विनय गुप्ता
जिहाद और जिहादी-इन दोनों शब्दों का पिछले दो दशकों से नकारात्मक अर्थों और सन्दर्भों में जम कर प्रयोग हो
रहा है। इन दोनों शब्दों को आतंकवाद और हिंसा से जोड़ दिया गया है। 9/11 के बाद से इन शब्दों का मीडिया में
इस्तेमाल आम हो गया है। 9/11/2001 को न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत से दो हवाईजहाजों को भिड़ा
दिया गया था। इस घटना में लगभग 3,000 निर्दोष लोग मारे गए थे। इनमें सभी धर्मों और राष्ट्रीयताओं के
व्यक्ति शामिल थे। ओसामा बिन लादेन ने इस हमले को जिहाद बताया था। इसके बाद से ही अमरीकी मीडिया ने
‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग शुरू कर दिया। मुस्लिम आतंकी गिरोहों द्वारा अंजाम दी गई सभी घटनाओं
को इस्लामिक आतंकवाद बताया जाने लगा। देवबंद और बरेलवी मौलानाओं सहित इस्लाम के अनेक अध्येताओं के
बार-बार यह साफ़ करने के बावजूद कि इस्लाम निर्दोष लोगों के खिलाफ हिंसा की इज़ाज़त नहीं देता, इस शब्द का
बेज़ा प्रयोग जारी है।
जिहाद शब्द सांप्रदायिक और विघटनकारी ताकतों के हाथों में एक हथियार बन गया है। सोशल मीडिया के अलावा
मुख्यधारा के मीडिया में भी इसका धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। गोदी मीडिया इस जुमले का प्रयोग मुसलमानों
के विरुद्ध ज़हर घोलने के लिए कर रहा है। हाल (11 मार्च 2020) में ज़ी न्यूज़ के मुख्य संपादक श्री सुधीर
चौधरी ने तो सभी हदें पार कर लीं। उन्होंने बाकायदा एक चार्ट बनाकर जिहाद के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया-
लव जिहाद, लैंड जिहाद और कोरोना जिहाद! चौधरी का कहना था कि इन विभिन्न प्रकार के जिहादों द्वारा भारत
को कमज़ोर किया जा रहा है। चौधरी क्या कहना चाह रहे थे, यह तो वही जानें परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि
टीवी पर इस तरह के कार्यक्रमों से मुसलमानों और जिहाद के बारे में मिथ्या धारणाएं बनती हैं।
गोदी मीडिया के लिए इस तरह का दुष्प्रचार कोई नई बात नहीं है। परन्तु इस बार जो नया था वह यह कि संपादक
महोदय के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई। इसके तुरंत बाद उनका सुर बदल गया। अगले कार्यक्रम में उन्होंने
जिहाद शब्द का काफी सावधानी और सम्मानपूर्वक से इस्तेमाल किया। यह कहना मुश्किल है कि उन्हें अचानक
कोई ज्ञान प्राप्त हुआ या फिर क़ानूनी कार्यवाही से भय से वे डर गए। आज जिहाद शब्द का इस्तेमाल हिंसा और
आतंकवाद के पर्यायवाची बतौर किया जाता है। परन्तु कुरान में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है। इस्लामिक विद्वान
असग़र अली इंजीनियर के अनुसार कुरान में इस शब्द के कई अर्थ हैं। इसका मूल अर्थ है अधिकतम प्रयास करना
या हरचंद कोशिश करना। निर्दोषों के साथ खून-खराबे से जिहाद का कोई लेनादेना नहीं है। हां, बादशाह और अन्य
सत्ताधारी इस शब्द की आड़ में अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। अपने प्रभावक्षेत्र में विस्तार की लडाई को वे धार्मिक
रंग देते रहे हैं। ठीक इसी तरह, ईसाई राजाओं ने क्रूसेड और हिन्दू राजाओं ने धर्मयुद्ध शब्दों का दुरुपयोग किया।
कुरान और हदीस के गहराई और तार्किकता से अध्ययन से हमें जिहाद शब्द का असली अर्थ समझ में आ सकता
है। भक्ति संतों की तरह, सूफी संत भी सत्ता संघर्ष से परे थे और धर्म के आध्यात्मिक पक्ष पर जोर देते थे।
