सुरक्षा में सेंध

asiakhabar.com | January 15, 2020 | 2:01 pm IST
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संयोग गुप्ता

किसी भी देश की सरहद की सुरक्षा की कमान या सेना के हवाले होती है या फिर पुलिस के। इन दोनों में से किसी
एक ने भी जब ड्यूटी में ढील की तो देश को उसका अंजाम भुगतना पड़ा। हिजबुल कमांडर आतंकवादी नवीद बाबू
के साथ पकड़े गए डीएसपी देविंदर सिंह को इसी श्रेणी में रखा जा सकता हैै। देविंदर को निलंबित कर दिया गया
है। पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे के बाद दूसरी बार उसके घर की तलाशी ली गई। पता चला कि उसने तीन

आतंकियों को अपने घर ठहराया था। उसका घर बादामीबाग स्थित सेना की 15वीं कोर मुख्यालय के बगल में है।
इसके साथ ही श्रीनगर एयरपोर्ट स्थित उसके कार्यालय को भी सील कर दिया गया है, जहां वह एंटी हाइजैकिंग
स्कवॉड में तैनात था। पूछताछ में पता चला है कि हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर नवीद बाबू व अल्ताफ को लेकर
वकील इरफान डीएसपी के घर पहुंचा था। इरफान कई आतंकी संगठनों के लिए ओजीडब्ल्यू के तौर पर काम करता
है। मीर बाजार इलाके में आतंकवादियों के साथ पकड़े जाने के दिन डीएसपी ड्यूटी से गैरहाजिर था।
जिस दौर में भारत समेत पूरी दुनिया एक व्यापक और जटिल आतंकवाद की समस्या से जूझ रही है, उसमें किसी
ऐसे व्यक्ति को आतंकियों के साथी के रूप में गिरफ्तार किया जाता है, जिसे आतंकवादियों से निपटने की
जिम्मेदारी सौंपी गई थी, तो यह समझा जा सकता है कि इस समस्या की चुनौती कितनी गहरी है। खासतौर पर
भारत ने आतंकवाद की पीड़ा जिस स्तर तक झेली है, वह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन आतंकियों का सामना
करने के लिए सरकार ने हर स्तर पर चौकसी बरती और यही वजह है कि आज आतंकवादियों के हौसले कमजोर
हुए हैं। विडंबना यह है कि देश ने सुरक्षा व्यवस्था के तहत जिन लोगों को आतंकियों का सामना करने के लिए
तैनात किया है, उनमें से ही कुछ लोग आतंकवादियों के साथी के तौर पर काम कर रहे थे। देश का सुरक्षा तंत्र
फिलहाल इतना चौकस है कि इसमें न केवल आतंकियों, बल्कि उनका साथ देने वाले भी पकड़ में आ जाते हैं।
लेकिन अगर यह तत्परता नहीं दिखाई जाती, तब क्या होता, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या होगी कि जिस पुलिस अफसर को पिछले साल श्रेष्ठ सेवाओं के लिए
राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था, उसके आतंकवादियों के साथ मिले होने की बात सामने आई। जांच के
दायरे में शायद सामने आया एक और तथ्य हो कि संसद पर हमले के लिए मौत की सजा पा चुके आतंकवादी ने
अपनी चिट्ठी में इसी अफसर पर मिलीभगत की अंगुली उठाई थी। हालांकि यह बेहद अफसोसनाक स्थिति है और
देश के सुरक्षा तंत्र में एक बड़ी कोताही का सबूत भी कि उच्च पद पर बैठा पुलिस अधिकारी खुद ही आतंकियों के
साथ पकड़ा गया। निश्चित तौर पर यह किसी एक-दो पुलिस अफसर के आतंकियों के साथी के तौर पकड़े जाने का
मामला है और उम्मीद यही की जानी चाहिए कि सुरक्षा बलों में आज भी इतनी विश्वसीयता कायम है कि वे देश
की सुरक्षा जैसे सबसे संवेदनशील मसले पर कोई चूक बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसके बावजूद यह समझना मुश्किल है
कि इतने समय तक यह अफसर खुद उस महकमे में उच्च पद पर कैसे बना रहा, जिसका काम ही आतंकवादियों
का सामना करना और खुफिया सूचनाएं हासिल कर देश के अर्धसैनिक सुरक्षा बलों को प्रेषित करना है। यहां खुफिया
तंत्र की विफलता भी बड़ी चूक है। कैसे उसे कोई सूचना नहीं मिल सकी और कैसे वह इतने समय से ऐसे काम में
लगा हुआ था? क्या खुफिया सूचनाएं हासिल करने के इसी स्तर के बूते देश के सुरक्षा बल आतंकवाद से अपनी
लड़ाई लड़ रहे हैं?


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