अर्पित गुप्ता
निजी क्षेत्र के यस बैंक को डूबने से बचाने के लिए सरकारी क्षेत्र का भारतीय स्टेट बैंक जिस तरह आगे आया उससे
यह उम्मीद बंधी है कि उसे बचा लिया जाएगा और लोगों का पैसा सुरक्षित रहेगा। इस उम्मीद के बावजूद रिजर्व
बैंक और साथ ही सरकार उन सवालों से बच नहीं सकती जिनसे वे दो-चार हैं। पिछले कुछ समय से लगातार ऐसी
खबरें आ रही थीं कि यस बैंक की हालत ठीक नहीं। समझना कठिन है कि इतने दिन तक किस बात का इंतजार
किया जाता रहा? आखिर उसी समय कठोर कदम क्यों नहीं उठाए गए जिस समय इस बैंक के संस्थापक राणा
कपूर के खिलाफ कार्रवाई की गई थी? यदि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की सतर्कता के बावजूद ऐसी स्थिति बनी
कि यस बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गया तो इसका मतलब है कि बैंकिंग तंत्र की निगरानी सही तरह नहीं की
जा रही है। इसका संकेत उस समय भी मिला था जब पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक में एक बड़ा घोटाला सामने आया
था। यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि इस घोटाले के तार यस बैंक से जुड़ रहे हैं। रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय
की ओर से चाहे जो दावे किए जाएं, यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि बैंकों का नियमन उचित तरीके से नहीं
किया जा रहा है। आखिर ऐसा कैसे संभव है कि कोई बैंक अपनी बैलेंस शीट न तैयार करे और फिर भी वह कठोर
कार्रवाई से बचा रहे?
हाल ही के सालों में तंत्र की नाकामी से जूझते बैंकिंग सैक्टर की हालत काफी खस्ता हुई है। अरबों रुपए का ऋण
लेकर माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी जैसे लोग देश से भाग गए। रही-सही कसर बैंकों के कुप्रबंधन ने पूरी कर
दी। यस बैंक की शुरूआत 15 साल पहले हुई थी। देखते ही देखते यह बैंक निवेशकों की पहली पसंद बन गया था
और उसके शेयर आसमान को छू रहे थे लेकिन रिजर्व बैंक की ऒर से फंसे कर्ज का खुलासा हर तिमाही में करने के
नए नियम से बैंक की मुश्किलें धीरे-धीरे बढ़ने लगीं और पिछले दो साल में इसके प्रबंधन की पोल खुल गई। रिजर्व
बैंक की पैनी नजर बैंक पर लगी हुई थी और अंततः उसने एक्शन ले ही लिया।यस बैंक पर कुल 24 हजार करोड़
डॉलर की देनदारी है। बैंक के पास करीब 40 अरब डालर (2.85 लाख करोड़ रुपए) की बैलेंस शीट है। रिजर्व बैंक
को पता था कि बैंक अपने डूबे हुए कर्ज और बैलेंस शीट में गड़बड़ी कर रहा है। इसीलिए आरबीआई ने बैंक के
चेयरमैन राणा कपूर को पद से जबरन हटा दिया था। इसके बाद रवनीत गिल बैंक के चेयरमैन नियुक्त किए गए
थे। इसके अलावा यस बैंक को क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट के मोर्चे पर भी झटका लगा। दरअसल इसके
जरिये बैंक ने जो फंड जुटाने का लक्ष्य रखा था, वह भी पूरा नहीं हुआ। इन हालातों में दुनियाभर की रेटिंग
एजैंसियां बैंक को संदिग्ध नजर से देख रही थीं और निगेटिव मार्किंग कर रही थी।
यस बैंक की मैनेजमेंट में भी उठापटक होती रही और संकट बढ़ता गया। बैंक ने कम्पनी संचालन नियमों का
अनुपालन करने की बजाय उल्लंघन किया। बैंक की पोल खुल जाने पर निवेशक दूर होते गए। रिजर्व बैंक ने बैंक के
प्रबंधन को एक विश्वसनीय पुनरोद्धार योजना तैयार करने के लिए पूरा अवसर दिया लेकिन बैंक ऐसा करने में
नाकाम रहा। दूसरे बैंकों ने यस बैंक की मदद करने से इंकार कर दिया। रिजर्व बैंक इस निजी बैंक को डूबने से
बचाना चाहता है। सरकार ने एसबीआई और अन्य वित्तीय संस्थानों को यस बैंक को उबारने की अनुमति दी है। यदि
ऐसा होता है तो कई वर्षों में यह पहला मौका होगा जब निजी क्षेत्र के किसी बैंक को जनता के धन से संकट से
उबारा जाए। इससे पहले 2004 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स में विलय किया गया था।
2006 में आईडीबीआई बैंक ने यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का अधिग्रहण किया था।
करीब छह माह पहले बड़ा घोटाला सामने आने के बाद सहकारी बैंक पीएमसी के मामले में भी इसी तरह का कदम
उठाया था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार या रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र के बैंकों की आर्थिक दशा
सुधारने की क्यों है? ग्राहकों और निवेशकों के पैसे नहीं डूबें इस दिशा में सरकार और रिजर्व बैंक को कड़े कदम
उठाने ही पड़ेंगे। अगर रिजर्व बैंक कदम नहीं उठाएगा तो निजी क्षेत्र तो लोगों की लूट की हदें पार कर देगा। बैंक
घोटालों का खामियाजा आम लोग क्यों झेलें। बैंक के ग्राहक अपनी पूंजी को तरस रहे हैं। जिनका पूरा व्यापार इसी
बैंक की मार्फत होता है, वे इस स्थिति में क्या करेंगे, उनका तो धंधा ही चौपट हो जाएगा। कई कारोबारी तो अपने
कर्मचारियों को वेतन का भुगतान भी इसी बैंक से करते हैं तो होली के मौके पर वे क्या करेंगे? देश के बैंकों की
इतनी कहानियां सामने आ चुकी हैं कि अब देश का हर आम और खास इनसे अच्छी तरह वाकिफ हो चुका है।
बैंकिंग सैक्टर के घोटाले देश की अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ ही है, इसे अक्षम्य अपराध की श्रेणी में गिना जाना
चाहिए। बैंकिंग सैक्टर की डूबती साख ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं। सरकार की
ओर से बैंक को बचाने और एसबीआई द्वारा यस बैंक की हिस्सेदारी खरीदने की खबरों से ही बैंक ग्राहकों को बड़ी
राहत मिली है। देखना होगा कुछ दिनों में क्या समाधान निकलता है। फिलहाल सबसे बड़ी प्राथमिकता तो यह है
कि डूबते बैंक को बचाया जाए ताकि ग्राहकों के हितों की रक्षा हो सके।