नई दिल्ली। स्वास्थ्य देखरेख की वास्तविकता का पता लगाने एवं उपलब्ध मानव संसाधन का
उपयोग करने में देश के वर्तमान स्वास्थ्य ढांचे को विफल बताते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने चिकित्सा
पेशे को उत्तम बनाने के लिए उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सहयोग करने एवं सार्वजनिक निजी भागीदारी
(पीपीपी) को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है ताकि गुणवत्ता बेहतर की जा सके। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी
स्थायी समिति ने सहबद्ध और स्वास्थ्य देखरेख वृत्ति या व्यवसाय विधेयक पर विचार विमर्श के दौरान यह
टिप्पणी की। विधेयक फिजियोथेरापी, आप्टोमैट्री, न्यूट्रिशनलिस्ट, चिकित्सा प्रयोगशाला, विकिरण चिकित्सा
प्रौद्योगिकी सहित चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े 53 से अधिक ऐसे व्यवसायों को मान्यता प्रदान करने का उपबंध करता है
जिनके पास समग्र विनियामक तंत्र नहीं है। इसमें ऐसे व्यवसायियों के संबंध में एक केंद्रीय रजिस्टर बनाने का
उपबंध भी किया गया है। संसद में हाल ही में पेश समिति की रिपोर्ट में स्वास्थ्य देखरेख क्षेत्र के विकास के लिये
एक व्यापक विनियामक प्रणाली की वकालत करते हुए कहा गया है कि स्वास्थ्य संबंधी देखरेख की वास्तविकता का
पता लगाने एवं उपलब्ध मानव संसाधन का उपयोग करने में देश का वर्तमान स्वास्थ्य ढांचा विफल रहा है। समिति
का मानना है कि स्वास्थ्य देखरेख क्षेत्र में व्यापक विनियामक प्रणाली से बेहतर इकोसिस्टम प्रदान करने में मदद
मिलेगी। चिकित्सा क्षेत्र में प्रत्येक पाठ्यक्रम के अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने पर जोर देते हुए समिति ने
कहा कि पाठ्यक्रम निर्धारण, व्यवहारिक प्रशिक्षण और मूल्यांकन का मानकीकरण किया जाना चाहिए। इसमें उसे
भी शामिल किया जाना चाहिए जो पढ़ाई के दौरान सीखा गया है। चिकित्सा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय मानकों वाले
पाठ्यक्रम की वकालत करते हुए समिति ने कहा कि उत्कृष्ट व्यवहार वाले अस्पतालों के साथ साथ उत्कृष्टता केंद्र
एवं विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों की पहचान की जानी चाहिए जिन्हें प्रशिक्षण स्थल बनाया जा सके।
पाठ्यक्रम संचालित करने या प्रशिक्षण स्थल बनने के इच्छुक संस्थानों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किये जाने की
सिफारिश भी समिति ने की है। समिति ने जोर दिया कि चिकित्सा पेशे को उत्तम बनाने के लिये उत्कृष्ट
अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सहयोग एवं सार्वजनिक निजी भागीदारी स्थापित करके गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है
तथा केंद्र और राज्य स्तरों पर विकसित मानकों का एक दूसरे के साथ पूर्ण रूप से समन्वय होना चाहिए। रिपोर्ट में
कहा गया है कि अनुसंधान गतिविधियों पर केंद्र, राज्य या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आदि द्वारा नियमित अंतराल पर
प्रदान की जाने वाली धन राशि पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है जिसका उपयोग केंद्रों पर अनुसंधान के विकास
के लिये किया जा सकता है।