संयोग गुप्ता
जैसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया की कोरोना वायरस की वैक्सीन बनना संभव नहीं हैं। और दूसरा अभी तक
कोई दवा का निश्चित निर्धारण नहीं हुआ हैं। इसका मतलब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के इलाज़ के
सम्बन्ध में हाथ खड़े कर लिए हैं। एक बात निश्चित हैं जब एलॉपथी किसी रोग में असफल हो जाती हैं तब अन्य
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जाता हैं। यहाँ एक बात की जानकारी देना जरुरी हैं की आयुर्वेद
औषधियां हमारे भारत देश की जलवायु के लिए से लाभकारी होगीं, कारण आयुर्वेद में स्पष्ट लिखा हैं की उस देश
की औषधि उसी देश के निवासियों के लिए ही लाभकारी होती हैं। हम अपने देश की बनी हुई का उपयोग करे
यस्य देशस्य या जंतु स्तज्ज्य तस्यौषधं हितम
साथ ही आयुर्वेद में इस बात का भी उल्लेख किया गया हैं की यदि कोई वैद्य या डॉक्टर रोग का नाम न जानता
हो तो उसमे कोई हानि नहीं। आप दोष दुष्य के आधार पर चिकित्सा कर सकते हैं।
यहाँ एक बात का बताना चाहता हूँ की कोई भी औषधि सबको लाभकारी नहीं हो सकती, उसका कारण हैं हर
व्यक्ति की प्रकृति अलग अलग होती हैं जैसे कोई वातज, कोई पैत्तिक और कोई कफज के साथ द्वंदज प्रकर्ति के
होते हैं। आजकल फेस बुक, व्हाट्सअप, मेस्सेंजर में इलाज़ की बहुलता चलन में हैं और सब अलग लग तरह से
इलाज़ बता रहे हैं, उनकी कितने प्रतिशत सफलता मिलती हैं उसके बारे में कह नहीं सकता पर जहाँ चिकित्सा
सिद्धांत की बात हैं की कोई भी चिकित्सक बिना प्रत्यक्ष रोगी परीक्षण किये इलाज़ न दे। यह एक प्रकार का
आपराधिक कृत्य माना जा सकता हैं। लाभ होने पर वाह वाही मिल सकती हैं पर यदि कोई उपद्रव होता हैं तो वह
चिकित्सक ही जिम्मेदार माना जायेगा। इस पर कई न्यायलय से भी निर्णय पारित हुए हैं। ऐसा अलोपथी चिकित्सा
में भी होता हैं, कोई ड्रग रिएक्शन करती हैं तो कोई रेजिस्टेंट हो जाती हैं। इसीलिए योग्य चिकित्सक बिना
अष्टविध परिक्षण कर इलाज़ न दे। साथ एक प्रकृति के अनुसार इलाज़ दिया जाना उचित हैं जैसे कोई पित्त प्रकति
के मरीज़ को पित्त बढ़ाने वाली दवा देने से लाभ की जगह हानि होने की अधिक संभावना होती हैं और इस कारण
लाभ न मिलने से मरीज़ का विश्वास चिकित्सक और चिकित्सा पद्धति से उठ जाता हैं।
भारत वर्ष में खासतौर पर आयुर्वेद ग्रंथों में लाखों योग, सभी रोगों के समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, और न
उनके लिए अलग से प्रयोगशालाओं की जरुरत हैं, जरुरत हैं विशाल दृष्टिकोण की। आज भी जीर्ण रोगों,
आमाशय,लिवर, श्वाश, संधिगत, वातव्याधि, स्त्री रोगों में आयुर्वेद औषधियां ही गुणकारी होती हैं। जब तक किसी
भाषा, धर्म, संस्कृति और चिकित्सा को राज्याश्रय नहीं मिलता वह पनप/विकसित नहीं हो सकती। एक बात और हैं
आयुर्वेद न केवल जड़ी बूटी का विज्ञान नहीं हैं यह एक दर्शन और जीवन पद्धत्ति हैं जिसके माध्यम से आप
कलात्मक जीवन जीकर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी हैं की हमारा शरीर
वर्षों से रासायनिक औषधियों के साथ रसायन युक्त आहार ग्रहण करने से हमारा शरीर रसायन युक्त बनने से
आयुर्वेद कुछ समय ले सकता हैं कारण रसायन को निष्क्रिय करने रसायन ही लाभकारी होते हैं, दूसरा हमारी दिन
चर्या दिन रात वात,पित्त कफ के ऊपर आश्रित होता हैं, इस कारण पथ्य अपथ्य का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं
जैसे अनियमित भोजन करने के कारण अम्लता की बहुलता होने से अम्लपित्त केमरीज़ बहुत मिलते हैं। रात्री में
अधिक विलम्ब से होने से वात पित्त की वृद्धि होती हैं। शरीर के रसायन आपके नियंत्रण में नहीं हैं अतःआपको
प्रकृति के अनुसार चलना होगा। दूसरा आप पथ्य से चलेंगे तो चिकित्सा की जरुरत नहीं और अपथ्य से चलते हैं
तो भी चिकित्सा और चिकित्सक क जरुरत नहीं।
आयुर्वेद चिकित्सा लेने के पूर्व मानसिकता बनानी होगी, जैसे आप हनुमान जी मंदिर जाते हैं तो उसका प्रसाद
अलग होता हैं और देवी जी के लिए अलग, गणेश जी के लिए अलग, इसी प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा कराने आपको
आयुर्वेद मानसिकता से जाना होगा। यानी आपको परहेज करना होगा, नियमित विश्वास के साथ औषधियां लेनी
होगी और थोड़ा आपकी प्रकृति को समायोजित करने के लिए समय देना होगा।
अंत में हमारा पहला लक्ष्य होता हैं स्वस्थ्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना और आतुर को स्वास्थ्य लाभ देना।
स्वस्थ्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकारप्रशमनेअप्रमाद,
यस्य देशस्य या जंतु स्तज्ज्य तस्यौषधं हितम।