अर्पित गुप्ता
जब हमारे राष्ट्र के एक बड़े बौद्धिक तथा साधारण जनसमुदाय द्वारा बार-बार यह कहा जाता है कि अमरीका एक
स्वार्थी राष्ट्र है और उसकी हमसे या किसी दूसरे राष्ट्र से मित्रता का आधार केवल उसका व्यापारिक व कूटनीतिक
लाभ है, तो कहने वाले ये भूल जाते हैं कि आधुनिक व्यवस्था में उन्नति करने के लिए प्रायः हरेक शक्ति संपन्न
राष्ट्र ऐसी ही नीतियों पर चलता है। यदि अमरीका ने इन नीतियों का अनुगमन नहीं किया होता तो क्या आज वह
शक्तिशाली राष्ट्र होता? जो विकासशील और अविकसित देश हैं, वे ईर्ष्यावश ऐसा कहते ही रहते हैं कि अमरीका ने
अपने स्वार्थ के कारण विश्व के अनेक देशों को व्यापक हानि पहुंचाई है, लेकिन ऐसे देशों से यह पूछा जाना चाहिए
कि अमरीका ने विश्व के जीवन-संचालन के संबंध में जो भी हस्तक्षेप किए हैं, वे अकेले अपनी सहमति से ही किए
हैं क्या? क्या इन हस्तक्षेपों के संदर्भ में जो समझौते हुए उनकी शर्तों में विकासशील और अविकसित देशों के
स्वहित, स्वार्थ नहीं थे?
हमारे देश के लोग जब अमरीका के बारे में ऐसी अव्यावहारिक बातें करते हैं तो वे यह भी भूल जाते हैं कि
अमरीका से जो शिकायतें हमें थीं, उनके लिए हमारी पूर्ववर्ती केंद्र सरकारें भी तो उत्तरदायी हैं। हमारी पहले की
सरकारों ने अमरीका के साथ विभिन्न क्षेत्रों में जो भी समझौते किए, क्या हमारी ओर से उनका शत-प्रतिशत
अनुपालन किया गया? यदि अमरीका पर भारत का अहित करने का दोषारोपण होता रहा है तो यह समझ लिया
जाना चाहिए कि इसके लिए अमरीका ही नहीं भारत भी समान रूप में उत्तरदायी रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड
ट्रंप की आगामी दो दिवसीय भारतीय यात्रा से पूर्व ऐसे ही विवाद हो रहे हैं। भारत के लोगों के साथ सबसे बड़ी
समस्या यह है कि वे अपनी बुद्धि व विवेक से बहुत कम सोचते-समझते हैं। उन्हें जिस भी विषय के संबंध में
जैसा अनुचित सार बताया जाता है, वे उसे पत्थर की लकीर समझ उसी पर चिंतन-मनन करने लगते हैं।
इसके विपरीत भारत के बुद्धिजीवी और बुद्धिजीवियों के कहे अनुसार चलने वाले साधारण लोग यह नहीं सोचते
कि अमरीका के संदर्भ में जो नकारात्मक वक्तव्य दिए जा रहे हैं, वे अमरीका की पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों के
राजनीतिक, कूटनीतिक चाल-चलन के अनुरूप तो कुछ हद तक उचित प्रतीत होते हैं, परंतु 2016 के बाद
अमरीका के राजनीतिक पटल पर कांग्रेस को हटा उभरे नए राजनीतिक दृष्टिकोण को देखते हुए ऐसे वक्तव्य
अमरीका के लिए अनुचित हैं। अब अमरीका ट्रंप के नेतृत्व में राजनीतियों, कूटनीतियों और व्यापार नीतियों की
परंपरागत रूढि़यों को तोड़ रहा है। और जब रूढि़यों को तोड़ नवनीतियों के साथ देश-विदेश में राजनीति होती है तो
परिवर्तन की बाधाएं उत्पन्न होती ही हैं। इन्हीं अस्थायी बाधाओं के कारण अमरीका और उसके वर्तमान नेतृत्व के
संबंध में नकारात्मक और संबंध तोड़ने वाले वक्तव्य देना न तो भारत व अमरीका और न ही दुनिया के हित में है।
2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही भारतीय राजनीति में जिन कार्यकारी बिंदुओं पर सर्वाधिक ध्यान लगाया
गया, उनमें से एक है विदेशी नीति। तब से भारतीय विदेश नीति सर्वथा एक नए मार्ग पर चल रही है। इस प्रयास
से भारत को अनेक लाभ मिले। आज अनुच्छेद 370, 35ए की समाप्ति से लेकर राम मंदिर, सीएए तक जितने
भी क्रांतिकारी निर्णय केंद्र सरकार ने लिए हैं, उनमें हमारी विदेश नीति का सहयोग अभूतपूर्व है। संभवतः इसी
नीति की सफलता को अनुभव कर भारतीय मतदाताओं ने भाजपा को लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में बहुमत
वाला जनादेश दिया।
अमरीकी सत्ता भी मोदी सरकार की वापसी पर हर्ष में थी। विगत वर्ष सितंबर में अमरीका में मोदी के स्वागत में
हाउडी मोदी नामक कार्यक्रम हुआ था। उस कार्यक्रम के मंच पर ट्रंप और मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंधों की
सरलता-सहजता देखने योग्य थी। उसी शैली में ट्रंप की भारत यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए प्रधानमंत्री के
