संयोग गुप्ता
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी का गहरा आघात हुआ है। दुनिया के तमाम देशों की सरकारें इसके
नियंत्रण और समाधान की दिशा में दिन रात काम कर रही हैं। भारत पिछले वर्ष की आर्थिक मंदी से उबरने का
प्रयास कर ही रहा था, तभी कोविड-19 के प्रहार ने उसके औद्योगिक और व्यावसायिक गति को रोक दिया।
अमेरिका, यूरोप और एशिया को मिलाकर दुनिया के करीब 125 देश इस बीमारी की गिरफ्त में आ चुके हैं। इस
विपदा से अब तक दुनिया भर के लाखों लोग प्रभावित और पीड़ित हो चुके हैं। बीमारी के नियंत्रण के लिए भारत
सहित अनेक देशों में लाॅकडाउन की स्थिति है। इससे उत्पादन, वितरण विपणन, आयात निर्यात सभी घटकों पर
अद्वितीय प्रभाव पड़ा है। इस संकट ने विकसित और विकासशील सभी देशों की अर्थव्यवस्था को पटरी से नीचे
उतार दिया है।
चीन से आई इस बीमारी की शुरुआत दिसंबर 2019 में हुई। फरवरी माह आते-आते वहां इस बीमारी पर नियंत्रण
होने लगा। मार्च से तो वहां औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियां भी शुरू हो गया है। इस तरह चीन में
जनजीवन वापस अपने रूटीन की ओर लौटने लगा है। इसके विपरीत इटली, स्पेन, अमेरिका, ब्राजील, ईरान सहित
कुछ देशों में यह बीमारी नियंत्रण से बाहर होती दिखाई दे रही है। वहां हाहाकार मचा है। भारत में कमोबेश स्थिति
लोकडाउन के कारण नियंत्रण में है। केंद्र और राज्य सरकारें पूरे जोर-शोर से नियंत्रण के प्रयासों में लगी हुई हैं।
देश में लाकडाउन के चलते औद्योगिक और व्यावसायिक क्षेत्र के करोड़ों कामगार और दिहाड़ी मजदूर नगरों से
वापस अपने गांव लौट चुके हैं। भारत में पहले से ही बेरोजगारी एक समस्या रही है, परंतु इस महामारी से उपजे
संकट ने गरीब, निर्धन, असहाय और सर्वहारा वर्ग के सामने दो वक्त की रोटी की समस्या पैदा कर दी है।
भारत के दवा उद्योग का ज्यादातर कच्चा माल चीन से ही आता है। मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स के अधिकांश पुर्जे
भी चीन से आयात होते हैं। सौर ऊर्जा से जुड़े पैनल तथा उपकरण 80 फीसद के लगभग चीन से आयात होते हैं।
इसके अलावा टायर, कीटनाशकों के अव्यय, ऑटो कलपुर्जे तथा टेलीकॉम उपकरणों के आयात हेतु भी हम चीन पर
काफी हद तक निर्भर हैं। इसके विपरीत भारत चीन को रत्न आभूषण, पेट्रोकेमिकल उत्पाद, समुद्री खाद्य पदार्थ
तथा अन्य कई वस्तुओं का निर्यात करता है। इस बीमारी के कारण आयात निर्यात बाधित हुआ है। भारत में इस
संकट का प्रभाव दो से तीन तिमाही तक रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। यहां पहले से अर्थव्यवस्था मंदी
का दुष्प्रभाव झेल रही थी इस बीमारी से तो मानो उसके पैर ही लड़खड़ा गए हैं। जानकारों का मानना है कि
लाकडाउन समाप्त होने तथा उद्योग व्यवसाय चालू होने के बाद भी उत्पादन, आपूर्ति, विपणन और मांग के बीच
संतुलन कायम करने में एक तिमाही का समय लग सकता है। इस बीच नागरिकों में असुरक्षा की भावना जो मन
में बैठ गई है, पहले उसे बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती है। सरकार को इस दिशा में कई कदम उठाना होंगे,
जिससे उपभोक्ताओं के मन में भरोसा और निश्चिंतता की वापसी हो सके।
केंद्र सरकार को इसके लिए जीएसटी तथा अन्य कई करों में कमी और रियायत के साथ-साथ राहत पैकेज की
घोषणा करना होगी। बैंकिंग क्षेत्र में फंसे हुए कर्ज़ों की समस्या आने वाले समय में और बढ़ेगी, इसका समाधान
करना होगा। छोटे और मझोले उद्योग और व्यवसायों पर संकट का प्रभाव अधिक होने के कारण उन्हें संरक्षण देने
के उपाय करना पहली प्राथमिकता होना चाहिए। छोटे और फुटकर दुकानदारों की संख्या भारत में करोड़ों में है।
ऑनलाइन कंपनियों की प्रतिस्पर्धा में इन दुकानदारों की हालत पिछले 2 वर्षों से ही खस्ता है, वहीं वर्तमान संकट
ने उन्हें और पीछे धकेल दिया है। ऐसी स्थिति में उन्हें ऊपर उठाना सरकार का कर्तव्य होना चाहिए।
असंगठित क्षेत्र के दिहाडी कामगार, मजदूर, कृषि मजदूर, मनरेगा से जुड़े मजदूर तथा अन्य छोटी-छोटी
गतिविधियों से जुड़े गरीब लोगों पर स्वास्थ्य सुरक्षा तथा खाद्यान्न उपलब्धता के उपाय भी लाजमी हैं। किसानों की
समस्याओं पर भी हमें फोकस करना होगा। इससे हमारी अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर आ सकेगी। अन्य योजनाओं
के व्ययों को घटाकर और बचत प्रोत्साहित करके हमें अत्यावश्यक वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और विपणन पर
ध्यान देना होगा। उत्पादन इकाइयों और विभिन्न व्यवसायों के बीच सुरक्षा और समन्वय स्थापित करना होगा। इस
विपदा ने हमें एक ओर जहां मानवता को सर्वोपरि मानने की शिक्षा दी है, वहीं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी किया
है। अब हमें जीवन रक्षक दवाओं के उत्पादन और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
ऐसे में नए अस्पतालों का निर्माण तथा वर्तमान अस्पतालों में जरूरी सुविधाओं की व्यवस्था करना आज की सबसे
बड़ी जरुरत है। वहीं औद्योगिक और व्यावसायिक इकाइयों को राहत देने के उपायों से हमारी अर्थव्यवस्था पुनः
सुदृढ़ हो सकेगी।