लोकसभा का ऐतिहासिक फैसला

asiakhabar.com | March 7, 2020 | 5:39 pm IST
View Details

वाकई लोकसभा ने यह ऐतिहासिक फैसला लिया है। लगातार हंगामे, अराजकता, अपसंस्कृति और बेलगाम
सियासत के मद्देनजर कांग्रेस के 7 सांसदों को एक साथ संसद सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया।
संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी का यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित किया गया। अब ये कांग्रेस सांसद 3 अप्रैल
को बजट सत्र की समाप्ति तक सदन में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। बेशक यह अभूतपूर्व फैसला है, क्योंकि 7 सांसदों
का निलंबन इस तरह नहीं हुआ है। बेशक सांसद एक-दो दिन के लिए निलंबित किए जाते रहे हैं। यह न केवल
संसद की गरिमा और मर्यादा का सवाल था, बल्कि लोकसभा अध्यक्ष के आसन का सम्मान भी बरकरार रखा जाना
था। हालांकि स्पीकर ओम बिड़ला खासकर कांग्रेस सांसदों के अमर्यादित और असंवैधानिक आचरण से इतने व्यथित
और विक्षुब्ध बताए गए कि बीते दो दिनों से सदन में ही नहीं आए और अपने चैंबर में ही मौजूद रहे। कांग्रेस के
साथ सपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, वामदल, द्रमुक आदि के विपक्षी सांसदों ने भी हंगामे में शिरकत की थी,
लेकिन वे इतना बेलगाम नहीं थे। शायद यह कार्रवाई प्रतीकात्मक की गई हो! बहरहाल यह फैसला स्पीकर की
सहमति से ही लिया गया है। हालांकि सरकार कांग्रेस सांसदों को अधिक कड़ा सबक सिखाने के मूड में है, लिहाजा
इस पक्ष पर भी विचार किया जा रहा है कि इन सांसदों की सदस्यता ही रद्द कर दी जाए। बेशक संविधान प्रत्येक
सांसद को कुछ विशेषाधिकार देता है। काम रोको प्रस्ताव भी ऐसा ही एक विशेषाधिकार है। कांग्रेस ने रणनीति के
तहत ही दोनों सदनों में नोटिस दिए थे कि सभी कार्यों को छोड़ कर दिल्ली हिंसा और दंगों पर चर्चा कराई जाए,
गृहमंत्री अमित शाह इस्तीफा दें और प्रधानमंत्री मोदी संसद में ही जवाब दें, लेकिन मोदी सरकार होली पर्व के
अवकाश के बाद चर्चा को तैयार थी। स्पीकर ने भी सदन को आश्वस्त किया था, लेकिन कांग्रेस सांसदों को हंगामा
ही मचाना था। बीती 2 मार्च को बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होने के बाद से ही कांग्रेस सांसद बैनर, पोस्टर
और नारेबाजी के साथ सदन में हुड़दंग मचाते रहे। यह दीगर है कि उस शोर-शराबे में भी सरकार ने जरूरी संसदीय
दस्तावेज पटल पर रखे। कुछ बिलों को ध्वनि मत से पारित कराया गया, लेकिन बुनियादी तौर पर संसद के दोनों
सदनों की कार्यवाही अवरुद्ध ही रही। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को यह टिप्पणी करनी
पड़ी-‘‘यह संसद है, कोई बाजार नहीं।’’ बहरहाल जिस दिन सांसदों को निलंबित करना पड़ा, उस दिन पीठासीन
अधिकारी के तौर पर रमा देवी आसन पर मौजूद थीं। उन्होंने दोपहर 2 बजे के बाद खनन विधियां संशोधन बिल
पारित कराने की प्रक्रिया शुरू की। उस दौरान हंगामा कर रहे कांग्रेस सांसदों ने अध्यक्ष की मेज से विधेयक संबंधी
कागजात उठा लिए और उन्हें फाड़ कर फेंक दिया। सांसदों ने कागज के कुछ पुर्जे अध्यक्ष की तरफ भी उछाल कर
फेंक दिए। इस अनुशासनहीनता को कौन बर्दाश्त कर सकता था? स्वतंत्र और गणतांत्रिक भारत में कमोबेश ऐसा
बदतमीज संसदीय आचरण पहली बार सामने आया था कि विपक्षी सांसद स्पीकर और आसन के अपमान पर ही
आमादा हों! दंगे और हिंसा कांग्रेस की कभी भी चिंता नहीं रही। पार्टी की विरासत के पीछे हजारों दंगे छिपे हुए हैं।
कांग्रेस दिल्ली दंगों के मुद्दे पर ही न तो संसद को बंधक बना सकती है और न ही सांसद हंगामा करते हुए
स्पीकर या पीठासीन अधिकारी का अपमान कर सकते हैं। तय तौर पर नहीं कहा जा सकता कि शेष बचे सांसद
इससे सबक सीखेंगे अथवा सदन में हुड़दंग ही मचाते रहेंगे। संविधान में अभिव्यक्ति और अपना विचार रखने या
विधायी कार्य का विरोध करने का अधिकार दिया गया है, लेकिन उच्छृंखल बदतमीजी का अधिकार किसी भी सांसद
को नहीं है। सदन में कौन से प्रस्ताव और बिल कब रखे जाएंगे, यह सरकार का ही विशेषाधिकार है। जब स्पीकर
घोषणा कर चुके थे कि होली के बाद 11-12 मार्च को दिल्ली की हिंसा पर चर्चा की जा सकती है, उसका उल्लंघन
भी बेमानी था। यदि कांग्रेस के दंगों और हिंसा के प्रति सरोकार इतने ही गंभीर हैं, तो राहुल गांधी को हिंसा

प्रभावित इलाकों का दौरा करते हुए आईबी के दिवंगत अधिकारी अंकित शर्मा के घर पर भी जाना चाहिए था।
उनका घर भी उसी इलाके में है। अंकित की पोस्टमॉर्टम रपट खुलासा करती है कि उनके शरीर पर चाकुओं से
करीब 400 वार किए गए। कितनी बर्बर और जघन्य होगी वह हत्या! राहुल और कांग्रेस के सरोकार सिर्फ मस्जिद
और एक कांग्रेसी नेता के स्कूल तक ही सीमित हैं क्या? बहरहाल ऐसा अनुशासित फैसला संसद की गरिमा को ही
बचाएगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *