मंदिर ट्रस्ट और मतदान

asiakhabar.com | February 7, 2020 | 3:19 pm IST
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अर्पित गुप्ता

दिल्ली विधानसभा चुनाव में 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। इससे ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में
बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाने का ऐलान कर दिया।
पीएम मोदी के इस ऐलान के साथ ही दिल्ली चुनाव में किस्मत आजमा रहीं राजनीतिक पार्टियों ने सरकार की मंशा

पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। वहीं, राजनीतिक विश्लेषक इससे बीजेपी को होने वाले नफा-नुकसान की गणना में
जुट गए हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर नौ नवंबर, 2019 को अपना फैसला सुनाया था। फैसले
में ही मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने की समय सीमा के भीतर बोर्ड गठित करने के केंद्र सरकार को निर्देश थे।
हालांकि चुनाव आयोग की ओर से जारी बयान के बाद राजनीतिक दलों की ओर से उठाए जा रहे सवालों पर विराम
लग जाना चाहिए।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि यह घोषणा कहीं से भी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। इसके लिए
सरकार को चुनाव आयोग को पहले से सूचित करने की कोई जरूरत नहीं थी। बता दें कि दिल्ली में कुल 1.47
करोड़ मतदाता हैं जिनमें 81.05 लाख पुरुष, 66.80 लाख महिला मतदाता हैं। वहीं 2011 की जनगणना के
धर्म आधारित आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में एक करोड़ 37 लाख हिंदू हैं। यानी दिल्ली में करीब-करीब 10 लाख
मुस्लिम मतदाता हैं। इनमें से ज्यादातर मुस्लिम आबादी आठ विधानसभा क्षेत्रों में सिमटी हुई है। सीलमपुर,
मुस्तफाबाद, बल्लीमारान, ओखला, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां
करीब 35-50 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। इन सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। इसके अलावा
सीमापुरी और त्रिलोकपुरी में भी मुस्लिम वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अंदेशा जता
रही है कि भाजपा दिल्ली चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम का रंग देना चाहती है, इसलिए राम मंदिर के ट्रस्ट का
ऐलान करने के लिए इस वक्त को चुना गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में
भाजपा ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी भाजपा ने हिंदू
उम्मीदवार पर ही दांव खेला है। पिछले आंकड़ों पर नजर डालें तो इन आठ मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा हमेशा
से पिछड़ती रही है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा दिल्ली की सभी 7 सीटें जीती थी, लेकिन इन आठ
विधानसभा सीटों पर सबसे ज्यादा 4 लाख से ज्यादा वोट कांग्रेस के खाते में गई थी। वहीं भाजपा को जीत के
बावजूद करीब 30 हजार वोट मिले थे।
यहां साफ तौर से दिख रहा है कि इन आठ सीटों पर भाजपा को काफी कम वोट मिलते रहे हैं। ऐसे में केवल राम
मंदिर ट्रस्ट जैसे फैसले से वोटों के इतने बड़े अंतर में कोई बदलाव आ जाए इसकी कम ही संभावना दिखती है।
दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न से सबक लेते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने इन आठ सीटों पर जोर
लगाया है और मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने की जुगत में जुटी है। वहीं, कांग्रेस भी इन वोटरों को अपने
साथ जोड़े रखकर इज्जत बचाने की जीतोड़ कोशिश कर रही है।
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में लोग करीब डेढ़ महीने से जमा हैं। विधानसभा चुनाव प्रचार
में जिस तरह से भाजपा और आम आदमी पार्टी शाहीन बाग का नाम ले रही है, उससे यह मुख्य चुनावी मुद्दा बन
गया है। विस्तृत परिदृश्य में देखें तो शाहीन बाग ही दिल्ली चुनाव का मुख्य मुद्दा है। इस तात्कालिक और बड़े
मुद्दे के सामने राम मंदिर ट्रस्ट की बात को दिल्ली की जनता कितना तवज्जो देगी यह समझने की जरूरत है।
आम आदमी पार्टी के हालिया फैसलों पर नजर डालें तो इस पार्टी ने ऐसा कोई स्टैंड नहीं लिया है, जिससे विरोधियो
को उसे हिंदू विरोधी साबित करने का मौका मिल जाए। राम मंदिर ट्रस्ट का ऐलान होते ही मुख्यमंत्री केजरीवाल ने
कहा कि अच्छे फैसलों का कोई वक्त नहीं होता है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए
जाने पर भी केंद्र सरकार का समर्थन किया था। आप सीएए के खिलाफ भी अब तक कोई स्टैंड लेने से बचती रही
है। इतना ही नहीं, केजरीवाल शाहीन बाग के मुद्दे पर भी बीजेपी की तरफ से उकसावे के बाद भी अपना रुख

स्पष्ट करने से बचते रहे। इन सारे आंकड़ों के बीच देखना दिलचस्प होगा कि 11 फरवरी को जब चुनावी नतीजे
आएंगे तब भाजपा को राम मंदिर ट्रस्ट का फायदा भाजपा को होता है या नहीं।


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