कोरोना योद्धा : पहले जान फिर सम्मान

asiakhabar.com | May 14, 2020 | 12:07 pm IST
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विनय गुप्ता

कोरोना अथवा कोविड-19 की प्रलयकारी महामारी ने एक बात तो विश्व स्तर पर प्रमाणित कर ही दी है कि इस
समय कोरोना वायरस तथा इंसानों के मध्य यदि ढाल बनकर खड़े हैं तो वे हैं केवल कोरोना वॉरियर्स। इनमें
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सभी डॉक्टर्स, नर्सेज़, अस्पताल के सफ़ाई तथा अन्य कर्मचारी, पूरे विश्व में दिन रात
कोरोना वायरसअथवा कोविड-19 पर प्रभावी होने वाली दवाई या वैक्सीन बनाने में जुटे वैज्ञानिक तथा महामारी से
संबंधित क़ानूनों को अमल कराने में जुटे पुलिस व अन्य सुरक्षा कर्मी तथा संकट की इस घड़ी में मुसीबत ज़दा
लोगों की सहायतार्थ अपनी जान ज़ोख़िम में डालने वाले तमाम समाजसेवी शामिल हैं। इस महामारी ने बड़े से बड़े
धर्म प्रमुख जो अपने अपने धर्म के स्थानों को शिफ़ा ख़ाना या मुक्ति का केंद्र बताते आ रहे थे वही धर्माधिकारी
उन्हीं कथित शिफ़ाख़ानों या मुक्ति केंद्रों में ताले डालकर अपनी अपनी जान की पनाह मांगते फिर रहे हैं। बड़े बड़े
राजनेता जो अफ़लातून बने फिरते थे और पूरी दुनिया पर ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड पर नियंत्रण रखने के मंसूबों
पर काम कर रहे थे वे सभी असामान्य व्यवहार करते देखे जा रहे हैं। क्या उद्योगपति क्या नेता, अभिनेता,
लेखक, कवि, खिलाड़ी, यहाँ तक कि इंजीनियर्स व डॉक्टर्स सभी कोरोना से भयभीत हैं। ऐसे में पूरी दुनिया का
नेतृत्व यह समझ चुका है कि महा संकट की इस घड़ी में केवल कोरोना योद्धाओं पर ही पूरी दुनिया को स्वस्थ व
सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी है। लिहाज़ा बेहतर यही होगा कि कोरोना अथवा कोविड-19 के योद्धाओं को ख़ुश रखा
जाए तथा उन्हें अतिरिक्त मान व सम्मान दिया जाए। इसी मक़सद के तहत दुनिया के कई देश इन्हीं कोरोना
वॉरियर्स की शान व सम्मान में तरह तरह के कार्यक्रम व आयोजन अपने अपने देशों में कर चुके हैं।कई देशों में
कोरोना योद्धाओं के साथ साथ इस महामारी के इस संकट व इससे उपजे लॉक डाउन जैसे हालात से पूरे देश के
लोगों को उबारने व उनका मनोबल बढ़ाने व कई जगह कोरोना से मरने वालों की स्मृति में भी कुछ कार्यक्रम किये
गए हैं।
जिस चीन में सबसे पहले कोरोना ने अपने पांव पसारने शुरू किये थे, उसी चीन ने अपने कोरोना योद्धाओं को
लाइट शो के माध्यम से सम्मानित किया। इस लाइट शो के लिए 1000 से अधिक ड्रोन का इस्तेमाल किया गया
था। ड्रोनों ने आकाश में विभिन्न कलाकृतियां बनाईं। याद रहे कि घातक कोरोनावायरस पहले चीन के वुहान शहर
में उभरा था उसके पश्चात यह दुनिया भर में फैल गया था। इसी प्रकार दूसरे सबसे बड़े कोरोना प्रभावित देश इटली
में भी वहां की वायुसेना ने कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन में रह रहे देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए
आकाश में अपने देश के झंडे के रंगों की छटा बिखेरी। इसी तरह लंदन में भी डॉक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों को
देशव्यापी सलामी के रूप में कोरोना वायरस पीड़ितों का इलाज करने वाले ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के
कर्मचारियों के समर्थन में लंदनके विश्व प्रसिद्ध झूले लंदन आई को नीली रौशनी से जगमग किया गया। लंदन के
अतिरिक्त पूरे ब्रिटेन में भी सैकड़ों स्वास्थ्य सेवा और अन्य श्रमिकों के सम्मान में एक मिनट के लिए मौन रखा
गया था। यह मौन उनके सम्मान में भी था जिन्होंने देश भर में कोरोना वायरस से युद्ध करते हुए अपना जीवन
खो दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस अवसर पर 10 डाउनिंग स्ट्रीट, लंदन में श्रद्धांजलि देने के
लिए खड़े होकर एक मिनट कामौन रखा।
स्कॉटलैंड में भी वहां के प्रथम मंत्री निकोला स्टर्जन ने एडिनबर्ग में सेंट एंड्रयूज हाउस के बाहर एक मिनट का मौन
रखा।वहां उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि दी गयी जिन्होंने कोरोनो वायरस से अपनी जान गंवाई है। इसी तरह
तेहरान के आज़ादी (स्वतंत्रता) टॉवर को ईरान के झंडे के रंग की रौशनी से रोशन कर कोरोना वायरस महामारी से
प्रभावित सभी देशों से आशा और सहयोग के संदेशों के साथ रोशन किया गया। इसी प्रकार विश्व के अनेक देशों ने
इस महामारी की महासंकट कालीन घड़ी में कहीं कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाने, कहीं अवसादग्रसित होती जा

