बेमौसम की बारिश से किसानों की चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं। बारिश और ओले ने खड़ी फसलों को भारी क्षति
पहुंचाई। तेज ओलावृष्टि ने गेहूं, चना, सरसों जैसे सीजन की फसलों को चौपट कर दिया है। इसी सीजन में उगने
वाली सब्जियों को भी बारिश ने बर्बाद कर दिया है। बारिश की मार किसी एक प्रदेश नहीं बल्कि देशभर में पड़ी है।
जनवरी से लेकर मार्च तक कई बार देश के अलग-अलग हिस्सों में बेमौसम की बारिश और ओले का यह सिलसिला
चल रहा है।
बेमौसम की बारिश ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। नौकरीपेशा और व्यवसायी लोगों को ज्यादा फर्क नहीं
पड़ता। पर, किसान पूरे छह माह अपने खेतों की तरफ ताकता रहता है। फसलों की निगरानी करता है। अच्छी
फसल देखकर खुश होता है। बच्चों की पढ़ाई, शादी-ब्याह, घर-मकान बनाने आदि के जरूरी काम अच्छी पैदावार
होने पर ही किसान कर पाता है। पर, अचानक आई कुदरती मार उनके अरमानों पर पानी फेर कर चली जाती है।
किसान सिर्फ ताकता रह जाता है। अन्नदाताओं के समझ नहीं आ रहा, जो नुकसान उन्हें हुआ है उसकी भरपाई
कैसे कर पाएंगे। किसान फसल उगाने के लिए बैंकों से कर्ज इसी उद्देश्य से लेता है कि फसल कट जाने के बाद
उसकी ब्रिकी करके बैंकों से लिया कर्ज चुकता कर देंगे। पर, शायद इसबार ऐसा न कर पाएं। क्योंकि उनकी फसल
तो पानी में तबाह हो चुकी है। किसानों का कर्ज में डूबने का एक बड़ा कारण यह भी है। कर्ज के बोझ में दब जाने
के बाद किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर होते हैं।
लगातर बदलते मौसम ने किसानों को जितना चिंतित इस समय किया हुआ है, उतना कभी नहीं हुए। सबसे ज्यादा
नुकसान गेहूं की फसल को हुआ है। तेज ओलों के कारण गेहूं की फसल जमींदोज हो गईं। बारिश से हुए नुकसान
का फिलहाल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। पर, मोटे तौर पर अनुमान है ये क्षति करोड़ों में होगी। निश्चित है
किसानों के लिए अपनी फसलों से लागत निकाल पाना भी अब मुश्किल है। यही कारण है कि नुकसान की भरपाई
के लिए किसान राज्यों व केंद्र सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। कई मायनों में उनकी मांग जायज भी है।
उनको मुआवजा मिलना भी चाहिए। क्योंकि अन्नदाताओं का खेती के सिवाए कमाई का दूसरा कोई जरिया भी तो
नहीं है। इसलिए ऐसी प्राकृतिक आपदा आने पर हुकूमतों को किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए, पीछे नहीं हटना
चाहिए। जरूरत और अनुमान के मुताबिक उनके क्षति की भरपाई के लिए मुआवजा देना चाहिए।
बहरहाल, मौसम वैज्ञानिक भी बदलते मौसम को देखकर अचंभित हैं। उनकी माने तो कई दशकों बाद ऐसा देखने
को मिला है जब बीते दिसंबर, जनवरी और मार्च माह में इस कदर बारिश और ओलावृष्टि हुई। वैज्ञानिक खुद इस
बात को मान रहे हैं कि इस बारिश से सबसे ज्यादा नुकसान गेहूं की फसल को हुआ है क्योंकि गेहूं का पौधा
मुलायम और कमजोर होता है, वह तेज ओलावृष्टि नहीं झेल पाता। ओलों की मार से गेहूं के पौधे जमीन पर बिछ
जाते हैं। गन्ना, दलहन और अरहर जैसी फसलें कुछ हद तक ओलों का सामना कर लेती हैं। पर, गेहूं, चना,
सरसों, सब्जियां आदि ओलों की मार नहीं झेल पाती। यूपी के तराई क्षेत्र मेें गेहूं की फसल ज्यादा उगाई जाती है
लेकिन तेज ओलों की बौछार ने फसल को पूरी तरह चौपट कर दिया। कमोबेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड का भी
यही हाल है। खड़ी फसलों वाले खेतों में पानी भर गया है। पानी भरने से फसलें एकाध दिनों में ही सड़ जाती हैं।
उत्तरी क्षेत्रों के मुकाबले पश्चिमी क्षेत्रों के हालात अभी भी बिगड़े हुए हैं। दो राज्यों उत्तर प्रदेश और हिरयाणा में
बारिश के अलावा जमकर ओलावृष्टि हुई है। फसलों को नुकसान बारिश से ज्यादा ओलावृष्टि से हुआ है। मैदानी
क्षेत्रों के अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसबार जो बदलाव हुए वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। पहाड़ों पर अब भी
बर्फबारी हो रही है। बर्फबारी के अलावा तेज बारिश और ओले भी पड़ रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों की बर्फबारी से निकलने
वाली शीतलहर मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को अब भी सर्दी का एहसास करा रही है।
अमूमन होली के आसपास मौसम सुहावना हो जाता है। न सर्दी होती है, न गर्मी। इस मौसम में बारिश और ओले
का सवाल ही नहीं। लेकिन, इसबार सबकुछ हो रहा है। उत्तर भारत में इस समय खेतों में गेहूं, सरसों, चना के
अलावा मौसमी सब्जियों की अधकची फसलें खड़ी हैं। गेहूं की फसल तकरीबन पकने को है। होली के तुरंत बाद
फसल की कटाई शुरू हो जाती है लेकिन, ओले और बारिश की बौछार ने सब चौपट कर दिया। कुदरती आपदाओं
के आगे किसी का वश नहीं चलता। तकाजा इस बात का है कि सरकार को आगे आकर अन्नदाताओं के नुकसान
की भरपाई करनी चाहिए।