जिस समय दुनिया में कई स्थलों पर तनाव खतरनाक रूप ले रहा है, नॉर्वे स्थित नोबेल कमेटी ने परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को फिर से चर्चा में लाने का प्रयास किया है। फिलहाल हम उस दौर में हैं, जब चीन ने परमाणु पनडुब्बियों को समुद्री गश्त में लगाने का फैसला किया है, पाकिस्तान गाहे-बगाहे भारत को परमाणु हथियारों की धौंस दिखाता है और अमेरिका ने अपने परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण का इरादा जताया है। विश्व जनमत की उपेक्षा कर उत्तर कोरिया भी अपनी परमाणु ताकत का लगातार इजहार कर रहा है। वह इसके जरिए न सिर्फ अपने आस-पड़ोस, बल्कि अमेरिका को भी धमकाने की कोशिश में लगा है।
इस माहौल में वो उद्देश्य विश्व के एजेंडे पर कहीं नजर नहीं आता, जो संयुक्त राष्ट्र के स्थापना प्रस्ताव में व्यक्त हुआ था। वर्ष 1945 में अपने गठन के साथ ही इस संस्था ने दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने का संकल्प लिया था। मगर विडंबना ही है कि उसके बाद परमाणु हथियार रखने वाले देशों की संख्या बढ़ती गई। परमाणु अस्त्र संपन्न् देशों का जखीरा भी बढ़ता गया। अब ऐसा लगता है कि विश्व नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के उस मूल उद्देश्य की चर्चा भी छोड़ दी है। इसी पृष्ठभूमि में इंटरनेशनल कैंपेन टु एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स (आईसीएएन) नामक संस्था को 2017 का नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। नोबेल कमेटी ने कहा कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से होने वाली भयानक मानवीय त्रासदी की तरफ लोगों का ध्यान दिलाने और इस तरह के हथियारों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की संधि का मार्ग प्रशस्त करने के लिए आईसीएएन को पुरस्कृत किया गया है। आईसीएएन का गठन 2007 में हुआ। इस वक्त इसकी सहयोगी संस्थाएं 101 देशों में फैली हुई हैं। विगत जुलाई में 122 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु हथियारों पर रोक लगाने वाली संधि को स्वीकार किया। बताया जाता है कि इस संधि को संपन्न् कराने में आईसीएएन ने अहम भूमिका निभाई। किंतु उस संधि से विश्व पर मंडराता परमाणु हथियारों का खतरा टला नहीं है। परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के तहत परमाणु अस्त्र संपन्न् देश के रूप में मान्यता प्राप्त अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन व फ्रांस इस संधि का हिस्सा नहीं बने। इसी तरह परमाणु हथियार रखने वाले अन्य देश भारत, पाकिस्तान, इसराइल व उत्तर कोरिया भी इसका हिस्सा नहीं हैं।
जाहिर है, दुनियाभर में परमाणु हथियारों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाने की जरूरत लगातार बनी हुई है। भारत ने हमेशा ही परमाणु अस्त्र विहीन दुनिया का समर्थन किया है। लेकिन वह इस मामले में भेदभाव के खिलाफ है। इसीलिए उसने एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए और अपनी सुरक्षा का वास्तविक आकलन करते हुए परमाणु हथियार बनाए। अब नोबेल कमेटी ने परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए मुहिम को बल प्रदान करने कोशिश की है, तो बेशक भारत उसकी भावना के साथ है। क्या बाकी सभी देश भी इस भावना के अनुरूप व्यवहार करेंगे? ऐसा हो, तो अधिक सुरक्षित और खुशहाल दुनिया बनाने का रास्ता साफ हो सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसा होने की गुंजाइश कम नजर आती है।