बिपिन रावत के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां

asiakhabar.com | January 2, 2020 | 5:48 pm IST
View Details

थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाया गया है। इसके
साथ ही केंद्र सरकार ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का कार्यकाल 3 साल के लिए और बढ़ा दिया है। अब जनरल
बिपिन रावत इस पद पर 65 साल की उम्र तक बने रहेंगे। सेना प्रमुख के रावत अभी तक सिर्फ आर्मी को ही
नेतृत्व देते थे, पर अब उन्हें वायु और जल सेना के काम काज पर भी नजर रखनी होगी। उनके सामने चुनौती
वास्तव में बड़ी है। वे खुद कहते हैं कि भारत के समक्ष नॉन कॉन्टैक्ट युद्ध की चुनौती गंभीर है। कुछ समय पहले
ही रावत ने कहा था, “यह एक गंभीर मुद्दा है। हम नॉन कॉन्टैक्ट युद्ध के लिए अपनी तैयारी कर रहे हैं।” नॉन
कॉन्टैक्ट युद्ध में किसी भी देश की जीत उसके विरोधी को उसकी ही जमीन पर उसकी सेना को हराने, दुश्मन की
आर्थिक क्षमता तथा राजनीतिक प्रणाली को नष्ट करने में ही निहित होती है। इसके लिए देश को अपनी कमान,
नियंत्रण, संचार, कंप्यूटर, इंटेलीजेंस (खुफिया तंत्र), सर्विलांस और सैन्य परीक्षण तंत्र को उन्नत और दुरुस्त करने
की जरूरत होती है।”
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की जिम्मेदारी तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में रक्षामंत्री को लगातार सलाह देते रहना है।
सीडीएस ही रक्षामंत्री का प्रधान सैन्य सलाहकार होगा। हालांकि, सैन्य सेवाओं से जुड़े विशेष मामलों में तीनों
सेनाओं के चीफ भी पहले की तरह रक्षामंत्री को सलाह देते रहेंगे। लेकिन, सेना के अनुशासन को देखते हुए अपेक्षा
यह की जाती है कि सीडीएस का पद महत्वपूर्ण होने वाला है। शायद ही तीनों सेनाओं के प्रमुख कोई सामरिक
महत्त्व का निर्णय बिना सीडीएस की अनुमति के ले लें। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सैन्य अभियान के दौरान तीनों
सेनाओं के बीच तालमेल बैठाने का भी काम करेगा। आपको पता ही है कि कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार ने
चीफ ऑफ डिपेंस स्टाफ पद को मंजूरी दी थी। वैसे औपचारिकता के नाते चीफ ऑफ डिफेंस बिना रक्षा सचिव की
मंजूरी के रक्षा मंत्री से सीधे मुलाकात कर सकेंगे। लेकिन, यह तो मात्र औपचारिकता बहर ही बना रहने वाला है।
अपने बेबाक विचारों के लिए मशहूर बिपिन रावत पहले भी साफ कह चुके हैं कि, “भारत को अतिरिक्त क्षेत्र की
लालसा नहीं है। लेकिन, इसका लक्ष्य आर्थिक प्रगति और सामाजिक-राजनीतिक विकास के लिए एक अनुकूल बाहरी
और आंतरिक सुरक्षा का वातावरण सुनिश्चित करना है।” रावत की इस घोषणा के बाद हमारे धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान
सरकार को राहत की सांस लेनी चाहिए थी कि भारत उस पर कभी हमला नहीं बोलेगा। वैसे इतिहास भी गवाह है
कि युदध हर बार उसने ही शुरू किया है और हमेशा ही युद्ध को ख़त्म तो भारत ने ही किया है। बहरहाल, यह तो
स्पष्ट दिख ही रहा है कि भविष्य की लड़ाई में संपर्क रहित युद्ध प्रणाली हमें दुश्मन पर बढ़त दिला सकती है। ऐसे
में तो हमें इस दिशा में तुरंत ही सुरक्षा की दृष्टि से पहले कदम उठाना चाहिए। हमें क्वांटम तकनीक, साइबर स्पेस
और सबसे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के फायदों को समझने की जरूरत है।
पर्क रहित युद्ध प्रणाली, लड़ाई की नई तकनीक है। इसमें पारंपरिक हथियारों के साथ आमने-सामने की लड़ाई की
जगह, आधुनिक हथियारों से दूरस्थ दुश्मन के ठिकानों पर हमला किया जाता है। इनमें लंबी दूरी की मिसाइलें,
गाइडेड हथियार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली शामिल हैं। इस तरह की लड़ाई में दुश्मन की सीमा में प्रवेश किए
बिना ही उसे नुकसान पहुंचाया जा सकता है। बेशक ये सारी बातें जनरल रावत से बेहतर कौन जान सकता है।
जनरल बिपिन रावत की यह राय भी सही है कि हाथ में राइफल लेकर जंग के मैदान में उतरने वाले सैनिक की
अहमियत तो कभी खत्म नहीं होगी। सदियों से उनका महत्व था और हमेशा बना रहेगा। इस बीच देश रावत से यह
भी अपेक्षा करता है कि वे सेना के तीनों अंगों में एक्टिव उन जयचंदों की तो अब कमर तोड़ देंगे जो देश के अहम
रक्षा सम्बन्ध दस्तावेज दुश्मन को चंद सिक्को के लिए दे देते हैं। सेना के तीनों अँगों में प्रत्येक संवेदनशील

