विकास गुप्ता
ईद जैसे खुशी के मौके पर भी पाकिस्तान भारत को कोसे बिना नहीं रह सका। सुबह विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी
ने भारत के खिलाफ नफरत जाहिर करने से परहेज नहीं किया। दोपहर तक सेना प्रमुख कमर बाजवा भी भारत को
हद में रहने की नसीहत देने लगे। सुबह कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान अपने खिलाफ किए गए भारत के किसी भी
दुस्साहस का माकूल जवाब देगा। बता दें कि पिछले दिनों भारत की ओर से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर दावा
ठोंकने के बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। यहां तक कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन की
मीटिंग में उसने भारत पर इस्लामोफोबिया का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग तक कर डाली। कुरैशी ने ईद की
नमाज के बाद मुल्तान में कहा कि पाकिस्तान शांति चाहता है और खुद को रोकने की उसकी नीति को कमजोरी
नहीं समझना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, अगर भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई दुस्साहस करता है तो उसे माकूल
जवाब दिया जाएगा। दोपहर को सेना प्रमुख सामने आए और अपनी विफलता के साथ ही भारत के जुल्म का जवाब
देने की बात करने लगे। बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान धारा-370 के खात्मे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में
नाकाम रहा जबकि भारत ने इसका पूरा फायदा उठाया। बाजवा ने गीदड़भभकी देते हुए कहा कि इसकी स्थिति को
चुनौती देने के किसी भी प्रयास का पूरी सैन्य ताकत के साथ जवाब दिया जाएगा। बता दें कि पिछले साल 5
अगस्त को भारत सरकार के कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद से ही पाकिस्तान इसे
अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की फिराक में था। उसने कश्मीर मुद्दे को दुनिया के हर मंच पर उठाया लेकिन उसका
कोई लाभ नहीं हुआ। उसके सबसे खास दोस्त चीन ने भी इसे भारत पाकिस्तान के बीच का मुद ही बताया।
वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान ने भारत के आंतरिक मामलों में बेजा दखल देने की कोशिश की
हो और गीदड़भभकी दी हो। विडंबना यह है कि ऐसी स्थितियों का सामना करने और वैश्विक स्तर पर बने
समीकरणों के बावजूद पाकिस्तान अब भी भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करता रहता है। मुश्किल यह
है कि इस मामले में वैश्विक मंचों पर वह अकेले कुछ कर पाने की स्थिति में तो नहीं ही है और जिन देशों का
सहारा मिलने की उसे उम्मीद होती है, उनसे भी कुछ खास हासिल नहीं हो पाता। दरअसल, इससे पहले भी
पाकिस्तान और चीन ने कश्मीर के मसले पर संयुक्त राष्ट्र में भारत को घेरने की कोशिश की थी। मसलन, पिछले
साल अगस्त में चीन ने सुरक्षा परिषद की बैठक बुला कर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटा कर इसे दो केंद्र
शासित प्रदेशों में बांटे जाने का मसला उठाया था, जो नाकाम रहा। इसके बाद फिर बीते दिसंबर में भी कश्मीर
मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में बहस कराने का प्रस्ताव चीन को इसलिए वापस लेना पड़ा था, क्योंकि रूस और ब्रिटेन
ने खुले तौर पर भारत का साथ देते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में चर्चा की जरूरत नहीं है।
सवाल है कि बार-बार हाथ लगने वाली नाकामी के बावजूद पाकिस्तान और चीन को यह समझने में क्यों मुश्किल
हो रही है कि कश्मीर में जो कुछ भी है, वह भारत का आंतरिक मामला है और यहां की समस्याओं से निपटना
आखिरकार भारत की जिम्मेदारी है!
सुरक्षा परिषद के कई सदस्यों ने यह भी कहा है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है और
दोनों देशों के बीच बातचीत से ही इसका हल होना चाहिए। इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि अगर कोई देश अपनी
सीमा में किसी इलाके में खड़े हुए किसी मुद्दे से जूझ रहा है तो यह उसका आंतरिक मामला है और इसमें किसी
तरह की गैरजरूरी दखल देने की स्थिति से दूसरे देशों को बचना चाहिए। सवाल है कि क्या पाकिस्तान और चीन
इस तथ्य से अनजान हैं कि किसी संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में बिना उसकी मांग के किसी भी तरह का दखल
देना ठीक नहीं है, वरना इस तरह की प्रवृत्ति के नतीजे में होने वाली उथल-पुथल की मुश्किल किसी भी देश को
झेलने की नौबत आ सकती है? गौरतलब है कि इस साल भारत में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन की बैठक
में पाकिस्तान को भी निमंत्रण भेजने की चर्चा है। यानी पाकिस्तान की बेमानी हरकतों के बावजूद अगर संबंधों को
सहज बनाने के लिहाज से भारत का रुख सकारात्मक है तो क्या पाकिस्तान और चीन को अपने रवैये पर विचार
नहीं करना चाहिए?