क्रूरता से हारती मानवता?

asiakhabar.com | March 18, 2020 | 4:12 pm IST
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विकास गुप्ता

भारतीय इतिहास वैसे तो शौर्य और करुणा के अनेकानेक इतहासों से पटा पड़ा है। ऐसी सैकड़ों गाथाएं हैं जो हमें
यह बताती हैं की किस तरह सत्य की राह पर चलते हुए हमारे देश के अनेक राजाओं या उनके सेनापतियों ने
दुश्मनों की सेनाओं का मुक़ाबला करते हुए उनके दांत खट्टे कर दिए। आज भी यदि हम अपने देश के वीर चक्र व
परमवीर चक्र पाने वाले वीर भारतीय सैनिकों के कारनामों को पढ़ें तो पता चलेगा कि हमारे जवानों द्वारा भी
अपनी जान की बाज़ी लगाकर कैसे भारतीय शौर्य परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर
भारतीय सेना के कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद मसऊदी के बेमिसाल शौर्य व साहस को ही देखिये।
वीर अब्दुल हामिद भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर में एक हवलदार थे जो 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 10
सितम्बर 1965 को खेमकरण सेक्टर के आसल उत्ताड़ इलाक़े में लड़े गए भीषण युद्ध में अपनी अद्भुत वीरता का
प्रदर्शन करते हुए देश पर क़ुर्बान हो गए। उनकी इसी वीरता, साहस व क़ुर्बानी के लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का
सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र हासिल हुआ। शहीद होने से पहले परमवीर अब्दुल हमीद ने केवल अपनी एक
"गन माउन्टेड जीप" से सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया था। पाकिस्तान के ये पैटन टैंक उस समय
अजय समझे जाते थे। यानी इस देश की मिटटी ने ऐसे जियाले भी पैदा किये हैं जो अपने अकेले दम पर दुश्मनों
के एक दो नहीं बल्कि सात पैटन टैंक ध्वस्त करने जैसा साहस रखते हैं।
परन्तु आज के दौर में ठीक इसके विपरीत क्रूरता, बेरहमी, नृशंसता, दुष्टता, बर्बरता तथा निर्दयता की वह घटनाएं
देखने व सुनने को मिल रही हैं जो वास्तव में किसी भी मानवतावादी व्यक्ति को झकझोर कर रख देने वाली हैं।
वीर-जियालों की इसी धरती पर अब कभी धर्म व संस्कृति के नाम पर तो कभी महिलाओं का शोषण करने वालों के
द्वारा मानवता का गला घोंटने के वह कारनामे अंजाम दिए जा रहे हैं जिन्हें लिखने के लिए शब्द भी कम पड़
जाएं। जब से इस देश में भीड़ द्वारा किसी एक व्यक्ति पर हमला करने, जिसे 'मॉब लॉन्चिंग' भी कहा जाता है
का सिलसिला शुरू हुआ है तब से अब तक आए दिन ऐसी अनेक घटनाएं देखी जा रही हैं जिसमें कई युवक मिल
कर किसी एक व्यक्ति की कहीं लाठी डंडों से पिटाई कर रहे हैं तो कहीं तलवारों व लोहे की रॉड से जानलेवा हमले
कर रहे हैं। कई लोग मिलकर जब किसी अकेले व्यक्ति को पीटते हैं उसी समय उन्हीं लोगों के बीच कुछ युवक
ऐसे भी होते हैं जो उस वीभत्स घटनाक्रम की वी डी ओ बना रहे होते हैं। जब इस तरह के दर्जनों लोग किसी एक
मजबूर व असहाय को मार रहे होते हैं उस समय मार खाने वाला व्यक्ति अपनी अथाह पीड़ा को सहन न कर पाते
हुए इन दुष्टों से दया की भीख मांग रहा होता है मगर इन सभी "सूरमाओं" में से किसी का भी दिल नहीं
पसीजता। इनमें से कोई व्यक्ति यह कहता नहीं सुनाई देता कि बस करो, अब मारना बंद भी कर दो। कोई उसपर
तरस नहीं खाता। और आख़िर कार इन्हीं 'भारत माता के राष्ट्रवादी सपूतों' के हाथों भारत माता का ही दूसरा लाल
दम तोड़ देता है। और कई जगह तो यह बेशर्म मरने के बाद भी उसकी लाश पर डंडे लाठियां बरसा रहे होते हैं।
कुछ हृदय विदारक वीडिओज़ तो सोशल मीडिया पर ऐसी भी वायरल हो चुकी हैं जिनकी निर्ममता का ज़िक्र करना
इसलिए ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि शौर्य और करुणा का इतिहास रखने वाले हमारे देश में स्वयं को
इंसान बताने वाले कुछ लोगों में पाशविकता किस हद तक प्रवेश कर चुकी है और ज़ुल्म व बर्बरता की मानसिकता
किस चरम पर पहुँच चुकी है। एक वीडिओ में किसी स्थान पर एक व्यक्ति को उसके चारों हाथ पैर इकट्ठे कर उसे
छत पर रस्सी से नंगा लटकाकर कई गुंडे उसके नंगे कूल्हों पर पहले गिरीस जैसे किसी चिकनी वस्तु का लेप करते

