरोध नज़र नहीं आता बल्कि यह अहंकार में
उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं। केंद्रीय मंत्री मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की भाषा व उनका जवाब इस बात का सबसे बड़ा सुबूत है।
इनकी पूरी राजनीति नेहरू गाँधी परिवार के विरोध पर ही टिकी हुई है। माना कि आप को जनता ने पूर्ण बहुमत
दिया है। यह भी सच है कि इस समय विपक्ष न केवल कमज़ोर बल्कि विभाजित भी है। और यह भी सच है कि
देश का कामगार, मज़दूर, किसान यहाँ के आम लोग असंगठित हैं। तो क्या इसका अर्थ यह है कि सरकार, जनता
को जैसे चाहे और जब चाहे निचोड़ती रहे? जनहितैषी होने का दावा करने वाली सरकार को क्या सुझाई नहीं दे रहा
कि कोरोना की मार ने आम लोगों, मध्यम, उच्च व निम्न मध्य वर्ग तथा किसानों को आर्थिक रूप से किन
हालात का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया है? एक अनुमान के अनुसार तेलों में मूल्य वृद्धि कर सरकार
देशवासियों से अब तक लगभग 20 लाख करोड़ की वसूली कर चुकी है।
ऐसी संभावना है कि सरकार की इस मनमानी का प्रभाव बिहार के आगामी अक्टूबर-नवंबर माह में होने वाले
विधानसभा चुनावों में ज़रूर देखा जाएगा। लॉक डाउन के दौरान श्रमिकों के साथ हुई सरकार की बेरुख़ी के बाद
पेट्रोल व डीज़ल की क़ीमतों में रोज़ाना इज़ाफ़ा कर सरकार ने विपक्षी दलों व मतदाताओं को सत्ता के प्रबल विरोध
का अवसर दे दिया है। जनता भ्रमित है कि जब दुनिया में विशेषकर पूरे दक्षिण एशिया में इस समय तेल सस्ता हो
रहा है तो भारत में ही महंगे तेल का आख़िर खेल है क्या?


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