पशु पक्षियों व मानव के बीच सदियों से चले आ रहे 'प्राकृतिक अविश्वास' के रिश्तों को लेकर वैसे तो यह विचार
मेरे मस्तिष्क में दशकों से हिचकोले मार रहा था। परन्तु पिछले दिनों केरल में एक गर्भवती हथनी की दुखदायी
मौत के बाद अपने दिमाग़ में बैठे इस ग़ुबार रूपी विचार को बाहर निकालने से नहीं रोका जा सका। केरल में हथनी
की अत्यंत दुखदायी मौत हुई। कुछ लोगों ने इस मौत को अपनी आँखों पर लगे पूर्वाग्रह के चश्मों से देखना शुरू
किया। मेनका गाँधी जो इन दिनों फ़ुरसत में हैं उन्हें केरल के पलक्कड़ ज़िले में मरी हथनी मल्लापुरम ज़िले में
नज़र आने लगी। अब चूँकि मल्लापुरम में मुसलमानों की तादाद ज़्यादा है इसलिए बिना सोचे समझे व बिना जांच
पड़ताल किये हथनी की इस हत्या के लिए मुसलमानों पर निशाना साधा जाने लगा। नतीजतन मल्लापुरम ज़िले के
कई लोगों व संगठनों ने मेनका गाँधी के विरुद्ध कई मुक़दमे दर्ज करा दिए। मौक़े की ताक में बैठे अनेक नेता व
'पत्थरकार' भी मेनका गाँधी के ट्ववीट के बाद इस विषय को ले उड़े। केरल में कई पशु विशेषज्ञों व अनेक पत्रकारों
का यह भी कहना है कि पलक्कड़ ज़िले में विस्फ़ोट से भरा अनन्नास खाने वाली गर्भवती हथनी को विशेष रूप से
निशाना बनाकर यह अनन्नास वहां नहीं रखा गया था बल्कि जंगली सूवरों से आतंकित किसान अपनी फ़सल को
सूअरों से बचने के लिए प्रायः इस तरह के विस्फ़ोटक जंगलों में फैला देते हैं। इनका निशाना सूअर होते हैं।बहरहाल
बेचारी हथनी जानबूझकर मारी गयी या धोखे से मरी यह तो विवेचना का विषय है। अभी केरल की हथनी की हत्या
का मामला शांत नहीं हुआ कि हिमाचल प्रदेश जिसे देव भूमि भी कहते हैं, के बिलासपुर ज़िले के झंडूता थाना क्षेत्र
के डाढ गांव में एक गाय को भी विस्फोटक खिलाने का समाचार आया जिससे उसका मुंह व जबड़ा बुरी तरह
क्षतिग्रस्त हो गया। समाचारों के अनुसार गाय मालिक गुरदयाल सिंह की शिकायत पर आरोपी नन्दलाल को
गिरफ़्तार भी किया गया। परन्तु इस घटना ने तूल इसलिए नहीं पकड़ा क्यूंकि हिमाचल प्रदेश में न तो वामपंथी
सरकार थी न ही साम्प्रदायिकता का कोण स्थापित हो पा रहा था।क्योंकि गाय के मालिक ने आरोपी का नाम '
नन्दलाल' पहले ही उजागर कर दिया था। साधारण लोगों की पशु के साथ अमानवीयता की बात ही क्या करनी
हमारे देश में तो विधायक स्तर का ज़िम्मेदार समझा जाने वाला व्यक्ति भी अपनी लाठियों से पूरी शक्ति से प्रहार
कर घोड़े की टांग तोड़ कर हीरो बन जाता है।
बहरहाल, यह बात तो बिल्कुल सच है कि मनुष्य सदियों से अनेक पशुओं-पक्षियों को अपनी शातिर बुद्धि के बल
पर अपने नियंत्रण में किये हुए है। इतना ही नहीं बल्कि मनुष्य इसे न सिर्फ़ अपनी चतुराई व शातिरपने से इसे
अपनी उंगली पर नचाने की क्षमता रखता है बल्कि अपने स्वभाव के अनुसार पशु पक्षियों पर कभी तो अत्यधिक
स्नेह व प्यार उंडेल देता है तो कहीं क्रूरता की सभी हदें भी पार कर जाता है। सही मायने में तो किसी भी स्वतंत्र
पशु पक्षी को पालने के नाम पर क़ैद में रखना ही अमानवीयता की श्रेणी में ही आता है। परन्तु इसी मानव ने पशु
पक्षियों के संबंध में अपनी सुविधा,स्वाद व ज़रूरत के अनुसार स्वयं अनेक परिभाषायें भी गढ़ रखी हैं।मानव स्वयं
यह तय करता है कि कौन सा पशु पक्षी पालतू है कौन सा नहीं। कौन सा पशु पक्षी काटने व खाने योग्य है कौन
सा नहीं। कौन सा हराम है कौन हलाल। यहां तक कि स्वयं को शाकाहारी बताने वाला मानव का ही एक वर्ग ऐसा
भी है जो पशु पक्षियों की हत्या कर उसका माँस खाने का तो विरोधी है परन्तु उसे इन्हीं पशुओं की खाल से
निर्मित पर्स,बेल्ट,जूते जैसी अनेक सामग्रियों के प्रयोग से और पशुओं की हत्या कर इससे बनाई जाने वाली दवाइयों