उन्होंने इस शब्द के वास्तविक और गहरे अर्थ से हमारा परिचय करवाया। इंजीनियर के अनुसार, “यही कारण है
कि वे युद्ध को जिहाद-ए-असग़र और अपनी लिप्सा व इच्छाओं पर नियंत्रण की लडाई को जिहाद-ए-अकबर (महान
या श्रेष्ठ जिहाद) कहते हैं” (‘ऑन मल्टीलेयर्ड कांसेप्ट ऑफ़ जिहाद’, ‘ए मॉडर्न एप्रोच टू इस्लाम’ में, धर्मारम, पृष्ठ
26, 2003, बैंगलोर)।
कुरान में जिहाद शब्द का प्रयोग 40 से अधिक बार किया गया है और अधिकांश मामलों में इसे ‘जिहाद-ए-अकबर’
के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है-अर्थात अपने मन पर नियंत्रण की लडाई। जिहाद शब्द के गलत अर्थ में प्रयोग-
चौधरी जिसके एक उदाहरण हैं- की शुरुआत पाकिस्तान में विशेष तौर पर स्थापित मदरसों में मुजाहीदीनों के
प्रशिक्षण के दौरान हुई। यह प्रशिक्षण अमरीका के इशारे पर और उसके द्वारा उपलब्ध करवाए गए धन से दिया
गया था। यह 1980 के दशक की बात है। उस समय रूसी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था और
वियतनाम में अपनी शर्मनाक पराजय से अमरीकी सेना का मनोबल इतना टूट गया था कि वह रुसी सेना का
मुकाबला करने में सक्षम नहीं थी। इसलिए अमरीका ने मुजाहीदीनों के ज़रिये यह लड़ाई लड़ी।
अमरीका ने इस्लाम के अतिवादी सलाफी संस्करण का इस्तेमाल कर मुस्लिम युवाओं के एक हिस्से को जुनूनी बना
दिया। मुस्लिम युवाओं को अमरीका के धन से संचालित मदरसों में तालिबान बना दिया गया। उनके प्रशिक्षण
कार्यक्रम का पाठ्यक्रम वाशिंगटन में तैयार किया गया। उन्हें अन्य समुदायों से नफरत करना सिखाया गया और
काफिर शब्द का तोड़ा-मरोड़ा गया अर्थ उन्हें समझाया गया। उन्हें बताया गया कि कम्युनिस्ट काफ़िर हैं और उन्हें
मारना जिहाद है। और यह भी कि जो लोग जिहाद करने हुए मारे जाएंगे उन्हें जन्नत नसीब होगी जहाँ 72 हूरें
उनका इंतज़ार कर रहीं होंगीं।
अमरीका ने ही अल कायदा को बढ़ावा दिया और अल कायदा भी रूस-विरोधी गठबंधन का हिस्सा बन गया। महमूद
ममदानी ने अपनी पुस्तक ‘गुड मुस्लिम, बेड मुस्लिम’ में लिखा है कि सीआईए के दस्तावेजों के अनुसार, अमरीका
ने इस ऑपरेशन पर लगभग 800 करोड़ डॉलर खर्च किये और मुजाहीदीनों को भारी मात्रा में आधुनिक हथियार
उपलब्ध करवाए, जिनमें मिसाइलें शामिल थीं। हम सबको याद है कि जब अल कायदा के नेता अमरीका की अपनी
यात्रा के दौरान वाइट हाउस पहुंचे तब राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने उनका परिचय ऐसे लोगों के रूप में दिया जो
कम्युनिज्म की बुराई के खिलाफ लड़ रहे हैं और अमरीका के निर्माताओं के समकक्ष हैं।
यह बात अलग है कि बाद में यही तत्त्व भस्मासुर साबित हुए और उन्होंने बड़ी संख्या में मुसलमानों की जान ली।
इस्लामिक स्टेट और आईएसआईइस जैसे संगठन भी अस्तित्व में आ गए। ऐसा अनुमान है कि पश्चिम एशिया के
तेल के कुओं पर कब्ज़ा करने के अमरीकी अभियान के तहत जिन संगठनों को अमरीका ने खड़ा किये था उन्होंने
अब तक पाकिस्तान के 70,000 नागरिकों की जान ले ली है। सुधीर चौधरी जैसे लोग ‘जिहाद’ शब्द का
इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए कर रहे हैं। यह संतोष की बात है कि कानून का चाबुक फटकारते ही वे चुप्पी
साध लेते हैं। हम आशा करते हैं कि इस तरह के घृणा फैलाने वाले अभियानों का वैचारिक और कानूनी दोनों स्तरों
पर मुकाबला किया जायेगा और भारतीय संविधान इसमें हमारी सहायता करेगा।