रही आम जनता का मनोबल बढ़ाने तो कहीं कोरोना के कारण मरने वालों को श्रद्धांजलि देने व उनके परिजनों को
सांत्वना देने के उद्देश्य से कोई न कोई कार्यक्रम किये। उसी श्रृंखला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवाह्न पर भारत
में तीन बार तीन अलग अलग आयोजन हुए। सर्वप्रथम 22 मार्च को शाम पांच बजे जनता कर्फ़्यू ख़त्म होने के
बाद 5 मिनट के लिए ताली बजाओ-थाली बजाओ अभियान छेड़ा गया। इसके बाद 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9
मिनट के लिए टार्च, दीया अथवा मोबाईल की फ़्लैश लाईट जलाने का आवाह्न किया गया। तथा तीसरे चरण में
तीन मई को तीनों सेनाओं की ओर से कोरोना योद्धाओं विशेषकर स्वास्थ कर्मियों पर पुष्प वर्षा की गयी तो कहीं
समुद्र में युद्धपोत पर रौशनी कर उन्हें सम्मान दिया गया।
भारत में तीन चरणों में कोरोना योद्धाओं को सम्मान दिए जाने को लेकर पूरे देश में एक सवाल यह किया जा रहा
है कि जिस प्रकार अब तक अनेक डॉक्टर्स, नर्सेज़ व स्वास्थ कर्मी तथा कोरोना ड्यूटी पर तैनात कई पुलिस कर्मी
अपनी जानें गंवा चुके हैं ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं कि उन्हें सम्मान देने या उन्हें 'गर्व' भेंट करने से ज़्यादा
ज़रूरी है कि उनकी सुविधा व सुरक्षा के समुचित प्रबंध किये जाएं। आज देश के कई हिस्सों से ऐसे समाचार आ रहे
हैं कि डॉक्टर्स, नर्सेज़ व सफ़ाई कर्मी तथा स्वास्थ्य विभाग के अन्य कर्मचारी पीपीई किट जैसे आत्म रक्षा वाले कई
उपकरणों की कमी से जूझ रहे हैं। महाराष्ट्र की तरह कई जगह से ऐसे समाचार भी आए हैं कि किसी नर्सों या
अन्य स्वास्थ कर्मियों के कोरोना पॉज़िटिव आने की स्थिति में उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा है।
डॉक्टर्स कई जगह पर्याप्त सुविधाओं के अलावा अति सीमित व्यवस्था से परेशान हैं। परन्तु कोरोना योद्धाओं की
इस तरह की कई मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने के बजाए सुरक्षा उपकरणों की कमी से जूझ रहे कोरोना वॉरियर्स
पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गयी।अफ़सोस तो यह कि उसी दिन सेना के कर्नल और मेजर रैंक के पाँच
अधिकारी सीमा पर शहीद हो गए।जवानों की शहादत की ख़बर आने के बाद भी सीडीएस जनरल विपिन रावत के
निर्देशों पर सेना ने कोरोना वॉरियर्स पर पुष्प वर्षा की।
देश यह ज़रूर जानना चाहेगा कि कोरोना योद्धाओं की ज़रूरतों को पूरा करना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए या
उन्हें फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा गौरवान्वित करना? और यह कि ऐसी कौन सी आपातकालीन ज़रुरत थी कि एक
तरफ़ तो हमारे सैन्य अधिकारियों व जवानों के शव उनके परिजनों के घर पहुंचाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हीं के
साथी जवानों से कोरोना योद्धाओं पर 'गर्व' की पुष्प वर्षा कराई जा रही थी? पहले सैनिकों के परिजनों के साथ
उनके शोक में शामिल होना ज़रूरी था या कोरोना योद्धाओं पर 'गर्व' की पुष्प वर्षा? पहले जान है या पहले
सम्मान?


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