के इस्तेमाल से कोई आपत्ति नहीं। कई मठाधीशों को जीव हत्या तो नहीं पसंद मगर जीव हत्या के बाद उसकी खाल
से बने आसन पर बैठने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं।
इस्लाम धर्म में तो इंसान को 'अशरफ़ुल मख़लूक़ात' यानि प्राणियों में सबसे उत्तम प्राणी का दर्जा हासिल है। और
साथ साथ यह भी कि -'पृथ्वी पर सभी चीज़ें अल्लाह ने इंसान के लिए ही बनाई हैं।' यह धारणा या विश्वास इस
बात के लिए काफ़ी है कि अपनी सुविधा व ज़रूरत के मुताबिक़ पशु पक्षियों सहित पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त
प्रकृतिक चीज़ों का उपयोग कैसे किया जाए। परन्तु जो बात मेरे ज़ेहन व ख़यालों में दशकों से समाई हुई है वह यह
है कि आख़िर मानव जाति के लिए पशु पक्षी भी क्या धारणा रखते होंगे? ज़ाहिर है पशु पक्षी स्वयं इसका उत्तर तो
दे नहीं सकते लिहाज़ा क्यों न मानव के प्रति इनके व्यवहार से ही इस प्रश्न का उत्तर तलाश किया जाए? यहाँ उन
पशु पक्षियों को आम तौर पर यदि छोड़ दिया जाए जिन्हें इंसान ने उनके स्वभाव के विपरीत पालतू बना कर उनके
प्रकृतिक स्वभाव को बदल दिया है। और उन पशु पक्षियों की बात करें जो प्रकृतिक वातावरण में सांस ले रहे हैं
और पूरी तरह आज़ाद हैं तो हम यह देखेंगे कि कोई भी पशु पक्षी यदि किसी से सबसे अधिक भयभीत या सचेत
दिखाई देता है तो वह है मानव जाति का सदस्य। यहाँ तक कि एक दूसरे का शिकार करने व एक दूसरे पर
हमलावर होने वाले पशु पक्षी भी शहरों से लेकर जंगलों तक कहीं भी देखिये तो प्रायः एक साथ या आस पास
विचरण करते दिखाई दे जाते हैं।
एक प्रजाति का जानवर दूसरी प्रजाति के जानवर पर अकारण हमलावर नहीं होता। यहां तक कि शिकार करने वाले
पशु पक्षी भी तब तक अपने भोजन का शिकार नहीं करते जब तक उन्हें भूख न लगी हो या अपने बच्चों के लिए
शिकार की ज़रुरत न महसूस हो। निश्चित रूप से सभी पशु पक्षी एक दूसरे के इस व्यवहार से भली भांति वाक़िफ़
हैं तभी वे समय पड़ने पर अपने उसी दुश्मन से बचाव भी करते हैं और उसी के साथ जंगलों में या अन्यत्र बेफ़िक्री
के साथ बैठे या चरते भी दिखाई देते हैं। परन्तु जैसे ही इन स्वतंत्र पशु पक्षियों के समक्ष मानव जाति का कोई
सदस्य यानी 'अशरफ़ुल मख़लूक़' अवतरित' होता है उसे देखते ही प्रत्येक पशु पक्षी भागने लगता है। सवाल यह है
कि आख़िर इंसानों से ही यह पशु पक्षी इतना भयभीत क्यों होते हैं। मेरे विचार से ईश्वर या अल्लाह ने पशुओं व
पक्षियों को भी इस बात का पूरा ज्ञान दे दिया है कि चूँकि यह हज़रत 'अशरफ़ुल मख़लूक़ात 'हैं लिहाज़ा भले ही
अपने सजातीय दुश्मन से बेख़बर रह लेना परन्तु इस 'अशरफ़ुल मख़लूक़' से हमेशा ख़बरदार रहना।
स्वतंत्र रहने वाले प्रत्येक पशु पक्षियों इंसानों को देखकर भाग जाते हैं क्योंकि उन्हें ईश्वर ने यह सूझ दे रखी है कि
यह 'सुपर प्राणी' न जाने कब किस पशु पक्षी पर हमलावर हो जाए और कब किस के साथ क्या शोध अथवा प्रयोग
करने लग जाए। यहाँ तक कि आप जिन पक्षियों को अपने घर की छत पर दाना पानी डाल कर उनकी प्यास
बुझाते हैं उन्हें भी यदि आप पकड़ना चाहें तो वह भी आप से फ़ासला बनाते हैं और उड़ जाते हैं। अगर आप बार
बार उन्हें पकड़ने का प्रयास करें फिर तो वे आना ही बंद कर देते हैं। पशु पक्षियों की मानव के प्रति चौकसी व
मानव के अविश्वास देखकर कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है कि इंसान स्वयं इंसान पर विश्वास कर ज़रूर
सदियों से विश्वासघात का शिकार होता आ रहा है परन्तु पशु पक्षियों को ईश्वर ने ज़रूर इतना ज्ञान व बुद्धि दी है
कि वह अपने दुश्मन पशु पक्षियों पर तो ज़रूर विश्वास करे परन्तु अशरफ़ुल मख़लूक़ यानी हज़रत-ए- इन्सान पर
विश्वास क़तई नहीं करे।