प्रकृति के निखरे स्वरूप को लेकर रूमानी न हों : जावड़ेकर

asiakhabar.com | April 23, 2020 | 12:04 pm IST

सरजू जैन

नई दिल्ली। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को कहा
कि लॉकडाउन के दौरान प्रकृति की जो निखरी छटा सामने आयी है उसे लेकर रोमांटिक होने की जरूरत नहीं है
क्योंकि इन परिस्थितियों में देश के संसाधन मात्र 30 करोड़ लोगों का बोझ उठा सकते हैं, 130 करोड़ लोगों का
नहीं।
जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये गये वायदे पूरे न करने और अधिकांश प्रदूषण के लिए विकसित देशों को
जिम्मेदार ठहराते हुये उन्होंने कहा कि टिकाऊ विकास के लक्ष्य कोई देश अकेला हासिल नहीं कर सकता। कोरोना
वायरस ‘कोविड-19′ के बाद की दुनिया पूरी तरह बदली-बदली होगी और हमें इस नये ‘सामान्य’ को स्वीकार करना
होगा।
पृथ्वी दिवस के मौके पर एक ‘वेबीनार’ को संबोधित करते हुये केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब लोगों को टिकाऊ
विकास का महत्व मालूम हो रहा है। धरती हरी-भरी है, आसमान दिन में नीला और रात को तारों भरा है, जालंधर
से हिमालय दिख रहा है। प्रकृति अपनी पराकाष्ठा पर है लेकिन हमें इसे लेकर रोमांटिक नहीं होना चाहिए। उन्होंने
कहा, “यदि हम चाहते हैं कि ऐसा ही बना रहे तो हमें “कुछ” चीजों को त्यागना पड़ेगा। हमें वाहनों, उद्योगों और
उत्पादों को बंद करना होगा। हमें गांवों की तरफ लौटना होगा लेकिन तब हम सिर्फ 30 करोड़ लोगों का गुजर-बसर
कर सकेंगे, 130 करोड़ लोगों का नहीं।”
जावड़ेकर ने कहा कि हमारे सामने चुनौती यह है कि हम 130 करोड़ लोगों का भरण-पोषण करते हुये किस प्रकार
प्रकृति का भी ध्यान रखते हैं। कम उपभोग की भारतीय परंपरा रही है। हमारी प्रति व्यक्ति सालाना बिजली खपत
मात्र एक हजार यूनिट है जबकि अमेरिका में यह 12 हजार यूनिट है। हमारे यहां प्रति हजार व्यक्ति 25 कारें हैं
जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों में यह आंकड़ा 400 से 600 कार प्रति एक हजार व्यक्ति का है।
उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों तथा पर्यावरण के लक्ष्यों को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा विकसित देशों
का अपने वायदे पूरे नहीं करना है। उन्होंने कहा,“विकसित देशों ने वर्ष 2009 में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के
प्रभावों को कम करने के लिए वे गरीब और विकासशील देशों को हर वर्ष 100 अरब डॉलर उपलब्ध करायेंगे। वह
पैसा कहां है? अब तक वह पैसा नहीं मिला है।
यदि आप गरीब और विकासशील देशों की मदद नहीं करेंगे, अपनी जीवनशैली नहीं बदलेंगे तो सतत विकास लक्ष्य
कभी हासिल नहीं हो सकेंगे। कोई भी देश अकेला पूरी दुनिया को टिकाऊ विकास के रास्ते पर नहीं ले जा सकता।
इसके लिए सबको साथ आना होगा।”
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि दूसरा वायदा विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए
प्रौद्योगिकी देने का किया था, लेकिन उसमें वे अपना व्यापार और फायदा तलाश रहे हैं। ये प्रौद्योगिकियां सबके

लिए उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा,“ सतत विकास लक्ष्यों में सबसे बड़ी बाधा अधूरे वायदे हैं। सौ साल पहले
एक महामारी ने दुनिया को बदलकर रख दिया था।
कोविड-19 के बाद हमें नई जीवन शैली और नये सामान्य” को स्वीकार करना होगा। यह महामारी पूरी दुनिया को
बदलकर रख देगी।” उन्होंने कहा कि भारत ने पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन से संबंधित जो लक्ष्य अपने
लिए तय किये हैं उन्हें हासिल करने के लिए वह प्रतिबद्ध है।


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