दस्तावेज को सुरक्षा की दृष्टि से अलग अलग श्रेणियों में रखा जाता है। इसमें गोपनीय, रहस्य, गुप्त और अति
गुप्त की श्रेणियां हैं। इन्हें x के निशान से पहचाना जाता है यानि एक x यदि गोपनीय है तो xxxx अति
गोपनीय होगा। सेनाओं में सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए एक सख्त नकारात्मक नीति है जो सुरक्षा की दृष्टि
से वाजिब भी है। सेना के अधिकारियों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल की सीमित इजाजत तो है, परंतु; वे सेना
की वर्दी में अपनी फोटो पोस्ट नहीं कर सकते। साथ ही वे कहां तैनात हैं, कौन सी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, कहाँ
आ-जा रहे हैं आदि विषयों के संबंध में भी कोई जानकारी साझा नहीं कर सकते। इसके अलावा कोई भी अधिकारिक
जानकारी, सैन्य प्लान और यहां तक की कार्यालय के बुनियादी ढांचे के संबंध में भी कोई जानकारी नहीं दे सकते।
इतने कठोर नियमों के होने पर भी कुछ लालची अफसर दुश्मन के जालों में खासकर हनी ट्रैप में फंस ही जाते हैं।
रावत को इन आस्तीन के सांपों को कुचलना होगा। यह कोई तीस-पैंतीस साल पुरानी बात है जब मेजर जनरल फ्रेंक
लारकिंस, उनके भाई एयर मार्शल कैनिथ लारकिंस और लेफ्टिनेंट कर्नल जसबीर सिंह को देश के बेहद संवेदनशील
रक्षा दस्तावेजों की सप्लाई करते हुए पकड़ा गया था। उस केस को लारकिंस जासूसी कांड का नाम दिया गया था।
इन तीनों पर लगे आरोप भी साबित हुए थे। इन अफसऱों को डूब के मर जाना चाहिए था, देश के साथ गद्दारी
करने के लिए। लेकिन, इनकी आत्मा तो मर चुकी थी। इसीलिए ये जेल में सड़ते ऱहे थे। लेकिन, सजा की अवधि
खत्म होने के बाद ये भी अपनी सामान्य जिंदगी जीने लगे। कहते ही है कि एक सड़ी मछली तो सारे तालाब को ही
गंदा कर देती है। वैसे तो भारतीय सेना के तीनों अँगों से जुड़े अधिकारियों और फौजियों में राष्ट्र भक्ति की भावना
कूट-कूट कर भरी होती है। ये भारत की सरहदों की रक्षा के लिए अपने प्राणों के बलि देने से कभी पीछे नहीं हटते।
इनके शौर्य़ को सारी दुनिया ने विभिन्न युद्धों के दौरान देखा है। पर यह भी सच है कि कुछ सैनिक धन या किसी
अन्य प्रकार की लालच के कारण शत्रु के जाल में फंसकर देश के साथ धोखा करने लगते हैं। रावत को इन दुश्मनों
पर भी नजर रखने के उपाय खोजने होंगे।
चीन मामलों के एक्सपर्ट रावत की देखरेख में भारतीय सेना के तीनों अंग और बेहतरी से तालमेलपूर्वक काम कर
सकेंगे, इस बारे में किसी को संदेह नहीं हो सकता है। बेशक सारा देश रावत के नेतृत्व में भारतीय सेना में
गुणात्मक सुधार देखेगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *