अर्पित गुप्ता
नववर्ष 2020 का पहला तोहफा सरकार ने दिया है-महंगाई। एक तो आर्थिक सुस्ती के हालात और उस पर बढ़ती
महंगाई…! रसोई गैस का सिलेंडर एक ही झटके में 19 रुपए बढ़ा दिया गया है। रेल का सफर भी महंगा कर दिया
गया है। प्याज आज भी 100 रुपए के करीब बिक रहा है। दालें आयात की जा रही हैं, लिहाजा उनकी मुद्रास्फीति
में भी करीब 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बेशक गैस सिलेंडर बिना सबसिडी श्रेणी का है, लेकिन वे भी देश के
नागरिकों के लिए हैं। सबसिडी देना भी आर्थिक नुकसान है। बेशक एक करोड़ से ज्यादा देशवासियों ने गैस पर
स्वेच्छा से सबसिडी छोड़ी थी। वे देश की अर्थव्यवस्था में हाथ बंटाना चाहते थे, लेकिन उसका मतलब यह नहीं
होना चाहिए कि बीते कुछ माह के दौरान गैस सिलेंडर, धीरे-धीरे करीब 139 रुपए महंगा हुआ है। सरकार की
पुरानी दलीलें हैं कि गैस पेट्रो पदार्थ के तौर पर आयात की जाती है। देश में इतना उत्पादन नहीं होता कि 137
करोड़ से ज्यादा की आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें। बेशक भारत को करीब 84 फीसदी तेल आयात करना
पड़ता है। उसमें से करीब 11 फीसदी का आयात तो अकेले ईरान से किया जाता है। यदि अमरीका मौजूदा हालात
में ईरान पर हमला करता है, तो तेल के समीकरण बिगड़ सकते हैं। क्या उन हालात में औसत गैस सिलेंडर और
भी महंगा होगा? तो क्या आम आदमी का रसोई का बजट इसी तरह बिगड़ता रहेगा? रेलवे की बात करें, तो 2
करोड़ से ज्यादा यात्री हररोज इसमें सफर करते हैं। रेल के जरिए ढुलाई भी की जाती है। रेल संचार का काम भी
करती है। अहं सवाल है कि क्या रेलवे सिर्फ यात्री किराए के भरोसे ही है? यदि यात्री किराया ज्यादा वसूला जाएगा,
तो रेलवे का अपेक्षाकृत घाटा पूरा हो सकेगा? सवाल ये भी हैं कि क्या ट्रेन समय के मुताबिक चलना शुरू कर देंगी
और उनके भीतर की विसंगतियां और गंदगी दूर हो सकेगी? अर्थव्यवस्था और महंगाई एकतरफा नहीं हो सकतीं।
उन्हें आम आदमी के प्रति जवाबदेह होना ही चाहिए। रेल का किराया औसतन 1000 किलोमीटर पर 40-50 रुपए
बढ़ा दिया गया है। हकीकत यह है कि बीते 40 माह में अब सबसे ज्यादा महंगाई दर है। बेशक उतनी नहीं है,
जितनी यूपीए सरकार के दौरान 13-14 फीसदी तक पहुंच जाया करती थी। सवाल है कि सब्जियों की कीमतों में
करीब 36 फीसदी की बढ़ोतरी क्यों हुई है? दालों की औसतन मुद्रास्फीति 14 फीसदी क्यों है? मोटे अनाज ही
करीब 4 फीसदी की दर से महंगे क्यों हुए हैं? आम आदमी जो 22 खाद्य वस्तुएं इस्तेमाल करता है, उनमें से
20 के दाम महंगे क्यों हो रहे हैं? दूध, मीट, अंडे आदि भी महंगे हो गए हैं। विडंबना यह है कि हम जो खाद्य
तेल इस्तेमाल करते हैं, उसका करीब 70 फीसदी भी आयात किया जाता है। हम आर्थिक ताकत होने की डींगें कैसे
हांक सकते हैं? यदि राज्य सरकारें सहयोग नहीं कर रही हैं और जमाखोरी पर स्थानीय तौर पर अंकुश नहीं लगाया
जा पा रहा है, तो देश के सामने खुलासा किया जाए। विमर्श के रास्ते खुले रखे जाएं। संघीय ढांचे की व्यवस्था में
ऐसे विरोधाभास स्वाभाविक हैं, लेकिन उनकी मार आम आदमी क्यों झेले? नए साल पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक
नया प्रयोग किया है कि कैबिनेट की बैठक 3-4 जनवरी को सुबह से शाम तक जारी रहेगी। उस दौरान कुछ
मंत्रालय अपने कामकाज की प्रस्तुति देंगे। फोकस अर्थव्यवस्था और विकास पर ही रहेगा। अब सरकार यह साबित
करने के मूड में आ गई है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने वाली है। यदि ऐसा है, तो पूरा देश देखना चाहेगा।
महंगाई दर भी मोदी सरकार की प्रतिबद्धता और प्राथमिकता घोषित की गई थी कि यह औसतन 3 फीसदी के
आसपास ही रहनी चाहिए। नए साल में नए प्रयोग के साथ सरकार इस विषय को किस तरह संबोधित करती है,
यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा।