प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद हैं और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.साहिब सिंह वर्मा के पुत्र हैं। उन्हें
शालीन, संयमी, लचीला नेता माना जाता रहा है। एक सांसद को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उसके बयान
को भी हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। एक सांसद लोकसभा में औसतन 10 लाख लोगों का प्रतिनिधि होता है और
कानून बनाने में उसकी बुनियादी भूमिका भी होती है। औसत सांसद हमारी व्यवस्था की बुनियादी धुरी है। हालांकि
चुनाव आयोग ने एक अन्य बयान के मद्देनजर प्रवेश वर्मा को प्रतीकात्मक सजा सुनाई है। उसके बावजूद उन्होंने
नैतिकता, भाषायी, शुचिता की तमाम हदें पार कर दी हैं। इस पर हैरानी हुई है। सांसद प्रवेश वर्मा ने दिल्ली के
मुख्यमंत्री केजरीवाल को न सिर्फ आतंकवादी कहा है, बल्कि बयान का स्पष्टीकरण देते हुए उन्हें नक्सली और
नटवरलाल भी करार दिया है। भाजपा सांसद ने कश्मीर में सक्रिय आतंकियों से भी केजरीवाल की तुलना की है।
यह संविधान, लोकतंत्र और दिल्ली की जनता का सीधा अपमान है। बात यहीं समाप्त नहीं होती। देश के गृहमंत्री
अमित शाह ने एक सार्वजनिक जनसभा में कहा है कि वोट तय करेगा कि शाहीन बाग के पक्ष में गया है या भारत
माता को दिया गया है। उन्होंने यह भी आह्वान किया था कि वोट इतने जोर से देना कि शाहीन बाग को करंट
लगे। ये कौन से चुनावी मुद्दे हैं। एक पूर्व मंत्री एवं भाजपा प्रत्याशी कपिल मिश्रा का विश्लेषण है कि दिल्ली में
80 फीसदी हिंदुओं और 20 फीसदी मुसलमानों के बीच चुनाव होगा। चुनाव में भारत-पाकिस्तान कहने पर चुनाव
आयोग 48 घंटे के लिए उनके प्रचार पर पाबंदी लगा चुका है। गंभीर सवाल है कि भारत की आजादी के 72 सालों
के बाद भी क्या यही हमारी चुनावी और राजनीतिक संस्कृति है? दिल्ली एक अर्द्धराज्य है और राष्ट्रीय राजधानी
होने के कारण विशेष प्रावधानों के तहत यहां विधानसभा दी गई है। उसके लिए ही चुनाव पूरे यौवन पर है। सवाल
यह भी है कि क्या भाजपा मुख्यमंत्री केजरीवाल को गालियां देकर चुनाव जीतना चाहती है? भाजपा 1998 से
लगातार सत्ता से बाहर है और इस बार भी आम आदमी पार्टी की तुलना में पिछड़ रही है। कोई तो कारण होंगे कि
जनता ने लगातार खारिज किया है। भाजपा सांसद स्पष्ट करें कि केजरीवाल ने किसके साथ धोखा किया है, किसे
ठगा है कि उन्हें ‘नटवरलाल’ करार दिया गया है? केजरीवाल पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के साबित
आरोप होते तो क्या वह पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते थे? और अब भी मुख्यमंत्री के सर्वोच्च
दावेदार हैं। यह भी साफ किया जाना चाहिए कि केजरीवाल किन अर्थों और संदर्भों में ‘नक्सलवादी’ हैं? दिल्ली में
तो माओवादी नक्सली अपराध और हिंसा के क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं। दरअसल ऐसे बयान लोकतंत्र में निर्णायक
जनता के साथ ही धोखाधड़ी है। केजरीवाल की ‘आप’ बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा सरीखे बुनियादी मुद्दों पर
चुनाव लड़ रही है और भाजपा के लिए सांप्रदायिक विकल्प और खोखले राष्ट्रवाद के अलावा कुछ भी शेष नहीं है।
सवाल यह भी किया जा सकता है कि क्या शाहीन बाग बनाम भारत माता के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव लड़ा जा
सकता है? गंभीर हैरानी है कि पूरे चुनाव अभियान के दौरान बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था और मंदी के हालात पर कोई
विमर्श नहीं हुआ है! बेरोजगार युवा भी बंजर नारे लगा रहे हैं। वे अपने कथित नेताओं का अनुसरण करते देखे जा
सकते हैं। बेरोजगारी दिल्ली सरीखे शहरों में तो 9 फीसदी से ज्यादा है। हालांकि देश में औसत बेरोजगारी दर करीब
7.5 फीसदी तक पहुंच गई है। यह खतरनाक संकेत है। एक सर्वे में निष्कर्ष सामने आया है कि वेतनभोगियों की
संख्या करीब 50 लाख तक घट गई है। हमारा मानना है कि प्रवेश वर्मा जैसे सांसद तब तक ऐसे विवादित बयान
नहीं दे सकते, जब तक पार्टी नेतृत्व का इशारा न हो। चुनाव आयोग ऐसे नेताओं को स्टार प्रचारक की सूची से ही
बाहर न करे, बल्कि शेष प्रचार के लिए उन पर पाबंदी भी थोप दे। हालांकि उससे भी चुनाव प्रचार की यह गंदी
संस्कृति समाप्त नहीं होगी।