हैं फिर उसी पर बार बार चाबुक और कोड़ों से कई लोग मिलकर मार रहे हैं। ज़रा सोचिये एक असहाय इंसान
जिसके चारों हाथ-पैर बंधे हों और वह रस्सी से लटका हो वह अपना ज़ख़्म भी नहीं सहला सकता। कितनी चीख
चिल्ला और गिड़गिड़ा रहा था वह शख़्स कि पत्थर भी पिघल जाए। परन्तु उन दरिंदों को उस पर ज़रा तरस नहीं
आ रहा था। समझ नहीं आता कि अकेले इंसान के साथ अनेक लोगों द्वारा इस तरह जानवरों से भी बदतर तरीक़े
से पेश आना, यह कैसी बहादुरी है, कैसा धर्म है। ईश्वर ऐसे निर्दयी लोगों को कभी माफ़ नहीं कर सकता।
मानवता को शर्मसार करने वाले ऐसे भी अनेक वीडिओज़ इसी सोशल मीडिया पर प्रसारित किये जाते रहे हैं जिनमें
गुण्डे किसी एक युवती के साथ मारपीट व बलात्कार कर रहे हैं। वह युवती रहम की भीख मांग रही है परन्तु इन
दानवों का दिल नहीं पसीजता। उसे दानवों के चंगुल से छुड़ाने के बजाए उनके साथी स्वयं युवती के साथ हो रहे
बलात्कार व उसके चीख़ने चिल्लाने व तड़पने का वीडीओ बनाते हैं। कैसे संस्कार हैं इनके, कैसे वातावरण में पले हैं
यह लोग, इनका ज़मीर कितना मर चुका है, कुछ समझ नहीं आता। यह भी समझ नहीं आता की क्या इन सभी
दानवों के घर अपनी कोई बहन, बेटी भाभी, भतीजी या भांजी भी नहीं जिससे यह किसी मजबूर युवती की पीड़ा
का अंदाज़ा लगा सकें ? इसी तरह एक युवक के दोनों हाथ व दोनों पैर एक एक गुंडे ने पकड़ कर उसे ज़मीन से
ऊपर उठाकर उल्टा लटकाया हुआ है। और कई लोग उसकी पीठ, कमर व कूल्हे पर अनगिनत डंडे-लाठियां बरसा
रहे हैं और वह मार खाने वाला युवक तड़प रहा है, ज़ोर ज़ोर से चीख़ चिल्ला रहा है मगर निर्दयी लोग अपनी पूरी
ताक़त से दोनों हाथों से डंडों-लाठियों से उसे पीटे जा रहे हैं। 1984, के दिल्ली सिख नरसंहार में.2002 के
गुजरात नरसंहार में तथा अभी कुछ दिनों पहले की दिल्ली हिंसा में भी ऐसी या इससे भी भयानक अनेक घटनाएं
घटीं जो हमें हिन्दू या मुसलमान तो क्या हमारे इंसान होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करती हैं। किस तरह
गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाते हैं और पेट से निकले बच्चे को तलवारों व त्रिशूलों की नोक पर बुलंद किया
जाता है, ज़िंदा लोगों को कैसे जलती आग में फेंक कर इंसान को ईंधन बनाया जाता है, यहाँ तक कि 84 साल के
बूढ़ों को भी आग के हवाले कैसे किया जाता है, यह सब बातें इन दानव रुपी मानवों में अच्छी तरह देखी जा
सकती है। इन हैवानों को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि कहीं मानवता क्रूरता से हारने तो नहीं जा रही?


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