गृह प्रदेश गुजरात में नमस्ते ट्रंप नामक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। यह कार्यक्रम गुजरात के मोटेरा क्रिकेट
मैदान में होगा, जिसमें लगभग एक लाख लोग दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच पनपने वाली मैत्री के आधार पर भारत-
अमरीका के भावी संबंधों का अनुमान लगाएंगे। भारत के लिए सन् 2020 की बड़ी घटना है ट्रंप की भारत यात्रा।
हालांकि मोदी ने 2017 के बाद अमरीका में ट्रंप से एकाधिक और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई भेंटें की हैं, पर
भारत में दोनों नेताओं की यह पहली भेंट है, जो अविस्मरणीय होने के साथ-साथ दोनों देशों के राजनीतिक,
आर्थिक, व्यापारिक संबंधों को तो एक नया आयाम देगी ही। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में
राजनीतिक शक्ति प्राप्त कर सत्तारूढ़ होने के लिए राष्ट्रीय स्वायत्तताओं और अस्मिताओं को दांव पर रख क्षुद्र
राजनीतिकरण का जो प्रचलन बना हुआ है, उसे तोड़ने के लिए भी मोदी-ट्रंप की यह भेंट कुछ न कुछ शिक्षा तो
अवश्य देगी। सत्तारूढ़ होने के बाद मई 2017 से लेकर जनवरी 2022 तक डोनाल्ड ट्रंप ने 24 देशों की यात्राएं
की हैं। इनमें अफगानिस्तान, अर्जेंटीना, कनाडा, चीन, फिनलैंड, इराक, इजरायल, उत्तरी कोरिया, फिलीपीन्स,
पोलैंड, सऊदी अरब, सिंगापुर, वेटिकन सिटी, वेस्ट बैंक की एक-एक तो बेल्जियम, जर्मनी, आयरलैंड, इटली,
दक्षिण कोरिया, स्विट्जरलैंड और वियतनाम की दो-दो तथा जापान और ब्रिटेन की तीन-तीन यात्राएं सम्मिलित हैं।
पर आश्चर्य इस बात का है कि भारत की यात्रा पर वे अब आ रहे हैं।
हालांकि पिछली बार 26 जनवरी पर उनके मुख्य अतिथि बनकर आने का कार्यक्रम निश्चित तो हुआ था परंतु वे
आ नहीं पाए। ट्रंप की भारत यात्रा में दोनों राष्ट्राध्यक्ष जिन विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श करेंगे, निश्चित रूप में
व्यापार उनमें प्रमुख होगा। अमरीका ने पिछले वर्ष भारत को अपनी जनरल सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज लिस्ट ‘व्यापार
में छूट की वरीयता वाले राष्ट्रों की सूची’ से अलग कर दिया था। इससे भारत के निर्यातकों के लिए व्यापारिक
समस्याएं बढ़ गईं। इस बार अमरीका ने भारत को विकसित राष्ट्र घोषित करते हुए आयात-निर्यात पर हमें मिलने
वाली दोतरफा छूटों को खत्म कर दिया है। अमरीका भारत में अपने कृषि, दुग्ध उत्पादों के प्रसार के लिए भारत की
सहमति की प्रतीक्षा में है। भारत इसके लिए अब तक इसलिए सहमत नहीं था क्योंकि इससे घरेलू कृषि और दुग्ध
उत्पादकों और व्यापारियों के सम्मुख अमरीकी उत्पादों की बड़ी व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा होगी, जिससे उनका कारोबार
और लाभार्जन दोनों प्रभावित होगा, लेकिन संभवतः इस बार भारत अपने कृषि व दुग्ध उत्पादक व्यापारियों के हित
को कायम रखते हुए अमरीकी कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए कुछ सीमा तक भारतीय बाजार खोल दे। अपने मेक
इन इंडिया, डिफेंस विनिर्माण तथा एनर्जी क्षेत्र के विकास के लिए अमरीकी निवेश आकर्षित करने और अमरीका से
रक्षा, मिसाइल, परमाणु ऊर्जा तथा पेट्रोलियम की तकनीकें लेने के लिए भारत को अमरीका की कुछ शर्तें माननी ही
होंगी। यदि भारत-अमरीका रणनीतिक साझीदारी मंच के आंकड़ों के अनुसार देखें तो दोनों देशों का द्विपक्षीय
व्यापार सन् 2025 तक 143 बिलियन से बढ़कर 238 बिलियन डालर तक पहुंच जाएगा। यह तब ही संभव होगा
जब दोनों के बीच व्यापार वृद्धि 7.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से होती रहेगी। पिछले 7 वर्षों से व्यापार में यह
वृद्धि बनी भी हुई है। भारत-अमरीका के बड़े व व्यापक कारोबारी संबंधों को देखते हुए आशा की जानी चाहिए कि
अपनी आगामी भारत यात्रा में ट्रंप भारत के साथ अपने देश के कारोबारी ही नहीं अपितु कूटनीतिक, सामरिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक संबंधों को भी एक नया आयाम देने में अवश्य सफल होंगे।