पिछले सौ साल में हथियारों की दुनिया का तेजी से विकास हुआ और पूरी दुनिया में कारोबार बढ़ा। इससे युद्ध के
तौर-तरीके बदल गए हैं। इनमें एक नया तरीका जैविक हथियारों का भी है। कोरोना वायरस के ताजा प्रकरण को
लेकर इन हथियारों की इस समय सबसे ज्यादा चर्चा है। कोविड-19 नामक संहारक बीमारी पैदा करने वाले कोरोना
वायरस बनाने और फैलाने को लेकर चीन और अमेरिका एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। इसलिए यह सवाल पूरी
दुनिया के मन है कि क्या यह वायरस वास्तव में वुहान (चीन) स्थित जैविक प्रयोगशाला में बनाया गया या फिर
जैसा कि चीन का आरोप है कि इसे अमेरिका ने उनके मुल्क में प्लांट किया है।
कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट में कोरोना को चीनी वायरस कहते हुए सीधे तौर पर
इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा दिया। उनके विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी इसे 'वुहान वायरसÓ कहा।
इसे चीनी वायरस कहने से ट्रंप प्रशासन का आशय यह था कि चीन ने इस वायरस को अमेरिका से बदला लेने के
लिए अपनी प्रयोगशाला में पैदा किया, लेकिन वह इस पर अपना नियंत्रण नहीं रख सका। ऐसे में बेकाबू चीनी
वायरस दुनिया में फैल गया। चीनी सरकार वायरस के इस नामकरण से काफी नाराज हुई। इसके बाद चीन के
सोशल मीडिया में ऐसी खबरें आने लगीं कि इस वायरस की पैदावार असल में अमेरिका का हाथ है। इन आरोपों के
मुताबिक कोरोना से पैदा हुई महामारी अमेरिकी मिलिट्री जर्म वॉरफेयर प्रोग्राम के जरिए फैली है। हालांकि अमेरिका
और चीन के बीच कोरोना से संदर्भ में हो रही बयानबाजी को इन मुल्कों के वर्चस्व की जंग के तौर पर भी देखा जा
रहा है। मिसाल के तौर पर, जब अमेरिका दूसरे देशों के लोगों की अपने यहां आवाजाही बंद कर रहा है, तो चीन
उन मुल्कों को चिकित्सकीय और अन्य मदद मुहैया करा रहा है। एक तथ्य यह भी है कि चीन ने अपने यहां
कोरोना के प्रसार पर काबू पा लिया है। इन चीजों से चीन की छवि सुधर रही है, जबकि कोरोना के सामने लस्त-
पस्त ट्रंप प्रशासन को अपनों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है।
इन दोनों देशों में खुद को महाशक्ति के रूप में कायम रखने की जो जंग है, वह अपनी जगह है, लेकिन हमारे
लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या दुनिया वास्तव में जैविक हथियारों के अपारंपरिक युद्ध की ओर बढऩे
लगी है। अमेरिका और चीन के आरोपों का सच क्या है, यह तो वही दोनों जानते हैं। लेकिन यह तथ्य अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है कि कोरोना वायरस का केंद्र असल में चीन का वुहान शहर ही है। 'द वॉशिंगटन
पोस्ट' और 'द डेली मेल' सहित ऐसी कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट हैं, जिनमें कोरोना वायरस को चीन के जैविक
हथियार बनाने की कोशिश के तौर पर जोड़ा गया और इसे चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम का हिस्सा बताया गया।
द वॉशिंगटन पोस्ट ने वुहान स्थित बायोलॉजिकल लैब का उल्लेख कर यह साबित करने की कोशिश की है कि चीन
अगली कोई जंग जैविक हथियारों के बल ही लडऩा चाहता है। एक अन्य समाचार संस्थान-फॉक्स न्यूज में 1980
के दशक में लिखी गई एक किताब के हवाले से कहा है कि चीन कथित तौर पर अपनी प्रयोगशालाओं में जैव
हथियार बना रहा है। वायरस की इन साजिश-कथाओं पर चीनी सरकार ने पलटवार करते हुए इन्हें अमेरिकी
दुष्प्रचार बताया है। चीन के विदेश मंत्रालय के मुताबिक कोविड-19 असल में अमेरिकी बीमारी है जो पिछले साल
अक्टूबर में वुहान आए अमेरिकी सैनिकों से फैली है, हालांकि चीन ने इसके सबूत नहीं दिए हैं।
चाहे जो हो, लेकिन चीन इससे इनकार नहीं कर सकता है कि कोरोना का केंद्र असल में वुहान ही है। इसकी पुष्टि
चीन को ही करनी है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान स्थित फ्रेश सी-फूड मार्केट से हुई और इसकी उत्पत्ति में
चमगादड़ों और सांप के मांस से तैयार किया गया भोजन है या फिर इसमें कुछ योगदान वुहान स्थित उस
प्रयोगशाला का है, जिसमें खतरनाक वायरसों पर प्रयोग किए जाते हैं। इसमें भी वुहान स्थित जैव प्रयोगशाला पी-4
को लेकर दुनिया भर के शक की एक और वजह बताई जा रही है। दावा है कि वुहान में जब न्यूमोनिया का जब
पहला मामला नजर आया था, तो उससे कुछ दिन पहले ही चीन के उपराष्ट्रपति वांग किशान चुपचाप वहां पहुंचे
थे। दावा किया गया कि वांग वहां जैविक हथियारों की योजना की प्रगति देखने गए थे। इस संबंध में जैविक
हथियारों पर अध्ययन करने वाले इजरायल के एक पूर्व सैन्य खुफिया अधिकारी का दावा है कि कोरोना वायरस को
चीन की ही पी4 प्रयोगशाला में तैयार किया गया। कुछ विशेषज्ञ यह भी आशंका भी जता रहे हैं कि हो सकता है
कि चीन ने जानबूझ कर कोरोना वायरस को छोड़ा हो। लेकिन उसे इसके फैलाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा
नहीं था, इसलिए चीन पर अब पूरे मामले पर लीपापोती करने में जुटा है।
जहां तक कोरोना वायरस जैसे जैविक हथियारों को किसी जंग का अहम हिस्सा बनाने की बात है, तो ऐसे युद्धों
की रूपरेखा कई बार पेश की जा चुकी है। मई-2014 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जिनेवा में आयोजित चार दिवसीय
सम्मेलन में बताया गया था कि जल्द ही ऐसे स्वचालित रोबोटों के जरिए युद्ध लड़े जाएंगे, जो एक बार चालू कर
देने पर बिना किसी इंसानी दखल के अपना निशाना खुद चुन सकेंगे और उसे तबाह कर सकेंगे। ऐसी ही आशंका
जैव हथियारों के संबंध में जताई गई थी।